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खीर खाने के बाद भगवान बुद्ध को हुई थी ज्ञान की प्राप्ति, ढुंगेश्वरी, सुजाता स्तूप और बोधिवृक्ष से जुड़ी है रोचक कहानी - festival of Buddha Purnima

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By ETV Bharat Bihar Team

Published : May 22, 2024, 11:05 PM IST

Buddha Purnima 2024: हिंदू पंचांग के अनुसार प्रत्येक वर्ष वैशाख माह की पूर्णिमा तिथि को बुद्ध पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है. वैशाख शुक्ल पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा या पीपल पूर्णिमा कहा जाता है. इस बार यह पूर्णिमा 23 मई को मनाई जाएगी. बुद्ध पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी. सुजाता नाम की महिला के खीर खिलाने के बाद हुआ था मध्य मार्ग का बोध. जानिए ढुंंगेश्वरी, सुजाता स्तूप और बोधिवृक्ष से जुड़ी कहानी.

बोधगया में बुद्ध पूर्णिमा के दिन विशेष पूजा अर्चना
बोधगया में बुद्ध पूर्णिमा के दिन विशेष पूजा अर्चना (ETV Bharat)

बुद्ध पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुई थी (ETV Bharat)

गया: बिहार के बोधगया में बुद्ध पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध को ज्ञान प्राप्ति हुई थी. भगवान बुद्ध ने ज्ञान प्राप्ति के लिए कई सालों तक साधना की थी. वे गया के ढुंंगेश्वरी के बाद बकरौर और फिर बोधगया पहुंचे थे. भगवान बुद्ध जब कंकाल शरीर को देखकर सुजाता नाम की महिला ने उन्हें खीर खिलाया था. खीर खाने के बाद भगवान बुद्ध को मध्यम मार्ग का बोध हुआ था. आइए आज आपको बताते हैं कि आखिर राजकुमार सिद्धार्थ कैसे गौतम बुद्ध बने थे.

भगवान बुद्ध
भगवान बुद्ध (ETV Bharat)

ढुंगेश्वरी में 6 वर्षों तक किये थे कठिन तप: ढुंगेश्वरी मंदिर के पुजारी चंदन कुमार पांडे ने बताया कि ज्ञान प्राप्ति के लिए निकले भगवान बुद्ध ने गया के ढुंंगेश्वरी पहाड़ पर स्थित प्रागबोधि गुफा पहुंचे थे. प्राग बोधि गुफा में इन्होंने कठिन तप की थी. करीब 6 साल तक कठिन तप के दौरान उन्होंने अन्न जल भी छोड़ दिया था. इसके कारण उनका शरीर कंकाल रूप में आ गया था. आज भी भगवान बुद्ध की कंकाल रूप में प्रतिमा यहां विराजमान है. ढुंंगेश्वरी में माता दुर्गेश्वरी का मंदिर है. जहां उनकी प्रतिमा स्थापित है.

बोधगया के ढुंंगेश्वरी मंदिर में भगवान बुद्ध की कंकालरूपी प्रतिमा
बोधगया के ढुंंगेश्वरी मंदिर में भगवान बुद्ध की कंकालरूपी प्रतिमा (ETV Bharat)

सुजाता ने खिलायी थी खीर: पुजारी ने बताया कि कई सालों की कठिन साधना के बाद भगवान बुद्ध यहां से पैदल चले. तकरीबन 12 किलोमीटर दूर बकरौर गांव आए और एक बरगद के पेड़ के नीचे साधना करने लगे. वहीं, भगवान बुद्ध के कंकाल रूप को देख यहां एक सुजाता नाम की महिला ने भगवान बुद्ध को जलपान कराया और खीर का प्याला दिया. कहा जाता है कि खीर खाने के बाद भगवान बुद्ध को मध्यम मार्ग का बोध हुआ और वह फिर यहां से चलकर बोधगया के लिए निकल पड़े.

बोधगया में सुजाता स्तूप
बोधगया में सुजाता स्तूप (ETV Bharat)

बोधगया में पीपल के नीचे शुरू की साधना: उन्होंने बताया बकरौर गांव में सुजाता से खीर खाने के बाद वे बोधगया को पहुंचे थे. बोधगया में पहुंचने के बाद उन्होंने साधना शुरू की. एक पीपल के वृक्ष (बोधिवृक्ष) के नीचे ध्यान लगाया. इसके बाद बुद्ध पूर्णिमा के दिन ही उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे राजकुमार सिद्धार्थ से भगवान बुद्ध कहलाए. इस तरह ढुंगेश्वरी में कठिन साधना, बकरौर में सुजाता नाम की ग्वालिन महिला से खीर खाना और बोधगया में पीपल के वृक्ष के नीचे साधना से राजकुमार सिद्धार्थ भगवान बुद्ध बने और बुद्धत्व की प्राप्त किया.

बोधगया में  सुजाता स्तूप
बोधगया में सुजाता स्तूप (ETV Bharat)

बुद्ध पूर्णिमा के दिन होती है विशेष पूजा अर्चना: बोधगया में बुद्ध पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध की विशेष पूजा अर्चना होती है. जिसमें दुनिया भर के बौद्ध श्रद्धालु शामिल होते हैं. बोधगया भगवान बुद्ध की ज्ञानस्थली रही है और भगवान बुद्ध ने यहीं से विश्व को शांति का संदेश दिया. इस तरह बोधगया का महाबोधि मंदिर अंतर्राष्ट्रीय धरोहर में शामिल है. बुद्ध पूर्णिमा को लेकर महाबोधि मंदिर को सजाया गया है. बुद्ध पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध के दर्शन के लिए देश-विदेश के बौद्ध श्रद्धालु गया पहुंच चुके हैं. 'बुद्धम शरणम गच्छामि' का मंत्रोच्चार गूंज रहा है.

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