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कांटों भरा ताज है ईरान का राष्ट्रपति होना, ज्यादातर नेता नहीं पूरा कर पाते कार्यकाल - iran political history in detail

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 27, 2024, 8:12 AM IST

Updated : May 27, 2024, 9:34 AM IST

IRAN POLITICAL HISTORY : हाल में ईरान के राष्ट्रपति और विदेश मंत्री की मौत एक हवाई दुर्घटना में हो गई. ईरान के राष्ट्रपति रईसी की मौत एक अकेली घटना नहीं है जिसमें ईरान के शीर्ष राजनेता की मौत हो गई है. इसकी एक लंबी फेहरिस्त है. पढ़ें क्या रहा है ईरान के शीर्ष नेताओं का इतिहास...

IRAN POLITICAL HISTORY
ईरानी सर्वोच्च नेता के कार्यालय की एक आधिकारिक वेबसाइट द्वारा जारी इस तस्वीर में, सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खुमैनी, (काली पगड़ी के साथ बीच में दाहिनी ओर), मारे गए दिवंगत राष्ट्रपति इब्राहिम रईसी और उनके साथियों के झंडे में लिपटे ताबूतों के सामने प्रार्थना करते हुए. एक हेलीकॉप्टर दुर्घटना में रईसी की मौत हो गई थी. (AP)

हैदराबाद: ईरान के 45 वर्षों का राजनीतिक इतिहास तरह-तरह के उतार चढ़ाव से भरा हुआ रहा है. बीबीसी की एक रिपोर्ट के मुताबिक, ईरान के मौजूदा सुप्रीम लीडर अली खामेनेई के अलावा इस मुस्लिम देश में हर शीर्ष नेता को दुर्घटना या राजनीतिक जिल्लत का सामना करना पड़ा है. पहले प्रधानमंत्री अबुल हसन बनी सद्र को बर्खास्तगी के बाद ईरान से पलायन करना पड़ा. वहीं मोहम्मद अली राजई के साथ भी ईरान में अच्छा बर्ताव नहीं हुआ. राष्ट्रपति मीर हुसैन मोसवी को तो कारावास की सजा झेलनी पड़ी. एक और राष्ट्रपति अकबर हाशमी रफसंजानी की मौत संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी. उनकी लाश एक पूल में पायी गई थी. सुधारों पर जोर देने वाले मोहम्मद खातमी को भी अपने देश में काफी अपमान झेलना पड़ा था. गुस्सैल नेता की छवी वाले राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी को प्रतिबंधों का सामना करना पड़ा.

आइये जानते हैं ईरान के राष्ट्रध्यक्षों के संघर्ष और पतन की कहानी

  1. मेहदी बजारगान: हम यह तो जानते हैं कि 1979 में इस्लामी क्रांति के बाद ईरान में नई व्यवस्था बनी. नई सरकार के पहले (अस्थायी) प्रधानमंत्री मेहदी बजारगान बने. प्रधानमंत्री मेहदी बजारगान एक महत्वाकांक्षी नेता थे और खुद के लिए अधिक शक्तियां चाहते थे. लेकिन ईरान की अंदरूनी राजनीति और वैश्विक दबाव के आगे वह टूट गये. उन्होंने इस्तीफा दे दिया. इस्तीफा देने के बाद उन्होंने देश की जनता को संबोधित किया. उन्होंने अपने संबोधन में जो कहा वहीं आने वाले समय में ईरान की नियती बन गई. उन्होंने अपने संबोधन में कहा था कि यदि देश का प्रधानमंत्री होने के बाद भी मुझे किसी से मिलने के लिए धर्मगुरु से अनुमति लेनी पड़े तो यह बेहद दर्दनाक है.
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    मेहदी बजारगान (GettyImages)
  2. अबुल हसन बनी सद्र: ईरान जिसका आधिकारिक नाम इस्लामिक रिपब्लिक ऑफ ईरान है के सर्वोसर्वा उसके धर्मगुरु होते हैं. अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी ईरान के पहले धर्मगुरु थे. मेहदी बजारगान के इस्तीफे के बाद उन्होंने अबुल हसन बनी सद्र नाम के साधारण लेकिन अपने प्रिय व्यक्ति को राष्ट्रपति पद का प्रत्याशी घोषित किया. अबुल हसन बनी सद्र को 75 प्रतिशत से अधिक वोट मिले. लेकिन अबुल हसन और स्लामिक रिपब्लिक पार्टी के प्रधानमंत्री मोहम्मद अली राजाई के बीच बात बन ना सकी. खासतौर से युद्ध संबंधी प्रबंधन पर दोनों के बीच मतभेद बढ़ता गया. अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी को हसन पर भरोसा था, उन्होंने संविधान को दरकिनार करते हुए बनी सद्र को सामान्य बलों की भी कमान सौंप दी. सद्र ने आईआरजीसी (रिपब्लिकन गार्ड्स) की जगह ईरान की सेना का इस्तेमाल बढ़ा दिया. लेकिन उनकी नीति गलत साबिक हुई. ईरानी मजलिस में बहुमत वाली इस्लामिक रिपब्लिक पार्टी ने उन्हें बर्खास्त करा दिया. बीबीसी के मुताबिक, जून 1981 में ईरान के पहले राष्ट्रपति को उनकी 'राजनीतिक अक्षमता' की बिनाह पर संसद ने उन्हें हटा दिया. सद्र को बर्खास्तगी के बाद देशद्रोह और शासन के खिलाफ साजिश के आरोपों का सामना करना पड़ा. इन आरोपों के बाद उन्होंने फ्रांस में शरण ली और शेष पूरी जीवन वहीं गुजारा.
  3. मोहम्मद अली रजाई: ईरान के दुख अभी खत्म नहीं होने वाले थे. अबुल हसन बनी सद्र की बर्खास्तगी के बाद यह पद मिला मोहम्मद अली रजाई को. दो अगस्त 1981 को राष्ट्रपति का पद संभालने के बाद 30 अगस्त को एक विस्फोट में उनकी मौत हो गई. धमाके के समय वह प्रधानमंत्री कार्यालय में ईरान के तत्कालीन पीएम मोहम्मद जवाद बहनार के साथ बैठक कर रहे थे. इस धमाके में मोहम्मद जवाद बहनार की भी मौत हो गई थी. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक, इस हादसे के बाद अली खामेनेई राष्ट्रपति बने. और फिर अयातुल्लाह रुहोल्लाह खुमैनी की मौत के बाद वह ईरान के सर्वोच्च नेता यानी धर्मगुरु नियुक्त किये गये. अली खामेनेई एकमात्र ईरानी राष्ट्रपति हैं जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया.
  4. मीर हुसैन मोसवी: राष्ट्रपति ही नहीं, कई प्रधानमंत्री भी ईरान की राजनीति में सफल नहीं हो पाये. इसी क्रम में एक और नाम आता है मीर हुसैन मोसवी का. दरअसल मोसवी खुमैनी की पहली पंसद नहीं थे. वह अली अकबर वेलायती को बतौर प्रधानमंत्री चाहते थे लेकिन ईरानी मजलिस में वेलायती को विश्वासमत ना मिल सका. और मीर हुसैन मोसवी ईरान के पीएम बन गये. हालांकि, वह ज्यादा दिन तक इस पद पर बने नहीं रह सके और खुमैनी से साथ उनके रिश्ते तनाव पूर्ण होते चले गये.
    खुमैनी से रिश्तों में खटास के कारण उन्हें एक बार इस्तीफा भी देना पड़ा. बाज में 1980 के दशक में खुमैनी ने संविधान संशोधन करके प्रधानमंत्री का पद ही खत्म कर दिया. इस तरह से मौसावी ईरान की राजनीति से बाहर हो गये. बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक वह बीस साल तक सार्वजनिक क्षेत्र में नहीं दिखे. साल 2009 में उन्होंने राष्ट्रपति के चुनाव में अपनी दावेदारी पेश की लेकिन उन्होंने सफलता नहीं मिली. इन्हीं चुनावों के बाद ईरान में ग्रीन मूवमेंट शुरू हुआ.
    इस आंदोलन का उद्देश्य नवनिर्वाचित राष्ट्रपति महमूद अहमदीनेजाद की बर्खास्तगी की मांग थी. माना गया कि इस आंदोलन के पीछे मीर हुसैन मोसवी का हाथ है. उन्हें नजरबंद कर लिया गया. कुछ साल बाद 2013 में मोसवी को गिरफ्तार कर लिया गया. तब से वह जेल में बंद है.
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    मीर हुसैन मोसवी की फाइल फोटो. (GettyImages)
  5. अकबर हाशमी रफसंजानी: इस ऊथल-पुथल के बीच साल 1989 में अकबर हाशमी रफसंजानी को ईरान का राष्ट्रपति बनाया गया. हाशमी के कार्यकाल के शुरुआती चार साल काफी तनावपूर्ण रहे. सांस्कृतिक रूप से अपेक्षा कृत उदार हाशमी को हिज्बुल्लाह से जैसे संगठनों के विरोध का सामना करना पड़ा. साल 1993 में उनका दूसरा कार्यकाल शुरू हुआ. इस दौरान उन्हें अयातुल्ला खुमैनी के विरोध का भी सामना करना पड़ा. खुमैनी अभिजात वर्ग और मुक्त बाजार नीति के विरोध में थे.
    हाशमी की लोकप्रियता इतनी बढ़ गई थी कि उन्हें खुमैनी के बाद ईरान में सबसे ताकतवर व्यक्ति माना जाने लगा था. साल 2005 हुए चुनाव में वह हार गये. उनकी जगह महमूद अहमदीनेजाद ने राष्ट्रपति का पर संभाला. साल 2009 में भी ईरान में राष्ट्रपति पद के लिए चुनाव हुए थे. जिसमें अहमदीनेजाद को जीत मिली थी. इस चुनाव में धांधली के आरोप लगे. लोगों ने विरोध प्रदर्शन शुरू कर दिया. तेहरान में एक प्रार्थना सभा के दौरान 17 जुलाई को हाशमी ने महमूद अहमदीनेजाद के खिलाफ एक भाषण दिया. जिसके बाद उन्हें नजरबंद कर लिया गया.
    इस घटना के बाद 2013 में उन्हें एक बार फिर राष्ट्रपति पद के लिए अपनी दावेदारी पेश की. ईरान की गार्डियन काउंसिल ने 21 मई 2013 को उनका नामांकन रद्द कर दिया. दो साल बाद वे ईरानी संसद के ऊपरी सदन यानी मजलिस ए खोब्रगान के चुनाव में तेहरान से भारी बहुमत से जीते. 8 जनवरी 2017 को स्विमिंग पूल में नहाते हुए उनकी मौत हो गई. इस मौत को संदिग्ध माना जाता है. 2018 में ईरान के राष्ट्रपति हसन रूहानी ने रफसनजानी की मौत को दोबारा इन्वेस्टिगेट करने का आदेश दिया. परिवार का आरोप था कि उनके शरीर में आम व्यक्ति से 10 गुना अधिक रेडियोएक्टिविटी थी.
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    अकबर हाशमी रफसंजानी की फाइल फोटो. (GettyImages)
  6. मोहम्मद खातमी: ईरान जैसे धार्मिक राष्ट्र में सुधारों की बात करना, कीलों की माला पहनने के बराबर है. पर ऐसा नहीं है कि वहां के राजनीतिक नेताओं ने इसकी कोशिश नहीं की. मोहम्मद खातमी का जोर हमेशा सुधारों की ओर रहा. वह पहली बार 23 मई 1997 को राष्ट्रपति चुने गये. अपने चुनाव में उन्हें दो करोड़ से अधिक मतदाताओं का साथ मिला था. हालांकि, जैसा की होना था सुधारवादी रवैये के कारण अपने कार्यकाल के शुरुआती दिनों में भी खुमैनी से उनके तनाव बढ़ने लगे.
    साल 2001 में ईरान के सर्वोच्च नेता खुमैनी ने सुधारवादी प्रेस को 'दुश्मन का डेटाबेस' कहा और दर्जनों प्रकाशन बंद कर दिये गए. यही वो दौर था जब राष्ट्रपति मोहम्मद खातमी कहा करते थे कि हर नौ दिन में एक बार संकट का सामना करती है. 2004 के चुनाव में खुमैनी ने उनकी तस्वीर प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगा दिया.फार्स समाचार एजेंसी के मुताबिक इसके साथ ही देश छोड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.
  7. महमूद अहमदीनेजाद: किसी भी कट्टरपंथी देश में गुस्सैल नेता की छवि हासिल करना आसान होता है. महमूद अहमदीनेजाद ऐसे ही राष्ट्रपति थे. वह 2005 में राष्ट्रपति बने थे. जब उन्होंने पदभार संभाला था तो ईरान के सर्वोच्च नेता आयतुल्लाह खुमैनी और उनके करीबी मौलवियों के काफी खुशी का इजहार किया था. माना जा रहा था कि खुमैनी को अपना सबसे उपयुक्त राष्ट्रपति मिल गया है. लेकिन यह माहौल थोड़े ही दिन में बदल गया.
    साल 2009 में अहमदीनेजाद को दूसरी बाद राष्ट्रपति के तौर पर जीत मिली. कहा जाता है कि अपने शपथ ग्रहण समारोह में उन्होंने धर्मगुरु खुमैनी के हाथ के बजाय कंधे को चूमा. जबकि यह रिवाज के खिलाफ था. बाद में उन्होंने असफनदियार रहीम मशाई को उपराष्ट्रपति घोषित कर दिया. जिसपर खुमैनी ने आपत्ति दर्ज की. हालांकि, अहमदीनेजाद ने खुमैनी की आपत्ति को तबतक तवज्जो नहीं दी जबतक खुमैनी ने पत्र सार्वजनिक नहीं कर दिया.
    वक्त के साथ खुमैनी और राष्ट्रपति के बीच दरार बढ़ती गई. राष्ट्रपति ने सूचना मंत्री हैदर मोस्लेही को हटा दिया जिसका खुमैनी ने विरोध किया. हालांकि उन्होंने अपना फैसला नहीं बदला. बल्कि, खुमैनी के प्रति अपनी नाराजगी के इजहार के तौर पर वह 11 दिनों तक राष्ट्रपति कार्यालय में नहीं गए. उन्होंने तीसरे कार्यकाल के लिए दावेदारी पेश की लेकिन गार्डियन काउंसिल ने उनकी अर्जी को खारिज कर दिया.
  8. हसन रूहानी : साल 2013 में ईरान को एक और नया राष्ट्रपति मिला. हसन रूहानी. ईरान की राजनीति में सबसे सुरक्षित राजनीतिक हस्तियों में एक. हसन रूहानी और खुमैनी के बीच का रिश्ता खट्टा-मिठा कहा जा सकता है. एक और रूहानी ने अपनी पूरी ताकत खुमैनी का भरोसा जीतने में लगाया तो वहीं दूसरी ओर अमेरिका के साथ नजदिकी और ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ (जेसीपीओए) नामक एक अन्य समझौते की तैयारी के लिए उन्हें खुमैनी की आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा. हसन रूहानी और उनके रिश्तेदारों के खिलाफ कई आर्थिक अपराध के आरोप लगाए गए. जिन पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे उनमें उनके भाई हसन फरीदून भी शामिल थे.
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    हसन रूहानी की फाइल फोटो. (GettyImages)

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Last Updated : May 27, 2024, 9:34 AM IST
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