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सागर सेंट्रल यूनिवर्सिटी की वंदना दुनिया के 2% बेस्ट साइंटिस्ट क्लब में शामिल, काई से बनाया फिंगर प्रिंट पावडर

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Feb 29, 2024, 7:38 AM IST

Updated : Feb 29, 2024, 1:18 PM IST

Nano Finger Print Powder:सागर यूनिवर्सिटी की क्रिमिनोलाॅजी एंड फोरेसिंक साइंस डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर वंदना विनायक ने फिंगरप्रिंट जांच के क्षेत्र में एक बड़ी सफलता हासिल की है.

Nano fingerprint powder sagar
फिंगरप्रिंट जांच के क्षेत्र में इसे बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है.

सागर. मध्यप्रदेश के सागर जिले में क्रिमिनोलाॅजी एंड फॉरेसिंक साइंस डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर वंदना विनायक (Vandana Vinayak) ने डायटम नैनो-फिंगरप्रिंट पाउडर (Nano Finger print powder) बनाया है. इसे फिंगरप्रिंट जांच के क्षेत्र में अहम सफलता के तौर पर देखा जा रहा है. खास बात ये है कि फिंगर प्रिंट जांच में उपयोग आने वाले पाउडर से ये पाउडर काफी सस्ता, नष्ट ना होने वाला और दोबारा उपयोग किए जाने लायक है. डाॅ. वंदना विनायक की खोज को जर्मनी में अंतर्राष्ट्रीय पेटैंट भी मिला है.

फिंगरप्रिंट जांच के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि

डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय (Harisingh gaur university) की डॉ. वंदना विनायक पिछले 10 साल से ज्यादा समय से शैवाल डायटम के क्षेत्र में रिसर्च कर रही हैं. उन्होंने बताया कि फॉरेंसिक मामलों की जांच में फिंगरप्रिंट महत्वपूर्ण भौतिक साक्ष्य होते हैं. फिलहाल, जो फिंगरप्रिंट पाउडर उपयोग में लाए जा रहे हैं वो ऐसे रासायनिक पदार्थों से मिलकर बने होते हैं जो मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी खतरनाक हैं. डाॅ वंदना विनायक ने जो डायटम नैनो-फिंगरप्रिंट पाउडर तैयार किया है वो विषहीन, काफी सस्ता और अलग-अलग सतहों पर फिंगरप्रिंट को नुकसान न पहुंचाने वाला है. उन्होंने कहा, ' जब मैं हरियाणा फॉरेंसिक साइंस लैब में काम करती थी, तब फिंगरप्रिंट पाउडर अमेरिका, यूरोप और फ्रांस से आते थे, जो काफी महंगे होते थे. ये काफी सस्ता, खराब न होने वाला और फिर से उपयोग में आने वाला है.'

Nano fingerprint powder sagar
फिंगरप्रिंट जांच के क्षेत्र में इसे बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है.

कैसे काम करता है डायटम नैनो-फिंगरप्रिंट पाउडर?

डाॅ. वंदना विनायक ने कहा, ' हमने एक पाॅली लिंकर के साथ एक फ्लोरोसेंट डाई और डायटम फ्रस्ट्यूल्स (डायटोमाइट) को क्रिया करके विभाग की डायटम लैब में बनाया है. पाउडर भौतिक रूप से सतह पर पसीने में मौजूद पदार्थों के साथ रासायनिक क्रिया करके चिपक जाता है और फिर फ्लोरोसेंट फोटोग्राफी से उंगलियों के निशान की हाई क्वालिटी फोटो ली जा सकती है.' डाॅ. वंदना ने आगे कहा, ' हमने जो पाउडर लेब में तैयार किया है, यह डायटम बेस्ड फिंगरप्रिंट पाउडर है. डायटम एक तरह की शैवाल है, जो पानी में पाई जाती है. इसकी संरचना सिलिका की बनी होती है, जो काफी कठोर होती है. जहां हमारे फिंगरप्रिंट होते हैं, वहां पर ये पाउडर एब्सॉर्ब हो जाता है
और इसका प्रिंट हमें साफ तौर पर आंखों से दिखाई देता है.'

Nano fingerprint powder sagar
यह नैनो फिंगरप्रिंट पाउडर काफी सस्ता और खराब न होने वाला है.

किसी घटना के बाद ऐसे लेते हैं फिंगर प्रिंट

डाॅ. वंदना विनायक ने बताया कि जब कोई घटना होती है, तो सेलो टेप या किसी दूसरे तरीके से फिंगरप्रिंट लिए जाते हैं. तब हमें फिंगरप्रिंट (Fingerprint) नजर नहीं आता और पाउडर लगते ही नजर आ जाता है. किफायती होने के साथ-साथ फिर से उपयोग में आ सकने वाला पावडर फिंगरप्रिंट लैब में फोरेंसिक जांच के लिए बहुत अच्छा है.

कैसे होगा पाउडर का दोबारा उपयोग?

डॉक्टर वंदना विनायक ने कहा, ' फिलहाल जो पाउडर उपयोग में ले जा रहे हैं जब मैं फॉरेंसिक लैब में काम करती थी तो एक औंस पाउडर 4 हजार रु तक का होता था. लेकिन डायटो नैनो फिंगरप्रिंट पाउडर की कीमत डेढ़ सौ रुपए से ज्यादा नहीं है. सबसे अच्छी बात यह है कि हम इसका दोबारा उपयोग कर सकते हैं. अगर उपयोग किए गए पाउडर को नाइट्रिक एसिड से धोकर सुखा दें तो यह फिर से रिकवर हो जाता है. बाकी पाउडर हम रिकवर नहीं कर सकते हैं.' उन्होंने बताया कि पाउडर के विकास में शोध छात्र अंकेश अहिरवार, वंदना सीरोठिया, गुरप्रीत सिंह, प्रियंका खंडेलवाल और उर्वशी सोनी ने महत्ववपूर्ण भूमिका निभाई है.

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डॉ. वंदना विनायक

कौन हैं डॉ वंदना विनायक?

डॉ. वंदना विनायक फॉरेंसिक साइंस में देश में जाना माना नाम है. सागर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के पहले वंदना विनायक हरियाणा फॉरेंसिक साइंस लैब में काम करती थीं जहां उन्होंने 2009 के जम्मू कश्मीर के चर्चित सोफिया मर्डर केस और 2013 के महाराष्ट्र के भंडारा में तीन नाबालिग बहनों के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में फॉरेंसिक जांच की थी. इसके अलावा पानीपत में प्रेम प्रसंग में खाप पंचायत से जुड़े सर कटी लाश के मामले में भी उन्होंने फॉरेंसिक जांच की थी. डॉ. वंदना विनायक को पिछले साल दुनिया के सर्वश्रेष्ठ दो प्रतिशत वैज्ञानिकों की सूची में शामिल किया गया है.

सागर. मध्यप्रदेश के सागर जिले में क्रिमिनोलाॅजी एंड फॉरेसिंक साइंस डिपार्टमेंट की असिस्टेंट प्रोफेसर वंदना विनायक (Vandana Vinayak) ने डायटम नैनो-फिंगरप्रिंट पाउडर (Nano Finger print powder) बनाया है. इसे फिंगरप्रिंट जांच के क्षेत्र में अहम सफलता के तौर पर देखा जा रहा है. खास बात ये है कि फिंगर प्रिंट जांच में उपयोग आने वाले पाउडर से ये पाउडर काफी सस्ता, नष्ट ना होने वाला और दोबारा उपयोग किए जाने लायक है. डाॅ. वंदना विनायक की खोज को जर्मनी में अंतर्राष्ट्रीय पेटैंट भी मिला है.

फिंगरप्रिंट जांच के क्षेत्र में बड़ी उपलब्धि

डाॅ. हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय (Harisingh gaur university) की डॉ. वंदना विनायक पिछले 10 साल से ज्यादा समय से शैवाल डायटम के क्षेत्र में रिसर्च कर रही हैं. उन्होंने बताया कि फॉरेंसिक मामलों की जांच में फिंगरप्रिंट महत्वपूर्ण भौतिक साक्ष्य होते हैं. फिलहाल, जो फिंगरप्रिंट पाउडर उपयोग में लाए जा रहे हैं वो ऐसे रासायनिक पदार्थों से मिलकर बने होते हैं जो मानव स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी खतरनाक हैं. डाॅ वंदना विनायक ने जो डायटम नैनो-फिंगरप्रिंट पाउडर तैयार किया है वो विषहीन, काफी सस्ता और अलग-अलग सतहों पर फिंगरप्रिंट को नुकसान न पहुंचाने वाला है. उन्होंने कहा, ' जब मैं हरियाणा फॉरेंसिक साइंस लैब में काम करती थी, तब फिंगरप्रिंट पाउडर अमेरिका, यूरोप और फ्रांस से आते थे, जो काफी महंगे होते थे. ये काफी सस्ता, खराब न होने वाला और फिर से उपयोग में आने वाला है.'

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फिंगरप्रिंट जांच के क्षेत्र में इसे बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है.

कैसे काम करता है डायटम नैनो-फिंगरप्रिंट पाउडर?

डाॅ. वंदना विनायक ने कहा, ' हमने एक पाॅली लिंकर के साथ एक फ्लोरोसेंट डाई और डायटम फ्रस्ट्यूल्स (डायटोमाइट) को क्रिया करके विभाग की डायटम लैब में बनाया है. पाउडर भौतिक रूप से सतह पर पसीने में मौजूद पदार्थों के साथ रासायनिक क्रिया करके चिपक जाता है और फिर फ्लोरोसेंट फोटोग्राफी से उंगलियों के निशान की हाई क्वालिटी फोटो ली जा सकती है.' डाॅ. वंदना ने आगे कहा, ' हमने जो पाउडर लेब में तैयार किया है, यह डायटम बेस्ड फिंगरप्रिंट पाउडर है. डायटम एक तरह की शैवाल है, जो पानी में पाई जाती है. इसकी संरचना सिलिका की बनी होती है, जो काफी कठोर होती है. जहां हमारे फिंगरप्रिंट होते हैं, वहां पर ये पाउडर एब्सॉर्ब हो जाता है
और इसका प्रिंट हमें साफ तौर पर आंखों से दिखाई देता है.'

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यह नैनो फिंगरप्रिंट पाउडर काफी सस्ता और खराब न होने वाला है.

किसी घटना के बाद ऐसे लेते हैं फिंगर प्रिंट

डाॅ. वंदना विनायक ने बताया कि जब कोई घटना होती है, तो सेलो टेप या किसी दूसरे तरीके से फिंगरप्रिंट लिए जाते हैं. तब हमें फिंगरप्रिंट (Fingerprint) नजर नहीं आता और पाउडर लगते ही नजर आ जाता है. किफायती होने के साथ-साथ फिर से उपयोग में आ सकने वाला पावडर फिंगरप्रिंट लैब में फोरेंसिक जांच के लिए बहुत अच्छा है.

कैसे होगा पाउडर का दोबारा उपयोग?

डॉक्टर वंदना विनायक ने कहा, ' फिलहाल जो पाउडर उपयोग में ले जा रहे हैं जब मैं फॉरेंसिक लैब में काम करती थी तो एक औंस पाउडर 4 हजार रु तक का होता था. लेकिन डायटो नैनो फिंगरप्रिंट पाउडर की कीमत डेढ़ सौ रुपए से ज्यादा नहीं है. सबसे अच्छी बात यह है कि हम इसका दोबारा उपयोग कर सकते हैं. अगर उपयोग किए गए पाउडर को नाइट्रिक एसिड से धोकर सुखा दें तो यह फिर से रिकवर हो जाता है. बाकी पाउडर हम रिकवर नहीं कर सकते हैं.' उन्होंने बताया कि पाउडर के विकास में शोध छात्र अंकेश अहिरवार, वंदना सीरोठिया, गुरप्रीत सिंह, प्रियंका खंडेलवाल और उर्वशी सोनी ने महत्ववपूर्ण भूमिका निभाई है.

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डॉ. वंदना विनायक

कौन हैं डॉ वंदना विनायक?

डॉ. वंदना विनायक फॉरेंसिक साइंस में देश में जाना माना नाम है. सागर विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के पहले वंदना विनायक हरियाणा फॉरेंसिक साइंस लैब में काम करती थीं जहां उन्होंने 2009 के जम्मू कश्मीर के चर्चित सोफिया मर्डर केस और 2013 के महाराष्ट्र के भंडारा में तीन नाबालिग बहनों के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में फॉरेंसिक जांच की थी. इसके अलावा पानीपत में प्रेम प्रसंग में खाप पंचायत से जुड़े सर कटी लाश के मामले में भी उन्होंने फॉरेंसिक जांच की थी. डॉ. वंदना विनायक को पिछले साल दुनिया के सर्वश्रेष्ठ दो प्रतिशत वैज्ञानिकों की सूची में शामिल किया गया है.

Last Updated : Feb 29, 2024, 1:18 PM IST
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