देहरादून: राजाजी टाइगर रिजर्व में टाइगर कंजर्वेशन प्लान को लेकर इंतजार खत्म होने जा रहा है. टाइगर रिजर्व में कंजर्वेशन प्लान के तहत बाघों के संरक्षण को लेकर प्लानिंग की जाएगी. टाइगर रिजर्व में बाघों का परिवार बढ़ाने के लिए चल रही योजनाओं को और भी ज्यादा गति मिलेगी. फिलहाल, राजाजी टाइगर रिजर्व में 55 बाघ मौजूद हैं. जिनमें से चार टाइगर कॉर्बेट रिजर्व से राजाजी में लाये गए हैं.
राजाजी टाइगर रिजर्व में अब बाघों पर चल रहे प्रोजेक्ट को और भी ताकत मिलने जा रही है. दरअसल राजाजी टाइगर रिजर्व को तीन वन्य जीव अभ्यारण को मिलाकर बनाया गया था. साल 1983 में राजाजी, मोतीचूर और चिल्ला को मिलाकर राष्ट्रीय उद्यान के रूप में अधिसूचना जारी की गई. जिसे साल 2015 में टाइगर रिजर्व के रूप में घोषित किया गया. राजाजी टाइगर रिजर्व का कुल क्षेत्र करीब 1075 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला हुआ है. राजाजी टाइगर रिजर्व के रूप में 2015 में स्थापित हुआ, लेकिन, अभी यहां बाघों के संरक्षण को लेकर कोई प्लान नहीं बनाया जा सकता था. ऐसे में अब राजाजी टाइगर रिजर्व के लिए कड़ी मशक्कत के बाद टाइगर कंजर्वेशन प्लान तैयार कर लिया गया है.
एक तरफ टाइगर कंजर्वेशन प्लान को तैयार कर दूसरी औपचारिकताओं को पूरा करने की कोशिश हो रही है. दूसरी तरफ राजाजी में बाघों के परिवार को बढ़ाने के लिए एक महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट पिछले कई सालों से चल रहा है. बड़ी बात यह है कि इस प्रोजेक्ट के तहत राजाजी टाइगर रिजर्व में शुक्रवार को बाघिन को छोड़ा गया है. इस बाघिन को कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से लाया गया था. इससे पहले तीन बाघ पहले भी कॉर्बेट से राजाजी टाइगर रिजर्व में पहले भी ले जा चुके हैं. प्रोजेक्ट के तहत पांच बाघों को लाया जाना है. जिसमें से चार को राजाजी में नया आशियाना दिया जा चुका है. इसमें तीन बाघिन और एक बाघ शामिल है.
राजाजी टाइगर रिजर्व को पूर्व और पश्चिम दो हिस्सों में देखा जाता है. जिसमें कल बाघों की संख्या 55 हो चुकी है. इनमें से चार वही बाघ हैं जिन्हें कॉर्बेट से लाया गया था. चौंकाने वाली बात यह है कि राजा जी टाइगर रिजर्व के पूर्वी हिस्से में ही अकेले करीब 50 से 51 बाघ हैं. पश्चिमी राजाजी क्षेत्र में केवल तीन से चार बाघ ही मौजूद हैं. वह भी कॉर्बेट से लाए हुए बाघ ही यहां निवास कर रहे हैं. कॉर्बेट टाइगर रिजर्व से राजाजी में बाघों को लाने का एक मकसद यही है कि इसके पश्चिमी हिस्से में भी बाघों की संख्या को बढ़ाया जाए जहां अब तक गिने चुने ही बाघ हैं.
टाइगर कंजर्वेशन प्लान का सीधा मकसद राजाजी में बाघों पर एक्शन प्लान तैयार कर उनके संरक्षण के लिए फोकस करना है. इस संरक्षण प्लान के लागू होने के बाद राजाजी में कई बड़े बदलाव हो सकेंगे. टाइगर कंजर्वेशन प्लान पर अभी फिलहाल उत्तराखंड के स्तर से ही अंतिम निर्णय लिया जा रहा है. इसके बाद NTCA और केंद्रीय वन मंत्रालय में भी इसे मंजूरी के लिए भेजा जाएगा. बताया जा रहा है कि टाइगर कंजर्वेशन प्लान के तहत कोर जोन के अलावा बफर जोन पर भी एक्शन प्लान तैयार हुआ है.
इसके तहत हरिद्वार और लैंसडाउन वन प्रभाग के कुछ हिस्से जिस पर इन्ही वन प्रभागों द्वारा कंट्रोल किया जाता है. उसे राजाजी के कंट्रोल में लाने की योजना है. उधर राजाजी क्षेत्र में रहने वाले गुर्जरों के पुनर्वास पर भी काम किया जाएगा. टाइगर रिजर्व के लिए स्पेशल फंड से लेकर यहां पर होने वाली गतिविधियों को भी इसी प्लान के तहत तय किया जाएगा.
प्रदेश में कॉर्बेट टाइगर रिजर्व में बाघों की लगातार बढ़ रही संख्या और केयरिंग कैपेसिटी से ज्यादा होते बाघ समस्या बनते रहे हैं. इस स्थिति में राजा जी टाइगर रिजर्व का पश्चिमी हिस्सा इस बड़ी समस्या के समाधान के रूप में काम में लाया जा सकता है. दरअसल, यह क्षेत्र 100 से ज्यादा बाघों के लिए मुफीद है. ऐसे में यदि कॉर्बेट से यहां और बाघ भी प्रोजेक्ट के तहत ले जाते हैं तो वन विभाग एक तीर से दो निशाने लगा सकता हैं.
पढे़ं-उत्तराखंड में जमकर हो रहा हरे पेड़ों का कटान! आंकड़े कर रहे तस्दीक