बाराबंकी: बाराबंकी की राजनीतिक स्थितियां आज भले ही बदल गई हों. लेकिन, कभी यह सोशलिस्टों का गढ़ हुआ करता था.आजादी के बाद साल 1957 में बाराबंकी में उस वक्त समाजवाद का बीज अंकुरित हुआ था, जब लोकसभा के दूसरे आम चुनाव में यहां से प्रत्याशी रहे रामसेवक यादव ने कांग्रेस उम्मीदवार को परास्त कर दिया था. बाराबंकी में उस वक्त समाजवाद की मजबूती का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है, कि साल 62 में हुए तीसरे लोकसभा के आम चुनाव में यूपी में उस वक्त के तमाम सोशलिस्ट नेता परास्त हो गए थे, जिनमें सोशलिस्ट पार्टी के फाउंडर डॉ. राममनोहर लोहिया भी शामिल थे. वहीं, बाराबंकी में सोशलिस्ट नेता रामसेवक यादव ने जीत का अपना परचम लहरा दिया था.
कौन थे रामसेवक यादव: रामसेवक यादव का जन्म हैदरगढ़ के ताला रुकुनुद्दीनपुर में 02 जुलाई 1926 को एक किसान परिवार में हुआ था.उनके पिता रामगुलाम यादव एक साधारण किसान थे.रामसेवक यादव की प्राथमिक शिक्षा ग्राम बेहटा ताला में ही हुई.मिडिल की शिक्षा उन्होंने अपने एक करीबी रिश्तेदार के घर पर रहकर चिनहट लखनऊ के पास से प्राप्त की. कक्षा 7 की शिक्षा के लिए बाराबंकी के सिटी मिडिल स्कूल में दाखिला लिया. सिटी मिडिल स्कूल से कक्षा 8 तक शिक्षा प्राप्त करने के बाद उन्होंने हाई स्कूल की शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्थानीय राजकीय हाई स्कूल मे दाखिला लिया. इंटर मीडियट की शिक्षा रामसेवक यादव ने कान्य कुब्ज इंटर कॉलेज से पूरी की. उच्च शिक्षा स्नातक और विधि स्नातक की उपाधि उन्होंने लखनऊ विश्व विद्यालय से ग्रहण की.कॉलेज के दिनों से ही वह छात्र आंदोलनों में भाग लेने लगे थे. साल 1946 से 51 तक रामसेवक यादव ने स्टूडेंट कांग्रेस के आंदोलनों में हिस्सा लिया और कई बार गिरफ्तार हुए.
साल 1953-54 में उंन्होने गन्ना आंदोलन में हिस्सा लिया. इसके बाद उन्होंने नहर विभाग द्वारा वसूल की जाने वाली लगान के विरुद्ध आंदोलन किया. जिसमें उन्हें जेल जाना पड़ा. लखनऊ विश्वविद्यालय से एलएलबी की डिग्री हासिल की. इसके बाद रामसेवक यादव ने बाराबंकी जनपद में वकालत शुरू कर दी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से जुड़ गए.जल्द ही वे समाजवादी राजनीति के सक्रिय सिपाही हो गए.
साल 51 में लड़ा था पहला चुनाव: देश आजाद हुआ और साल 51 में पहले आम चुनाव हुए, तो उन्होंने रामसनेहीघाट विधानसभा सीट से चुनाव लड़ा.उस वक्त बाराबंकी जिले में 09 विधायक चुने जाते थे. बाराबंकी उत्तरी सीट से 2,फतेहपुर उत्तरी सीट से 01,नवाबगंज उत्तरी सीट से 01,फतेहपुर दक्षिणी सीट से 01,नवाबगंज दक्षिणी सीट से 02 और रामसनेही घाट सीट से दो विधायक चुने जाने थे. कांग्रेस के महंत जगन्नाथ बक्श दास, कांग्रेस से बाबूलाल कुशमेश,भारतीय जनसंघ से कैलाश चंद्रा,किसान मजदूर प्रजा पार्टी से चेतराम और महफूज अहमद किदवाई,यूपी प्रजा पार्टी से राम दुलारे से इनका मुकाबला हुआ. लेकिन, 4229 वोट पाकर ये चुनाव हार गए. इसके बाद वह प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में शामिल हो गए.
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पहली बार उपचुनाव में जीतकर बने विधायक: साल 52 में उन्हें पार्टी का ज्वाइंट सेक्रेटरी बना दिया गया. डॉ लोहिया ने जब प्रजा सोशलिस्ट पार्टी से अलग होकर अपनी सोशलिस्ट पार्टी लोहिया बनाई, तो वे इसमें शामिल हो गए. वरिष्ठ पत्रकार हशमतउल्ला बताते हैं कि साल 1955 में फतेहपुर दक्षिणी सीट से जो आज रामनगर विधानसभा सीट है, वहां से विधायक रहे भगवती प्रसाद शुक्ला की हत्या हो गई. इसके बाद इस सीट पर उपचुनाव हुए. रामसेवक यादव ने इस उपचुनाव में जीत दर्ज की और इस तरह वह पहली बार विधायक बने. इसके साथ ही जिले में समाजवाद की बुनियाद पड़ी. जल्द ही वे उत्तरप्रदेश में सोशलिस्ट पार्टी के प्रमुख स्तम्भ हो गए.
साल 57 में पहली बार बने सांसद: रामसेवक यादव डॉ. लोहिया के सबसे विश्वस्त साथियों में से थे. उन दिनों कांग्रेस पार्टी का दबदबा होने के बावजूद भी साल 1957 में हुए दूसरे आम चुनाव में उंन्होने पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ा और जीत दर्ज कर पहली बार संसद पहुंचे. साल 1952 में जयप्रकाश नारायण और आचार्य नरेन्द्रदेव के नेतृत्व वाली सोशलिस्ट पार्टी का जेबी कृपलानी के नेतृत्व वाली किसान मजदूर प्रजा पार्टी में विलय हो गया. इस तरह साल 52 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी वजूद में आई. कुछ वर्षो तक तो सब ठीक ठीक रहा. लेकिन, पार्टी की नीतियों से नाराज होकर डॉ. राममनोहर लोहिया के नेतृत्व में कुछ लोग पार्टी से अलग हो गए. साल 1955 में डॉ. राममनोहर लोहिया ने एक अलग पार्टी बना ली.जिसे, सोशलिस्ट पार्टी लोहिया नाम दिया गया.
साल 62 में लोहिया हारे लेकिन रामसेवक जीते: साल 1962 के चुनाव में सोशलिस्ट पार्टी ने राजस्थान, वेस्ट बंगाल,मनीपुर और उत्तरप्रदेश में चुनाव लड़ा पार्टी ने कुल 107 सीटों पर चुनाव लड़ा.अकेले उत्तरप्रदेश में 51 उम्मीदवार थे. लेकिन, उत्तरप्रदेश में डॉ. लोहिया जैसे तमाम दिग्गज सोशलिस्ट नेता चुनाव हार गए. यह रामसेवक की मकबूलियत ही थी कि उत्तरप्रदेश से अकेले रामसेवक यादव बाराबंकी से चुनाव जीतकर संसद पहुंचने वाले नेता थे. पूरे देश मे कुल 6 उम्मीदवार ही जीते थे. साल 62 मे रामसेवक यादव बाराबंकी लोकसभा सीट से चुनाव लड़कर जीत गए थे. लेकिन, डॉ. राममनोहर लोहिया ने फूलपुर लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा था. वह पंडित जवाहरलाल नेहरू से चुनाव हार गए थे.साल 63 में फरूखाबाद सीट से उपचुनाव लड़कर डॉ. लोहिया भी संसद पहुंच गए थे.
साल 67 में तीसरी बार बने सांसद: साल 1964 में प्रजा सोशलिस्ट पार्टी में विभाजन हो गया. प्रजा सोशलिस्ट पार्टी और सोशलिस्ट पार्टी का विलय हुआ. इस तरह संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी वजूद में आई. इसी संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी में लोहिया की सोशलिस्ट पार्टी भी शामिल हो गई. साल 1967 के चौथे आम चुनाव में रामसेवक यादव संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी से बाराबंकी से उम्मीदवार बने और जीत कर तीसरी बार संसद पहुंचे.
डॉ. लोहिया की विचारधारा साफ झलकती थी: रामसेवक यादव ने जिले में सोशलिस्टों का एक बहुत अच्छा संगठन बनाया था. यही वजह रही, कि जहां वे लोकसभा सदस्य चुने जाने लगे तो उनके साथ तमाम विधायक भी उत्तरप्रदेश विधानसभा में पहुंचते थे.रामसेवक यादव पर डॉ. राममनोहर लोहिया की विचारधारा और आचरण की गहरी छाप थी. वे एक सीधे साधे राजनीतिज्ञ थे.उनके लिबास से भी उनकी सादगी झलकती थी. धोती और कुर्ता उनका खास पहनावा था. सादा भोजन और उच्च आचरण उनके जीवन की खास पहचान थी. अपनापन और खुलापन होने के चलते उनके साथियों में उनकी गहरी पैठ थी. हमेशा गांव, गरीबों और पिछड़ों के लिए सदन में आवाज बुलंद करने वाले रामसेवक यादव 22 नवम्बर 1974 को इस दुनिया से अलविदा कह गए.
अब तक जीते प्रत्याशी
वर्ष पार्टी विनर
1951 कांग्रेस मोहन मेहरोत्रा
1957 निर्दल रामसेवक यादव
1962 सोशलिस्ट पार्टी रामसेवक यादव
1967 संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी रामसेवक यादव
1971 कांग्रेस कुंवर रुद्र प्रताप सिंह
1977 भारतीय लोकदल राम किंकर रावत
1980 जनता पार्टी सेकुलर राम किंकर रावत
1984 कांग्रेस कमला प्रसाद रावत
1989 जनता दल रामसागर रावत
1991 जनता पार्टी रामसागर रावत
1996 समाजवादी पार्टी रामसागर रावत
1998 भाजपा बैजनाथ रावत
1999 समाजवादी पार्टी रामसागर रावत
2004 बहुजन समाज पार्टी कमला प्रसाद रावत
2009 कांग्रेस पीएल पूनिया
2014 भाजपा प्रियंका रावत
2019 भाजपा उपेंद्र सिंह रावत
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