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AIIMS से आई गुड न्यूज, सिर्फ 30 मिनट में बिना चीरा लगाये होगी आखों के कैंसर की थैरेपी

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Mar 19, 2024, 9:39 AM IST

gamma knife radio therapy
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Eye Cancer Treatment Gamma knife: एम्स में इस लेटेस्ट विधि से इलाज शुरू किया गया है, इसका नाम है गामा नाईफ रेडियो थेरेपी. ये अभी सिर्फ एम्स अस्पताल में ही उपलब्ध है. इस थेरेपी की सबसे अच्छी बात ये है कि इससे आंखों की रोशनी को बचाया जा सकता है.

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नई दिल्ली: दिनों दिन प्रगति कर रहे विज्ञान की बदौलत अब उन बीमारियों का इलाज भी संभव है जिन्हें कभी लाइलाज कहा जाता था. एम्स अस्पताल में इन दिनों गामा नाईफ टेक्नीक काफी चर्चा में है. इस टेक्नीक से आंखों के कैंसर का जड़ से सफाया किया जाता है वो भी आंखों की रोशनी को बिना नुकसान पहुंचाये. इस तकनीक का काफी फायदा आम लोगों तक पहुंच रहा है. आसान शब्दों में कहे तो कोई बार आंख के कैंसर में इलाज के दौरान मरीज की आंखें तक निकलानी पड़ती थी लेकिन डॉक्टर्स की मानें तो गामा नाईफ तकनीक से कैंसर का भी इलाज किया जा रहा और आंखों की भी सुरक्षा की जा रही है.

दिल्ली में स्थित एम्स अस्पताल की डॉ. भावना चावला ने बताया कि आखों में ट्यूमर बहुत बड़ा होता है, इसके आंखों से बाहर आने का खतरा भी बना रहता है. इसलिए इसकी जल्दी सर्जरी करनी पड़ती है. दुखद ये है कि कैंसर को हटाने के लिए आंख को भी सर्जरी कर बाहर निकालना पड़ता है. उसकी जगह पर दूसरी आंख ट्रांसप्लांट नहीं की जा सकती. जिससे स्थाई तौर पर अंधापन हो जाता है लेकिन अच्छी बात ये है कि एम्स दिल्ली में ऐसे इलाज शुरू किय गए हैं जिसमें आंखों की रोशनी को बचाया जा सकता है.

एम्स में जो लेटेस्ट विधि से इलाज शुरू किया गया है वो हैं गामा नाईफ रेडियो थेरेपी. ये अभी सिर्फ एम्स अस्पताल में ही उपलब्ध है. इस थेरेपी की सबसे अच्छी बात ये है कि इससे आंखों की रोशनी को बचाया जा सकता है. डॉक्टरों के मुताबिक कुछ ऐसे ट्यूमर हैं जो बहुत बड़े होते हैं या ऑप्टिक नर्व के बहुत पास होते हैं जिनके लिए प्लाकवेधी थेरेपी कारगर नहीं होती. ऐसे ट्यूमर को गामा नाईफ सर्जरी से ही हटाया जा सकता है. यह बहुत ही प्रीसाइज टेक्नीक है जिसमें रेडिएशन द्वारा ट्यूमर कोशिकाओं को नष्ट कर दिया जाता है. एम्स में लेटेस्ट गामा नाईफ मशीन हैं जिससे आम लोगों को काफी फायदा पहुंच रहा है.

आयुष्मान भारत योजना और बीपीएल के मरीजों को गामा नाईफ से मुफ्त इलाज किया जाता है. दो साल से नई मशीन पर सर्जरी कर रहे हैं जिसके अच्छे रिजल्ट आ रहे हैं. डॉक्टर्स के मुताबिक गोरी स्किन वाले लोगों में आंखों का कैंसर ज्यादातार देखने को मिला है. इसके साथ ही जिन आंंखों का रंग हल्का होता है उनमें भी ऐसे केस पाये गए हैं. लेकिन एम्स के डॉक्टर मानते हैं कि सब तरह के केस अस्पताल में देखने को मिल रहे हैं.

भारत में अमूमन 40 बरस की उम्र वाले लोगों में इस तरह के कैंसर देखे जाते हैं. लेकिन पश्चिमी देशों में ये 60 की उम्र में दिखता है. अगर ये आंखों का ट्यूमर नर्वस में हो तो आंखों की रोशनी को बचाना संभव नहीं है. अल्ट्रा वायलेट विकिरण इसके लिए एक फैक्टर है जो गोरे लोगों में जल्दी स्टीमुलेट होते हैं.

कैसे होता है गामा नाईफ से इलाज

इस प्रक्रिया में नेत्र रोग विशेषज्ञ और न्यूरोसर्जन की एक टीम शामिल होती है. नेत्र सर्जन पहले आंख को स्थानीय एनेस्थीसिया देता है और फिर मांसपेशियों को जोड़कर आंख को उपचार के लिए तैयार करता है ताकि गामा नाईफ उपचार के लिए खोपड़ी पर एक फ्रेम लगाया जा सके. भारत में केवल 5-6 अस्पतालों में ही गामा नाईफ मशीन हैं, ये बिल्कुल सटीकता के साथ ट्यूमर को मारता है इसलिए इसके नाम में नाईफ शब्द जुड़ा है. दशमलव एक मिमी तक इसकी सटीकता है. ब्रेन या आंखों के ट्यूमर को इस मशीन से हटा सकते हैं.

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एम्स में पिछले दो साल से आंखों के कैंसर का इलाज गामा नाईफ से किया जा रहा है. ये भारत में केवल एम्स में ही उपलब्ध है. बाकी अस्पतालों में ब्रेकी थेरेपी से इलाज किया जाता है. ये एक पुरानी तकनीक है, गामा नाईफ के साथ अच्छी बात यह है कि इसमें चीरा नहीं लगाना पड़ता है. सिर्फ एक टांका लगाना पड़ता है. एमआरआई जैसी मशीन है उसे ही गामा नाईफ मशीन कहते हैं. इसमें मरीजों की आंखों में लगभग 200 किरणें निकलती हैं जो ट्यूमर को ढूंढ़कर मारती है सबसे बड़ी बात यह है कि बिना सर्जरी के ही ट्यूमर को हटा दिया जाता है.

ए्म्स में गामा नाईफ से आंखों के कैंसर के इलाज का खर्च 75 हजार रुपये है, इसमें मरीज को बार-बार नहीं आना पड़ता है. केवल एक बार में ही काम हो जाता है. सिंगल सेशन रेडियो थेरेपी में केवल आधे घंटे में ही इलाज पूरा हो जाता है. एम्स में इस तकनीक से इलाज के बड़े फायदे है. सिर्फ 75 हजार रुपये में ही जीवन भर मरीज का फॉलो अप इलाज भी किया जाता है. पूरी दुनिया में ऐसा कहीं नहीं होता है. एम्स के डायरेक्टर ने उदारता दिखाते हुए यह अच्छी पहल की है. एक बार ट्यूमर होने पर दो साल में कम से कम एक बार फॉलो अप कराना पड़ता है.

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