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लखीसराय के इस आदिवासी बहुल गांव में सुविधाओं का घोर अभाव, बेरंग जिंदगी काटने को लोग मजबूर

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : Mar 21, 2024, 11:09 AM IST

लखीसराय के आदिवासी गांव में सुविधाओं का घोर अभाव
लखीसराय के आदिवासी गांव में सुविधाओं का घोर अभाव

Lakhisarai Kacchua Village: लखीसराय के इस आदिवासी गांव में आजादी के इतने सालों बाद भी स्थिति जस की तस बनी हुई है. यहां के लोग विकास के नाम पर आंसू बहा रहे हैं क्योंकि इनके पास और दूसरा विकल्प नहीं है. शिक्षा, सड़क, पीने का पानी के साथ वो तमाम मूलभूत सुविधाएं जो, उन्हें मिलनी चाहिए, वह नहीं मिल रही है.

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लखीसराय: बिहार में विकास के दावे किए जा रहे हैं, लेकिन लखीसराय जिले से आई तस्वीर सारे खोखले दावों की पोल खोलती है. जिला मुख्यालय से महज 25 किलोमीटर दूर चानन प्रखंड के दर्जनों गांव विकास की परिभाषा से अनजान हैं. कछुआ गांव में रहने वाले आदिवासी किसी तरह जिंदगी काटने को मजबूर हैं. यहां ना तो पक्की सड़क है, ना शिक्षा, ना पानी और ना ही बिजली की कोई खास व्यवस्था.

विकास से कोसों दूर कछुआ गांव: बता दें कि गांव की आबादी कुल 300 है, यहां के रहने वाले बच्चे अपनी शिक्षा को लेकर गांव से दस किलोमीटर दूर मननपुर हाई स्कूल और कोचिंग पढ़ने के लिए जाते हैं. जब ग्रामीणों से इस मामले पर बात की गई, तो उन्होंने सरकार पर अपनी भड़ास निकाली. उन्होंने कहा कि गांव से बाजार जाने के लिए पक्की सड़क की व्यवस्था नहीं है. उन्हें किसी भी काम के लिए 10 किलोमीटर दूर मननपुर बाजार जाना पड़ता है.

ग्रामीण कररहे सरकार से अपने हक की मांग
ग्रामीण कररहे सरकार से अपने हक की मांग

"दस किलोमीटर सफर करने के लिए सड़कों की हालत बदत्तर है. सड़क का निर्माण कार्य शुरू किया गया था, लेकिन वन विभाग के अधिकारियों ने सड़क निर्माण पर रोक लगा दिया. गांव में एक कुआं है, उसी के सहारे उनका प्यास बुझता है. एक भी नलजल योजना सरकार के माध्यम से हमलोगों के घर तक नहीं पहुंची है, जिसके कारण काफी दिक्कत होती है. बच्चों की पढ़ाई में भी दिक्कत होती है."- स्थानीय

मनमाने तरीके से चलता है गांव का स्कूल: बता दें कि गांव के कछुआ स्कूल में ताला लटका रहता है. ईटीवी भारत के संवाददाता ने ग्राउंड पर जाकर जब स्थिति का जायजा लिया, तो स्कूल में कोई उपस्थित नहीं था. वहां के टोला सेवक ने विद्यालय के प्रधान शिक्षक को सूचना दी, जिसके आधे घंटे बाद लगभग 11 बजे स्कूल खोला गया. जिसके बाद टोला सेवक ने जाकर बच्चों को स्कूल बुलाया. स्कूल के अंदर जाने पर पता चला की उसकी स्थिति काफी जर्जर है, क्लासरूम में गंदगी का अंबार लगा हुआ है. बच्चे भी बिना यूनिफॉर्म के आते हैं, वहीं शिक्षक भी नदारद रहते हैं.

मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर गांव
मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर गांव

दूर रहने पर आने में देरी- प्रधान शिक्षक: विघालय के प्रधान शिक्षक का कहना है कि मननपुर बाजार से कछुआ विघालय में आने जाने में काफी दिक्कत होती है. यहां कोई सुविधा नहीं दी जा रही है, जिस वजह से वे लोग सही तरीके से स्कूल संचालित नहीं करवा पा रहे हैं. वहीं बच्चों की उपस्थिति के सवाल पर बताया कि स्कूल में 220 छात्रों का नामांकन है, लेकिन सिर्फ 30 बच्चे ही उपस्थित थे.

"आज विद्यालय का कुछ सामान भी खरीदना था, इस कारण से विद्यालय लेट से पहुंचा. स्कूल में शौचालय नहीं है, पानी नहीं है. सब कुछ खुद करना पड़ता है. कोई सुविधा नहीं दी जा रही है."- मसीस सोरेन, प्रधान शिक्षक

"हमलोग दो महीना से पदभार संभाले हैं. स्कूल में पानी और शौचालय की व्यवस्था नहीं है. स्कूल में जो बच्चे पढते हैं, उनके पास ड्रेस होते हुए भी नहीं पहनते हैं. कोई बोलता नहीं है, हमलोग डांटते हैं तो ग्रामीण हमपर ही दबाव बनाते हैं."- आरती कुमारी, बीपीएससी शिक्षिका

डीएम ने कही कार्रवाई की बात: इस संबध में लखीसराय के जिला अधिकारी रजनीकांत ने बताया कि शिक्षकों और बच्चों की अनुपस्थिति की शिकायत मिली है. शिक्षिकों से इस संबध में बात की जायेगी. वहीं विघालय में पढ़ने वाले छात्र-छात्राओं के नामांकण के साथ उपस्थिति और अनुपस्थिति की जानकारी ली जाएगी. गांव में जाने के लिए सड़क की दिक्कत है. एक सड़क की स्वीकृति मिली भी लेकिन वन क्षेत्र में होने के कारण नहीं बन पाया है.

गलत तरीके से स्कूलों का संचालन
गलत तरीके से स्कूलों का संचालन

"जहां की शिकायत मिली है, आज ही उसकी जांच कराते है. विद्यालय में शिक्षक और बच्चों की क्या उपस्थिति है. विद्यालय की क्या स्थिति है, सब कुछ जांच कर कार्रवाई की जाएगी."- रजनीकांत, डीएम

बिहार सरकार के आदेश का पालन नहीं: बता दें कि बिहार सरकार के द्वारा पहले से ही जिला अधिकारी को गांवों का भ्रमण कर विकास का हाल लेना था, हर बुधवार को समस्याओं को सुनने की रूटीन भी बनी हुई थी. इसके बाद भी चानन प्रखंड के नक्सल प्रभावित इलाकों और घोर जंगलों में रहने वाले आदिवासियों को यह सुविधा नहीं मिल पाई है.

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