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बच्चों को नशे और अपराध से दूर करने के लिये क्रिकेट का ककहरा सिखा रहे हैं ‘गुरू ग्रेग’

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By PTI

Published : Feb 15, 2024, 11:01 AM IST

Updated : Feb 15, 2024, 12:03 PM IST

Gary Kirsten
गैरी क्रिस्टन

2011 विश्व कप में भारतीय टीम को कोचिंग दे चुके 'गुरु ग्रेग' गैरी क्रिस्टन आजकल अश्वेत बच्चों को क्रिकेट सिखा रहे हैं. यह उनकी बच्चों को नशे से दूर रखने और मानसिक शारीरिक रूप से मजबूत रखने की पहल है. पढ़ें पूरी खबर....

केपटाउन : बाईस गज की पिच, एक गेंद बल्ला और विश्व कप विजेता कोच का मार्गदर्शन. दुनिया की सबसे बड़ी झुग्गियों में शामिल खयेलित्शा के बच्चे गैंगवार, गरीबी और ड्रग्स की लत से बचने के लिये क्रिकेट का ककहरा सीख रहे हैं और उन्हें सिखाने वाले कोई और नहीं भारत को 2011 विश्व कप जिताने वाले कोच गैरी कर्स्टन हैं.

अश्वेत बच्चों को बराबरी का दर्जा दिलाने और खेलों में समान मौके मुहैया कराने की यह अनूठी मुहिम ‘गुरू ग्रेग’ की ही है जिन्होंने वंचित तबके के कई बच्चों की जिंदगी बदल दी. दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन से करीब 30 किलोमीटर दक्षिण पूर्व में स्थित खयेलित्शा दुनिया की पांच सबसे बड़ी झुग्गी बस्तियों में शामिल है जिसे ड्रग्स के कारण सबसे असुरक्षित इलाकों में माना जाता है. कर्स्टन का कैच ट्रस्ट फाउंडेशन पूर्व नाम गैरी कर्स्टन फाउंडेशन यहां पांच स्कूलों में पांच से 19 वर्ष की उम्र के एक हजार से ऊपर बच्चों को क्रिकेट का प्रशिक्षण दे चुका है.

पंद्रह बरस के लुखोलो मालोंग ने भाषा से कहा, 'मैं विराट कोहली को प्रेरणा मानता हूं जो मुझे कभी हार नहीं मानने के लिये प्रेरित करते हैं. मैं एक दिन दक्षिण अफ्रीका के लिये खेलना चाहता हूं’ उन्होंने कहा, 'मैं कोहली से कभी हार नहीं मानने का जज्बा, कड़ी मेहनत और कुछ कर दिखाने का जुनून सीखता हूं. मैने उन्हें केपटाउन में मैदान पर देखा है लेकिन एक दिन उनसे मिलना चाहूंगा.

दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के दौरान अश्वेतों को शहर से बाहर करने की कवायद में 1983 में खयेलित्शा बसाया गया. इसमें 25 लाख से अधिक लोग रहते हैं और 99.5 प्रतिशत अश्वेत हैं जिनका जीवन संघर्ष से भरा है. ऐसे में नशे और अपराध का बुरा साया बचपन में ही बच्चों पर पड़ जाता है. कर्स्टन ने भाषा से कहा, 'मैं जब भारत से यहां आया तो केपटाउन में सबसे गरीब इस इलाके का दौरा करने पर देखा कि यहां क्रिकेट क्या कोई खेल नहीं हो रहा है. मुझे बहुत बुरा लगा, मैने तब यह केंद्र बनाने की सोची और शुरूआत दो स्कूलों से करने के बाद अब पांच स्कूलों में केंद्र चला रहे हैं.

लुखोलो के माता पिता घरेलू सहायक का काम करते हैं. वह और उसका दोस्त नौ वर्ष का टायलान उन सैकड़ों बच्चों में से है जो बाईस गज की पिच के बीच जिंदगी के नये मायने तलाश रहे हैं. स्पिन गेंदबाज लुखोलो ने कहा, 'क्रिकेट से मुझे नशे से दूर रहने और अपने शरीर को फिट रखने में मदद मिलती है. मैं एक दिन दक्षिण अफ्रीका के लिये खेलना चाहता हूं. मेरी मां मेरी सबसे बड़ी समर्थक है और मुझे यहां देखकर बहुत खुश होती है'

विकेटकीपर बल्लेबाज टायलान ने कहा, 'यहां आस पड़ोस के लोग बहुत हिंसा करते हैं, इसलिये हम अपना दिन यहां गुजारते हैं. हम 2019 से क्रिकेट खेल रहे हैं. मुझे ऋषभ पंत और जोस बटलर जैसा खिलाड़ी बनना है. यहां 2017 से काम कर रही महिला कोच बबाल्वा जोथे ने कहा, 'इनमें अधिकांश बच्चे खयेलित्शा के वंचित समाज के हैं. उन्हें स्कॉलरशिप और मौके मिल रहे हैं जिससे काफी मदद होती है. हम उन्हें ड्रग्स और अपराध से दूर रहने के लिये क्रिकेट खेलने की प्रेरणा देते हैं.

ट्रस्ट ने 13 बच्चों और दो कोचों को 2019 में इंग्लैंड में विश्व कप देखने का मौका भी दिया जो उनके लिये सपने जैसा था. हाल ही में एमसीसी की टीम ने भी केंद्र का दौरा किया. कोच ने कहा कि बच्चे क्रिकेट के अलावा जीवन जीने का सलीका भी सीख रहे हैं. उन्होंने कहा, 'हाल ही में लड़कियों के लिये सशक्तिकरण कार्यशाला का आयोजन किया गया था जिसमें उन्हें नशे से बचाव और यौन स्वास्थ्य के बारे में जानकारी दी गई'

कर्स्टन ने कहा, 'मेरा मानना है कि प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को निखारने के लिये चार चीजें चाहिये. अच्छे उपकरण, अच्छी सुविधायें, अच्छे कोच और खेलने के लिये मैच. हम उन्हें यही दे रहे हैं और कल को अगर कोई अच्छा खिलाड़ी यहां से निकलता है तो दक्षिण अफ्रीका क्रिकेट के लिये यह हमारी सेवा होगी.

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Last Updated :Feb 15, 2024, 12:03 PM IST
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