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नेपाल को हिंदू साम्राज्य के रूप में पुनः स्थापित करने की मांग के पीछे क्या मंशा है?

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 23, 2024, 7:53 AM IST

Demand For Reinstatement Of Nepal As Hindu Kingdom : नेपाल की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी ने प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल को 40 सूत्री मांगों का एक चार्टर सौंपा है. मांगों में नेपाल को हिंदू राज्य के रूप में घोषित करना और संवैधानिक राजशाही की बहाली शामिल है. ये मांगें क्यों की जा रही हैं? इसका हिमालयी देश की राजनीतिक व्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ेगा? पढ़ें ईटीवी भारत के लिए अरूनिम भुइयां की रिपोर्ट...

Demand For Reinstatement Of Nepal As Hindu Kingdom
प्रतिकात्मक तस्वीर. (AP)

नई दिल्ली : हाल के दिनों में चल रहे एक अभियान की नवीनतम अभिव्यक्ति में, नेपाल की राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी (आरपीपी) ने मांग की है कि देश को एक हिंदू राज्य के रूप में बहाल किया जाए और संवैधानिक राजतंत्र बहाल की जाए.

काठमांडू पोस्ट की रिपोर्ट के अनुसार, आरपीपी ने बुधवार को नेपाल के प्रधान मंत्री पुष्प कमल दहल को जो 40-सूत्रीय मांग पत्र सौंपा. पार्टी ने साथ ही यह भी घोषणा की कि वह नेपाल में संवैधानिक राजशाही की बहाली के लिए एक शांतिपूर्ण अभियान शुरू करेगी.

काठमांडू के विभिन्न हिस्सों में सैकड़ों पार्टी कार्यकर्ताओं की ओर से रैलियां आयोजित करने के बाद आरपीपी नेतृत्व ने मांगों का चार्टर सौंपने के लिए प्रधान मंत्री दहल से मुलाकात की. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस दौरान पार्टी अध्यक्ष राजेंद्र लिंगडेन ने कहा कि राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी शांतिपूर्ण प्रदर्शन जारी रखेगी लेकिन अगर सरकार उदासीन रही, तो वह एक मजबूत क्रांति का विकल्प चुनेगी.

Demand For Reinstatement Of Nepal As Hindu Kingdom
प्रतिकात्मक तस्वीर. (AP)

2015 में, नेपाल एक नए संविधान के अधिनियमन के साथ औपचारिक रूप से एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य में परिवर्तित हो गया. इसके बाद साल 2008 की शुरुआत में, संविधान सभा के उद्घाटन सत्र के दौरान नेपाल को आधिकारिक तौर पर एक गैर-हिंदू राज्य घोषित किया गया था. इस घोषणा के साथ ही राजशाही अतीत का किस्सा हो गई थी.

तो, आरपीपी क्या है और यह नेपाल को हिंदू राज्य के रूप में घोषित करने और संवैधानिक राजशाही की बहाली की मांग क्यों कर रही है? आरपीपी, नेपाल की एक राजनीतिक पार्टी, खुद को संवैधानिक राजतंत्र और हिंदू राष्ट्रवाद के साथ जोड़ती है. इसकी स्थापना 1990 में राजशाही के उन्मूलन से पहले पूर्व प्रधानमंत्रियों सूर्य बहादुर थापा और लोकेंद्र बहादुर चंद ने की थी.

पार्टी ने 1997 में थापा और चंद के नेतृत्व में दो गठबंधन सरकारों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया. इसके अतिरिक्त, थापा और चंद दोनों को 2000 के दशक में तत्कालीन राजा ज्ञानेंद्र की ओर से प्रधान मंत्री के रूप में नियुक्त किया गया था. 2002 में चंद और 2003 में थापा प्रधानमंत्री बने थे. 2022 के आम चुनाव के बाद, जहां आरपीपी ने 14 सीटें हासिल कीं, जिससे यह 275 सीटों वाली प्रतिनिधि सभा में पांचवीं सबसे बड़ी पार्टी बन गई. साथ ही यह चुनाव आयोग की ओर से धोषित आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त सात राष्ट्रीय पार्टियों में से एक बन गई.

Demand For Reinstatement Of Nepal As Hindu Kingdom
प्रतिकात्मक तस्वीर. (AP)

चुनाव के बाद थोड़े समय के लिए सत्तारूढ़ गठबंधन का हिस्सा होने के बावजूद, पार्टी 25 फरवरी, 2023 को विपक्ष में चली गई. यह एकमात्र राजनीतिक दल है जिसने लगातार हिंदू राज्य और संवैधानिक राजतंत्र के लिए वकालत की है. हालांकि, कई अन्य समूह भी हैं जो हाल के दिनों में इसी तरह की मांग कर रहे हैं. इनमें कुछ हिंदू समूह और पूर्व राजघराने शामिल हैं.

मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट ऑफ डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस के रिसर्च फेलो और नेपाल के मुद्दों के विशेषज्ञ निहार आर नायक के अनुसार, यह अभियान काफी समय से चल रहा है. नायक ने ईटीवी भारत को बताया कि 2008 में राजशाही के उन्मूलन के बाद से राजशाही के समर्थक यह मांग कर रहे हैं. हालांकि, हाल के वर्षों में कुछ हिंदू समूह भी ये मांगें उठाते रहे हैं. अगस्त 2021 में, 20 हिंदू धार्मिक संगठनों ने कथित तौर पर तनाहुन जिले के देवहाट में एक 'संयुक्त मोर्चा' बनाया और कहा कि वे हिंदू राज्य की बहाली की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन करेंगे.

Demand For Reinstatement Of Nepal As Hindu Kingdom
प्रतिकात्मक तस्वीर. (AP)

उसी महीने, हिंदू साम्राज्य की बहाली की वकालत करने वाले एक समूह की ओर से एक अभियान शुरू किया गया था. 2006 से 2009 तक नेपाल सेना की कमान संभालने वाले जनरल रूकमंगुड कटवाल इस अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं. 'हिंदू राष्ट्र स्वाभिमान जागरण अभियान' का नाम देते हुए, आयोजकों ने इस अभियान को देश भर में विस्तारित करने का इरादा व्यक्त किया, जिसका लक्ष्य 'पहचान और संस्कृति' के संरक्षण पर विशेष जोर देने के साथ नेपाल को एक हिंदू राज्य के रूप में बहाल करना है.

इस अभियान में शंकराचार्य मठ के मठाधीश केशवानंद स्वामी, काठमांडू में शांतिधाम के पीठाधीश, स्वामी चतुर्भुज आचार्य, हनुमान जी महाराज और हिंदू स्वयंसेवक संघ के सह-संयोजक और नेपाल पुलिस के पूर्व सहायक महानिरीक्षक कल्याण कुमार तिमिल्सिना जैसे कई प्रमुख हिंदू समर्थक हस्तियों की भागीदारी देखी गई.

काठमांडू पोस्ट ने तब कटावल के हवाले से कहा था कि हमारा अभियान देश में हिंदू कट्टरवाद को स्थापित करने के लिए नहीं है... मुसलमानों और ईसाइयों जैसे धार्मिक अल्पसंख्यकों को अलग-थलग करने और किनारे करने के लिए नहीं है. इस अभियान का उद्देश्य केवल नेपाल की हिंदू पहचान को बहाल करना है.

पोस्ट ने तब विश्लेषकों के हवाले से कहा था कि एक हिंदू राज्य की वकालत गति पकड़ सकती है, खासकर नेपाल के राजनीतिक दलों के भीतर कुछ गुट भी इस अभियान से सहमत नजर आ रहे हैं. ये वो गुट हैं जिन्होंने देश को गणतंत्र में बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. पूर्व प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली, जिनकी पहचान एक कम्युनिस्ट नेता के रूप में है, भी हिंदू धर्म के बारे में अपनी सकारात्मक भावनाएं व्यक्त करने लगे हैं.

पिछले साल फरवरी में, नेपाल के पूर्व सम्राट ज्ञानेंद्र शाह ने नेपाल के पूर्व पदनाम को हिंदू साम्राज्य के रूप में बहाल करने के उद्देश्य से एक सार्वजनिक पहल में सक्रिय रूप से भाग लिया था. शाह ने नेपाल के पूर्वी झापा जिले में स्थित काकरभिट्टा में 'आइए धर्म, राष्ट्र, राष्ट्रवाद, संस्कृति और नागरिकों को बचाएं' नाम का मेगा अभियान शुरू किया.

कार्यक्रम में भारी भीड़ उमड़ी और उपस्थित लोगों ने जयकारों और तालियों के माध्यम से अपना समर्थन व्यक्त किया. इस अभियान का आयोजन ओली के नेतृत्व वाली नेपाल की कम्युनिस्ट पार्टी (एकीकृत मार्क्सवादी लेनिनवादी) पार्टी की केंद्रीय समिति के सदस्य दुर्गा प्रसाई की ओर से किया गया था. फिर, पिछले साल नवंबर में, काठमांडू में प्रदर्शनकारियों ने सदियों पुरानी राजशाही की बहाली की मांग करते हुए प्रदर्शन किया. साथ ही नेपाल को एक बार फिर 'हिंदू राज्य' बनाने की मांग की. इन प्रदर्शनों का नेतृत्व भी प्रसाई ने ही किया था.

नायक के मुताबिक, ये विरोध प्रदर्शन लोकतंत्र विरोधी समूहों की ओर से किया जा रहा है, जिनका मानना है कि नेपाल में नई लोकतांत्रिक व्यवस्था विफल हो गई है. उन्होंने कहा कि आरपीपी इन मांगों को लोकप्रिय बनाने की कोशिश कर रही है. इन रैलियों में मुश्किल से 4,000-5,000 लोग शामिल होते हैं. इसका कोई राजनीतिक प्रभाव नहीं पड़ेगा.

नायक ने यह भी बताया कि हालांकि नेपाली कांग्रेस के एक वर्ग ने भी ऐसी मांग की थी, लेकिन पार्टी की केंद्रीय कार्य समिति ने इन्हें खारिज कर दिया. उन्होंने कहा कि नेपाली कांग्रेस अध्यक्ष शेर बहादुर देउबा ने इन मांगों का समर्थन नहीं किया और याद रखें, नेपाली कांग्रेस देश की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी है.

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