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ये होनहार एथलीट आर्थिक तंगी के चलते बने प्रवासी मजदूर, जानिए इनकी दर्द भरी कहानी - Malda Athletes

मालदा के ये होनहार एथलीट राष्ट्रीय और राज्य स्तर पर धमाकेदार प्रदर्शन कर चुके हैं. लेकिन गरीबी और पेट पालने की मजबूरी ने इन्हें कब एथलीट से प्रवासी मजदूर बना दिया, ये इन्हें भी नहीं पता चला, आइए इनकी दर्ज भरी कहानी के बारे में जानते हैं...

Malda athletes
एथलीट (ETV Bharat)
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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Jun 12, 2024, 9:36 PM IST

मालदा: खेल और हुनर गरीबी और अमीरी नहीं देखते हैं. ऐसा ही मालदा के प्रवासी मजदूरों के साथ है. ये अपने हुनर के दम पर शानदार एथलीट बनकर उभरे हैं. इनमें भी प्रतिभा थी, लेकिन उसे निखारा नहीं गया. ज्यादातर मामलों में प्रतिभा गरीबी में दब कर रह गई. उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते, लेकिन उपलब्धियों के पीछे पैसा नहीं लगा और अब वे प्रवासी मजदूर हैं. लेकिन, फिर भी वे एक बार मैदान पर राज करने के बाद मैदान को नहीं भूल पाए. इसलिए जब वे घर लौटते हैं, तो अपने हुनर ​​को और निखारते हैं. मालदा के ये प्रवासी मजदूर एथलीट चाहते हैं कि सरकार उनके लिए कुछ करे. मालदा के बिद्युत, बिवेक, बिस्वजीत और रिजवान की प्रतिभा उन्हें मुकाम दिला सकती थी. उन्होंने मैदान की हरियाली पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है.

Malda athletes
एथलीट (ETV Bharat)

मसलन, इंग्लिशबाजार के फुलबरिया पंचायत के बिनपारा गांव निवासी 24 वर्षीय बिद्युत चौधरी नघरिया स्कूल में पढ़ते थे. भाला फेंक खिलाड़ी बिद्युत अपने स्कूल के शिक्षक पुलकुमार झा से प्रेरित होकर मैदान में उतरे. बिबेक ने ईटीवी भारत से कहा, 'मैं ओडिशा में काम करता हूं. पहले मैं मजदूरी करता था. अब मैं वहां सुरक्षा गार्ड का काम करता हूं. मैं भाला फेंक खिलाड़ी हूं. मैंने 2014 में भाला फेंकना सीखा. मैंने 2020 तक खेल खेला. खेलते समय मेरी कोहनी में चोट लग गई. आर्थिक समस्याओं के कारण मैं उचित इलाज नहीं करा सका. मुझे विदेश में काम करने के लिए जाना पड़ रहा है. मैं छुट्टी लेकर घर आया हूं. मैंने तीन बार राष्ट्रीय मीट में भाग लिया और दूसरे और तीसरे स्थान पर रहा. अगर मेरी कोहनी का इलाज हो जाता तो मैं फिर से मैदान छोड़ने के बारे में नहीं सोच सकता था'.

एथलीट
Malda athletes (ETV Bharat)

बिस्वजीत घोष ट्रैक एंड फील्ड एथलीट भी हैं. 21 वर्षीय एथलीट ने ऊंची कूद और लंबी कूद स्पर्धाओं में राज्य स्तर पर खेला है. उनका घर इंग्लिश बाजार के फुलबरिया गांव में है और पेशे से प्रवासी मजदूर हैं. खेल के प्रति अपने रुझान के कारण वे मालदा अपने घर लौट आए. बिस्वजीत ने कहा, 'मुझे खेल बहुत पसंद है. मैं 2014 से ही इसमें लगा हुआ हूं. मैंने राज्य स्तर पर ऊंची और लंबी कूद में भी खेला है. मैंने राज्य स्तर पर पांच बार ऊंची कूद में स्वर्ण पदक जीता है. मैंने विभिन्न राज्यों के क्लबों के लिए भी खेला है. मैंने पिछले साल ईस्ट बंगाल क्लब के लिए खेला था. मैं ईस्ट बंगाल क्लब से राज्य स्तर का चैंपियन बना. हमारे देश में खिलाड़ियों का कोई भविष्य नहीं है. अगर आप राज्य के बाहर खेलना चाहते हैं, तो आप एक महीने के लिए भी खेल नहीं छोड़ पाएंगे. मैं तमिलनाडु से वापस आया हूं'.

Malda athletes
एथलीट (ETV Bharat)

कालियाचक के राजनगर गांव के 23 वर्षीय बिबेक मंडल भी ट्रैक एंड फील्ड एथलीट हैं. उन्होंने कहा, 'परिवार की आर्थिक समस्याओं के कारण मुझे स्नातक के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी. बचपन से ही मेरा झुकाव खेल की ओर था, लेकिन परिवार के भरण-पोषण के लिए मैं विदेश में मजदूरी करने चला गया. धान की रोपाई के मौसम में मैं अपने पिता की मदद करने के लिए घर वापस आया. मैं 100 मीटर और 200 मीटर स्प्रिंट में भी भाग लेना चाहता था, लेकिन मुझे 2015 से 2021 तक हर दिन खेल छोड़ना पड़ा. मैं देश के लिए खेलना चाहता हूं. मैं जल्द ही ट्रायल के लिए बांग्लादेश जाऊंगा.

बिबेक कहते हैं, 'मैं ही नहीं, मेरे जैसे कई एथलीट अब पेट की समस्याओं के कारण प्रवासी मजदूर बन गए हैं. भाला फेंक खिलाड़ी जमाल अंसारी, धावक अमित पाल, कौल अख्तर समेत कई अन्य पेट की समस्याओं के कारण विदेश में काम कर रहे हैं. इस जिले के हमारे जैसे कई लड़के खेलों में बहुत आगे जा सकते थे. लेकिन हम उचित आहार के बिना ऐसा नहीं कर सकते'.

ये खबर भी पढ़ें : कतर के विवादास्पद गोल पर भड़के भारतीय फुटबॉल कोच, बोले- 'यह मेरे लड़को के साथ अन्याय'

मालदा: खेल और हुनर गरीबी और अमीरी नहीं देखते हैं. ऐसा ही मालदा के प्रवासी मजदूरों के साथ है. ये अपने हुनर के दम पर शानदार एथलीट बनकर उभरे हैं. इनमें भी प्रतिभा थी, लेकिन उसे निखारा नहीं गया. ज्यादातर मामलों में प्रतिभा गरीबी में दब कर रह गई. उन्होंने राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर पदक जीते, लेकिन उपलब्धियों के पीछे पैसा नहीं लगा और अब वे प्रवासी मजदूर हैं. लेकिन, फिर भी वे एक बार मैदान पर राज करने के बाद मैदान को नहीं भूल पाए. इसलिए जब वे घर लौटते हैं, तो अपने हुनर ​​को और निखारते हैं. मालदा के ये प्रवासी मजदूर एथलीट चाहते हैं कि सरकार उनके लिए कुछ करे. मालदा के बिद्युत, बिवेक, बिस्वजीत और रिजवान की प्रतिभा उन्हें मुकाम दिला सकती थी. उन्होंने मैदान की हरियाली पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है.

Malda athletes
एथलीट (ETV Bharat)

मसलन, इंग्लिशबाजार के फुलबरिया पंचायत के बिनपारा गांव निवासी 24 वर्षीय बिद्युत चौधरी नघरिया स्कूल में पढ़ते थे. भाला फेंक खिलाड़ी बिद्युत अपने स्कूल के शिक्षक पुलकुमार झा से प्रेरित होकर मैदान में उतरे. बिबेक ने ईटीवी भारत से कहा, 'मैं ओडिशा में काम करता हूं. पहले मैं मजदूरी करता था. अब मैं वहां सुरक्षा गार्ड का काम करता हूं. मैं भाला फेंक खिलाड़ी हूं. मैंने 2014 में भाला फेंकना सीखा. मैंने 2020 तक खेल खेला. खेलते समय मेरी कोहनी में चोट लग गई. आर्थिक समस्याओं के कारण मैं उचित इलाज नहीं करा सका. मुझे विदेश में काम करने के लिए जाना पड़ रहा है. मैं छुट्टी लेकर घर आया हूं. मैंने तीन बार राष्ट्रीय मीट में भाग लिया और दूसरे और तीसरे स्थान पर रहा. अगर मेरी कोहनी का इलाज हो जाता तो मैं फिर से मैदान छोड़ने के बारे में नहीं सोच सकता था'.

एथलीट
Malda athletes (ETV Bharat)

बिस्वजीत घोष ट्रैक एंड फील्ड एथलीट भी हैं. 21 वर्षीय एथलीट ने ऊंची कूद और लंबी कूद स्पर्धाओं में राज्य स्तर पर खेला है. उनका घर इंग्लिश बाजार के फुलबरिया गांव में है और पेशे से प्रवासी मजदूर हैं. खेल के प्रति अपने रुझान के कारण वे मालदा अपने घर लौट आए. बिस्वजीत ने कहा, 'मुझे खेल बहुत पसंद है. मैं 2014 से ही इसमें लगा हुआ हूं. मैंने राज्य स्तर पर ऊंची और लंबी कूद में भी खेला है. मैंने राज्य स्तर पर पांच बार ऊंची कूद में स्वर्ण पदक जीता है. मैंने विभिन्न राज्यों के क्लबों के लिए भी खेला है. मैंने पिछले साल ईस्ट बंगाल क्लब के लिए खेला था. मैं ईस्ट बंगाल क्लब से राज्य स्तर का चैंपियन बना. हमारे देश में खिलाड़ियों का कोई भविष्य नहीं है. अगर आप राज्य के बाहर खेलना चाहते हैं, तो आप एक महीने के लिए भी खेल नहीं छोड़ पाएंगे. मैं तमिलनाडु से वापस आया हूं'.

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एथलीट (ETV Bharat)

कालियाचक के राजनगर गांव के 23 वर्षीय बिबेक मंडल भी ट्रैक एंड फील्ड एथलीट हैं. उन्होंने कहा, 'परिवार की आर्थिक समस्याओं के कारण मुझे स्नातक के बाद पढ़ाई छोड़नी पड़ी. बचपन से ही मेरा झुकाव खेल की ओर था, लेकिन परिवार के भरण-पोषण के लिए मैं विदेश में मजदूरी करने चला गया. धान की रोपाई के मौसम में मैं अपने पिता की मदद करने के लिए घर वापस आया. मैं 100 मीटर और 200 मीटर स्प्रिंट में भी भाग लेना चाहता था, लेकिन मुझे 2015 से 2021 तक हर दिन खेल छोड़ना पड़ा. मैं देश के लिए खेलना चाहता हूं. मैं जल्द ही ट्रायल के लिए बांग्लादेश जाऊंगा.

बिबेक कहते हैं, 'मैं ही नहीं, मेरे जैसे कई एथलीट अब पेट की समस्याओं के कारण प्रवासी मजदूर बन गए हैं. भाला फेंक खिलाड़ी जमाल अंसारी, धावक अमित पाल, कौल अख्तर समेत कई अन्य पेट की समस्याओं के कारण विदेश में काम कर रहे हैं. इस जिले के हमारे जैसे कई लड़के खेलों में बहुत आगे जा सकते थे. लेकिन हम उचित आहार के बिना ऐसा नहीं कर सकते'.

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