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चैत्र नवरात्रि 2024: तुलजा मंदिर में दर्शन मात्र से हर मन्नत होती है पूरी! मराठों ने किया था इस मंदिर का निर्माण - devi tulja bhawani temple panipat

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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Apr 14, 2024, 4:18 PM IST

Chaitra Navratri 2024: चैत्र नवरात्रि 2024 को लेकर भक्तों में खासा उत्साह देखने को मिल रहा है. वहीं, नवरात्रि के समय पानीपत में प्राचीन मराठा मंदिर में सुबह से लेकर शाम तक भक्तों का तांता लगा रहता है. मान्यता है कि नवरात्रि में पूजा-अर्चना से माता रानी अपने भक्तों पर विशेष कृपा बरसाती हैं.

devi tulja bhawani temple panipat
तुलजा मंदिर का इतिहास
तुलजा मंदिर का इतिहास

पानीपत: इन दिनों शक्ति की देवी मां दुर्गा उपासना महापर्व चैत्र नवारात्रि को लेकर भक्त भारी संख्या में माता के मंदिर पहुंच रहे हैं. हरियाणा के ऐतिहासिक मंदिरों में से एक मंदिर है पानीपत का देवी मंदिर. यह मंदिर पानीपत में युद्ध के दौरान मराठों ने बनवाया था. हरियाणा के ऐतिहासिक धरोहर में से ऐतिहासिक देवी मंदिर भी एक धरोहर है. इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु मन्नत मांगने के लिए आते हैं.

क्या है तुलजा मंदिर का इतिहास?: देवी मंदिर के पुजारी लालमणि पांडेय ने बताया कि पानीपत के ऐतिहासिक एवं प्राचीन मराठा देवी मंदिर का इतिहास बहुत ही पुराना है. इस मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में मराठा सरदार सदाशिव भाऊ द्वारा करवाया गया था. उन्होंने कहा कि मराठों में देवी मां की प्रति अटूट श्रद्धा थी. लोगों का मानना है कि इस प्राचीन मराठा देवी मंदिर में जो भी सच्ची श्रद्धा के साथ मनोकामना मांगते हैं, वह अवश्य पूर्ण होती है.

मंदिर के बाहर बने तालाब का निर्माण: जनश्रुतियों के अनुसार मराठों द्वारा ही इस मंदिर के बाहर बने तालाब का निर्माण करवाया गया था. इतिहासकार रमेश पुहाल के अनुसार यहां मंदिर पहले से ही कि बना हुआ था, लेकिन पहले यह मंदिर इतना विशाल नहीं था जितना आज के समय में है. 1761 में मुगलों और मराठों की लड़ाई में जब सदाशिव भाऊ अपनी फौज के साथ दिल्ली फतह करने के बाद पूरा फतह करने की तैयारी में कुरुक्षेत्र की ओर जा रहे थे, तभी वहां से सदाशिव भाऊ की फौज ने सुना कि अहमद शाह अब्दाली ने फिर से आक्रमण कर दिया है. मुहम्मद शाह अब्दाली की सेना सोनीपत के गन्नौर के पास पहुंच चुकी है तो वहां से मराठों की फौज वापस पानीपत आ गई और एक सुरक्षित स्थान ढूंढते हुए पानीपत के उस जगह पहुंच गई जहां आज यहां देवी मंदिर है.

देवी तुलजा की मूर्ति: देवी मंदिर में उस समय पुजारी वाले राम पंडित हुआ करते थे और उन्होंने वाले राम पंडित के साथ मिलकर पूरे देवी मंदिर का निरीक्षण किया और अपनी फौज को रोकने के लिए कहा पेशवाओं की महिला अपने साथ देवी तुलजा भवानी की मूर्ति ले कर आई थी, जिसकी वह सुबह शाम पूजा किया करती थीं. तालाब के साथ ही महिलाओं ने इस मूर्ति को स्थापित कर दिया और पूजा अर्चना करने लगीं. 1761 के युद्ध के बाद मराठी यहां से ग्वालियर चले गए. 10 साल बाद 1771 में मराठों ने यहां दोबारा पहुंचकर एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवाया और देवी तुलजा की मूर्ति भी वहीं स्थापित कर दी.

नायाब हीरो से बनी हुई थी मूर्ति: श्रद्धालुओं का मानना है कि देवी तुलजा भवानी की मूर्ति जो पेशवा साथ लाए थे. उसके ऊपर हीरे जड़े हुए थे और आज वह हीरे सिर्फ मूर्ति की आंखों में ही है. आज की मूर्ति को देखने पर उसकी आंखों में अजब सी चमक दिखाई पड़ती है. हर साल शारदीय और चैत्र नवरात्रि में यहां बड़ा विशाल मेला लगता है. इस मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. मान्यता है कि मंदिर में आने वाले हर एक श्रद्धालुओं की मान्यता पूरी होती है.

ये भी पढ़ें: दुख भंजनी मंदिर: उत्तर भारत का एकमात्र मंदिर... जहां नवरात्रि में दूध से होता है मां काली का स्नान

ये भी पढ़ें: हरियाणा का एक मात्र शक्तिपीठ, मन्नत के लिए चढ़ाए जाते हैं घोड़े, यहां मांगी गई हर मन्नत होती है पूरी

तुलजा मंदिर का इतिहास

पानीपत: इन दिनों शक्ति की देवी मां दुर्गा उपासना महापर्व चैत्र नवारात्रि को लेकर भक्त भारी संख्या में माता के मंदिर पहुंच रहे हैं. हरियाणा के ऐतिहासिक मंदिरों में से एक मंदिर है पानीपत का देवी मंदिर. यह मंदिर पानीपत में युद्ध के दौरान मराठों ने बनवाया था. हरियाणा के ऐतिहासिक धरोहर में से ऐतिहासिक देवी मंदिर भी एक धरोहर है. इस मंदिर में दूर-दूर से श्रद्धालु मन्नत मांगने के लिए आते हैं.

क्या है तुलजा मंदिर का इतिहास?: देवी मंदिर के पुजारी लालमणि पांडेय ने बताया कि पानीपत के ऐतिहासिक एवं प्राचीन मराठा देवी मंदिर का इतिहास बहुत ही पुराना है. इस मंदिर का निर्माण 18वीं सदी में मराठा सरदार सदाशिव भाऊ द्वारा करवाया गया था. उन्होंने कहा कि मराठों में देवी मां की प्रति अटूट श्रद्धा थी. लोगों का मानना है कि इस प्राचीन मराठा देवी मंदिर में जो भी सच्ची श्रद्धा के साथ मनोकामना मांगते हैं, वह अवश्य पूर्ण होती है.

मंदिर के बाहर बने तालाब का निर्माण: जनश्रुतियों के अनुसार मराठों द्वारा ही इस मंदिर के बाहर बने तालाब का निर्माण करवाया गया था. इतिहासकार रमेश पुहाल के अनुसार यहां मंदिर पहले से ही कि बना हुआ था, लेकिन पहले यह मंदिर इतना विशाल नहीं था जितना आज के समय में है. 1761 में मुगलों और मराठों की लड़ाई में जब सदाशिव भाऊ अपनी फौज के साथ दिल्ली फतह करने के बाद पूरा फतह करने की तैयारी में कुरुक्षेत्र की ओर जा रहे थे, तभी वहां से सदाशिव भाऊ की फौज ने सुना कि अहमद शाह अब्दाली ने फिर से आक्रमण कर दिया है. मुहम्मद शाह अब्दाली की सेना सोनीपत के गन्नौर के पास पहुंच चुकी है तो वहां से मराठों की फौज वापस पानीपत आ गई और एक सुरक्षित स्थान ढूंढते हुए पानीपत के उस जगह पहुंच गई जहां आज यहां देवी मंदिर है.

देवी तुलजा की मूर्ति: देवी मंदिर में उस समय पुजारी वाले राम पंडित हुआ करते थे और उन्होंने वाले राम पंडित के साथ मिलकर पूरे देवी मंदिर का निरीक्षण किया और अपनी फौज को रोकने के लिए कहा पेशवाओं की महिला अपने साथ देवी तुलजा भवानी की मूर्ति ले कर आई थी, जिसकी वह सुबह शाम पूजा किया करती थीं. तालाब के साथ ही महिलाओं ने इस मूर्ति को स्थापित कर दिया और पूजा अर्चना करने लगीं. 1761 के युद्ध के बाद मराठी यहां से ग्वालियर चले गए. 10 साल बाद 1771 में मराठों ने यहां दोबारा पहुंचकर एक छोटे से मंदिर का निर्माण करवाया और देवी तुलजा की मूर्ति भी वहीं स्थापित कर दी.

नायाब हीरो से बनी हुई थी मूर्ति: श्रद्धालुओं का मानना है कि देवी तुलजा भवानी की मूर्ति जो पेशवा साथ लाए थे. उसके ऊपर हीरे जड़े हुए थे और आज वह हीरे सिर्फ मूर्ति की आंखों में ही है. आज की मूर्ति को देखने पर उसकी आंखों में अजब सी चमक दिखाई पड़ती है. हर साल शारदीय और चैत्र नवरात्रि में यहां बड़ा विशाल मेला लगता है. इस मेले में दूर-दूर से श्रद्धालु आते हैं. मान्यता है कि मंदिर में आने वाले हर एक श्रद्धालुओं की मान्यता पूरी होती है.

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