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अजमेर में लाल्या काल्या का अनोखा मेला, श्रद्धालुओं को प्रसाद में मिला लाल्या के सोटे का प्रहार - Lalya Kalya Fair

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By ETV Bharat Rajasthan Team

Published : May 22, 2024, 9:51 PM IST

300 साल पुराना लाल्या काल्या का मेला अजमेर की सांस्कृतिक और धार्मिक परंपरा का हिस्सा है. भगवान नृसिंह जयंती के अगले दिन अजमेर के नया बाजार में शाम के वक़्त ये मेला भरता है. अनूठी बात यह है कि मेले में लोग भगवान विष्णु के वराह अवतार के प्रतीक लाल्या के सोटे का प्रहार प्रसाद के रूप में चखने के लिए आते हैं. जानते हैं अजमेर के सुप्रसिद्ध लाल्या काल्या के मेले का इतिहास और उससे जुड़ी परंपरा.

अजमेर का लाल्या काल्या का मेला
अजमेर का लाल्या काल्या का मेला (Photo ETV Bharat Ajmer)

अजमेर में लाल्या काल्या का अनोखा मेला. (ETV Bharat Ajmer)

अजमेर. अजमेर के नया बाजार में 300 वर्ष पुराना सुप्रसिद्ध लाल्या काल्या का मेले का आयोजन हुआ. मेले में भगवान विष्णु के वराह और नृसिंह अवतार का मंचन हुआ. मेले में आए श्रद्धालुओं ने वराह अवतार लाल्या के सोटे का प्रहार प्रसाद के रूप में चखा. वहीं, हिरण्याक्ष रूपी काल्या के सोटे से लोग बचते नजर आए. हिरण्याक्ष की बहन नकटी ने भी प्रजा रूपी मौजूद लोगों को खूब परेशान किया. शाम को लाल्या ने काल्या का वध कर दिया. इसके बाद हिरण्यकश्यप ने अपनी प्रजा में आतंक जमाया, तब प्रजा ने भगवान विष्णु को सहायता के लिए पुकारा. भक्तों की पुकार सुन खम्भा फाड़कर भगवान नृसिंह प्रकट हुए और हिरण्यकश्यप का वध कर उसके आतंक और भय से लोगों को मुक्त किया. भक्त प्रहलाद की रक्षा के लिए खम्भा फाड़कर आए भगवान विष्णु के अवतार नृसिंह के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ पड़ी. जब भगवान नृसिंह ने हिरण्यकश्यप का वध किया, तो आस्था से भाव विभोर श्रद्धालुओं ने जमकर जयकारे लगाए.

लाल्या के सोटे का प्रहार है शुभ : लाल्या को श्रद्धालु भगवान विष्णु का वराह अवतार के रूप में मानते हैं, इसलिए आशीर्वाद स्वरूप लाल्या के सोटे का प्रहार प्रसाद के रूप में चखते हैं. माना जाता है कि जिसको लाल्या का सोटा पड़ जाता है, उसके सारे बिगड़े काम बनने लग जाते हैं और भाग्य साथ देने लगता है. वहीं, काल्या के सोटे से लोग बचते हैं. धारणा है कि उसके सोटे के प्रहार से बनते काम बिगड़ने लगते हैं. इस बीच हिरण्याक्ष की बहन होलिका भी नकटी के रूप में रहती है. श्रद्धालु उसे छेड़ते हैं और वह लोगों को मारने के लिए पीछे दौड़ती है.

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कागज को लूटकर तिजोरियों में रखते है लोग : मंचन में जब भगवान नृसिंह खम्भा फाड़कर प्रकट होते हैं, तो जयकारों से पूरा क्षेत्र गूंज उठता है. इस प्रसंग के मंचन के लिए कागज का खम्भा बनाया जाता है. सबसे अनूठी बात यह है कि जिस खम्भा से भगवान नृसिंह प्रकट होते हैं, उस खम्भा के कागज को पवित्र माना जाता है. कागज में गोंद मिलाई जाती है. वहीं, प्राकृतिक रंग से खम्भे को रंगा जाता है. आयोजक समिति में पदाधिकारी सागर बंसल बताते हैं कि खम्भे के कागज को पवित्र माना जाता है. खम्भा फाड़कर भगवान नृसिंह के प्रकट होने का मंचन होते ही मौजूद श्रद्धालु खम्भे के कागज को लूटते हैं, जिसके हाथ में कागज का टुकड़ा आया वह उसे संभालकर अपनी तिजोरी में रखता है. मान्यता है कि ऐसा करने पर उसके व्यापार में बढ़ोतरी और घर में सुख समृद्धि आती है.

आठवीं पीढ़ी निभा रही है परंपरा : भगवान नृसिंह मंदिर का निर्माण सेठ राम प्रसाद बंसल ने 300 बरस पहले करवाया था. मंदिर निर्माण के साथ ही मेले की परंपरा भी जुड़ गई. मंदिर में भगवान नृसिंह का श्रृंगार कर पूजा अर्चना की जाती है. इसके बाद दिन में महाआरती होती है, जिसमें श्रद्धालु बड़ी संख्या में मौजूद रहते हैं. मंदिर में 200 वर्ष पुरानी चांदी की ध्वजा जिस पर भगवान हनुमान उकेरे हुए हैं, वह भी दर्शन के लिए रखी गई. इसके अलावा श्याम बाबा का नयनाभिराम श्रृंगार भी किया गया. सेठ राम प्रसाद बंसल की आठवीं पीढ़ी सागर बंसल दिल्ली मेट्रो में एक्सईएन हैं और मेले के दिन वह खास तौर पर परिवार के साथ मौजूद रहते हैं. सागर बंसल के छोटे भाई आलोक बंसल भी परिवार की परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं. आलोक बंसल बताते हैं कि लोगों में भगवान नृसिंह में गहरी आस्था है.

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दूर-दूर से आते है श्रद्धालु : मेले के अवसर पर शहर ही नहीं बल्कि आसपास के क्षेत्र के लोग भी नया बाजार में भगवान नृसिंह के दर्शनों के लिए आते हैं. भगवान नृसिंह अवतार की लीलाओं का कलाकारों की ओर से मंच पर हुए प्रदर्शन को भी देखते हैं. साथ ही मेले का हिस्सा बनकर लाल्या से सोटा खाकर प्रसाद ग्रहण करते हैं. मेले में महिलाएं, पुरुष, बुजुर्ग और बच्चे आसपास की इमारतों की छत से मेले का नजारा देखते हैं. बंसल ने बताया कि शाम 5 बजे से रात 8 बजे तक मेले का आयोजन होता है. इसके बाद मंदिर में आरती कर श्रद्धालुओ को प्रसाद वितरित किया गया.

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