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अनोखी परंपरा: इस गांव में 4 दिन पहले ही मना लिया गया होली का त्योहार, ये है वजह - Holi 4 days earlier in Sonbhadra

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Mar 22, 2024, 7:01 AM IST

Updated : Mar 22, 2024, 7:08 AM IST

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सोनभद्र का दुद्धी तहसील क्षेत्र अपने सांस्कृतिक व आदिवासी सभ्यता (Holi 4 days earlier in Sonbhadra) और परंपरा के लिए जाना जाता है. यहां पर त्योहारों को मनाने का मिजाज बिल्कुल अन्य जगहों से भिन्न है.

सोनभद्र के आदिवासी क्षेत्रों में अनोखी परंपरा

सोनभद्र : जनपद का दुद्धी तहसील क्षेत्र अपने सांस्कृतिक व आदिवासी सभ्यता और परंपरा के लिए जाना जाता है. यहां पर त्योहारों को मनाने का रिवाज बिल्कुल अन्य जगहों से भिन्न है, जो इसे अद्भुत और अनोखा बनाता है. इसी तरह की सभ्यता और परंपरा की बानगी, दुद्धी तहसील क्षेत्र का बैरखड़ गांव है. यह छत्तीसगढ़ और झारखंड का सीमावर्ती गांव है. यह गांव आदिवासी बाहुल्य है. इस जगह पर होली मनाने की बिल्कुल ही अलग परंपरा है. यह परंपरा काफी प्राचीन समय से चली आ रही है. ऐसी मान्यता है कि इस गांव के आदिवासी पांच दिन पहले होली का त्योहार अपनी आदिवासी परम्परा के अनुसार मनाते हैं. इसी परंपरा के क्रम में गांव में बीती रात होलिका दहन संपन्न हुआ. होलिका दहन बैगा (आदिवासियों के पुरोहित) या अपनी ही बिरादरी के लोगों से कराने की प्रथा है. इस स्थल को संवत डाड़ कहा जाता है और गुरुवार को आदिवासियों ने रंगों का त्योहार होली परम्परागत तरीके से दिन भर रंगों से सराबोर होकर झूमते नाचते और गाते हुए मनाया.

चार-पांच दिन पहले होली मनाने की है परंपरा : होली मनाने की परम्परा को लेकर ग्राम प्रधान उदय पाल, पूर्व प्रधान अमर सिंह, छोटेलाल सिंह, रामकिशुन सिंह बताते हैं कि गांव में होली मनाने की परम्परा काफी पुरानी है. गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि बहुत पहले एक बार गांव में बीमारी से भारी जन-धन की क्षति हुई थी. गांव में महामारी जैसी स्थिति हो गई थी. गांव के लोग काफी परेशान थे. तब उसका निदान ढूंढ़ने के लिए आदिवासियों ने काफी प्रयास किया. उस समय आदिवासी समुदाय के बुजुर्ग लोगों एवं धर्माचार्यों (पुजारी) ने चार-पांच दिन पहले होली मनाने का सुझाव दिया था. तभी से बैरखड़ गांव में पांच दिन पहले होली मनाने की परंपरा चल रही है. जिसे आदिवासी समाज आज भी संजोए हुए हैं. गांव के लोग बताते हैं कि इससे गांव में सुख समृद्धि बनी रहती है.
बता दें कि बैगा अदिवासियों में ढोलक की थाप पर होली खेलने की परम्परा आज भी कायम है. बैरखड़ गांव आदिवासी और जनजाति बाहुल्य गांव है. यहां के निवासी हर त्योहार अपनी परम्परा एवं रीति-रिवाज के अनुसार मनाते हैं. वैसे भी इस जनजाति का इतिहास प्राचीन काल तक जाता है. ये लोग समूह में इकट्ठा होकर एक-दूसरे को अबीर लगाते हैं. मानर/ढोलक की धुन पर नृत्य करते हैं. इस नृत्य में महिलाएं भी शामिल रहती हैं.



समय से पहले होली मनाने की है परम्परा : सोनभद्र में निवास करने वाली गोंड, खरवार और घसिया आदिवासियों में होली से चार-पांच दिन पहले ही होली मनाने की परंपरा है. दुद्धी के बैरखड़ गांव के अलावा, सोनभद्र के म्योरपुर ब्लाक के कुदरी ग्राम पंचायत, पश्चिमी देवहार और अजिनगरा ग्राम पंचायत में भी यही परम्परा है. यहां मानर/ढोलक की थाप पर युवाओं-किशोरी की टोली देर तक झूमती गाती रही. तरह-तरह के पकवानों के साथ आदिवासियों ने इस पर्व का आनंद उठाया. विंढमगंज के बैरखड़ गांव में भी गोंड़ और खरवार जातियों के बीच भी यही परम्परा है.

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Last Updated :Mar 22, 2024, 7:08 AM IST
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