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खत्म होता नक्सल का साया: जिस इलाके की नक्सलियों ने की थी नाकेबंदी, उस इलाके में बंपर वोटिंग की हो रही तैयारी - Lok Sabha Election 2024

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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Apr 2, 2024, 8:21 PM IST

पलामू के जिस इलाके में कभी नक्सलियों की धमक होती थी, उनका सिक्का चलता था. अब उस इलाके में विकास की बयार बह रही है. लोग भी लोकतांत्रित प्रक्रिया में भाग लेने के लिए उत्साहित हैं. इस इलाके में चुनाव आयोग की तरफ से बंपर वोटिंग की कोशिश की जा रही है.

LOK SABHA ELECTION 2024
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जहां कभी था नक्सलियों का साया उस इलाके में बंपर वोटिंग की हो रही तैयारी

पलामू: नक्सलियों के कमजोर होने के बाद कई बदलाव हुए है. यह बदलाव सुखद एहसास दे रहे है. जिस इलाके को माओवादियों ने नाकेबंदी कर दिया था और किसी नई तरह की गतिविधि के संचालन पर रोक लगाई थी, उस इलाके में लोग बंपर वोटिंग की तैयारी कर रहे हैं. ये इलाका है झारखंड की राजधानी रांची से करीब 250 किलोमीटर दूर पलामू के मनातू के थाना क्षेत्र के चक के इलाके की.

पलामू का यह इलाका झारखंड का अंतिम गांव माना जाता है और बिहार के गया सीमा से सटा हुआ है. यह इलाका अतिनक्सल प्रभावित माना जाता है. चक और उसके आस पास के इलाके में माओवादियों के खौफ के कारण लोग वोट नहीं देते थे. अब उस इलाके में 72 प्रतिशत से अधिक वोटिंग हो रही है. 2024 के लोकसभा चुनाव में इलाके के लोग बेखौफ वोटिंग की तैयारी कर रहे है.

2008 में माओवादियों ने चक में की थी नाकेबंदी

2006-07 में माओवादियों के खिलाफ झारखंड में पिकेट बनाने की योजना पर कार्य शुरू हुई थी. 2007 के अंतिम महीनों में पलामू में चक में पिकेट की स्थापना की गई थी. शरुआत में माओवादियों ने ग्रामीणों से पिकेट का विरोध करने को कहा था. फिर 2008 में माओवादियों ने पूरे इलाके में नाकेबंदी कर दी थी. इस नाकेबंदी की वजह से इलाके की करीब 10 हजार आबादी प्रभावित हुई थी और बड़ी संख्या में लोग पलायन कर गए. माओवादियों के नाकेबंदी के कारण में कोई यात्री गाड़ी नहीं जाती थी. दुकान भी नहीं खुलते थे.

2009-10 में माओवादियों ने पिकेट से बाहर निकले दो जवानों को गोली मार दी थी. 2010-11 में झारखंड पुलिस और स्थानीय ग्रामीणों की दुकान और बाजार को खुलवाया गया था. बाद में चक इलाका धीरे-धीरे सामान्य होता गया. चक के बुजुर्ग जीतन राम बताते हैं उनका बहुत शोषण किया गया है, उस दौरान सभी तरह की गतिविधि को बंद करवा दिया गया था.

माओवादियों के फरमान के बाद ग्रामीण नहीं देते थे वोट, हेलीकॉप्टर से जाते थे मतदान कर्मी

चक के इलाके से ही माओवादी वोट बहिष्कार का फरमान जारी करते थे. 2004 के बाद से चक के इलाके में 50 प्रतिशत से भी कम वोटिंग होती थी. 2022 पंचायत चुनाव में पहली चक के इलाके में 72 मतदान हुआ था. चक इलाके में किसी भी तरह के वोटिंग के लिए मतदान कर्मी हेलीकॉप्टर से गए हैं. 2018-19 के बाद से इलाके में बदलाव का दौर शुरू हुआ है. इलाके में नक्सल साया कमजोर हो गई है. स्थानीय ग्रामीण सुरेंद्र यादव बताते हैं कि वोट देने के लिए बाहर गई आबादी भी वापस लौट गई है. नक्सलियों के दौर में वे मजबूर थे और खौफ के साए में थे. नक्सली संगठनों के दबाव के कारण लोग परेशान रहा करते थे.

चक के इलाके में लोगों को मोटिवेट किया जा रहा है, इलाके में बदलाव काफी सुखद है. पलामू जिला प्रशासन वोटिंग प्रतिशत बढ़ाने के लिए कई बिंदुओं पर कार्य कर रही है. यह अच्छा संकेत है कि ग्रामीण उत्साहित है अधिकारी इलाके का दौरा करेंगे और ग्रामीणों का हौसला बढ़ाएंगे - शशिरंजन, डीसी (पलामू)

प्रशासन ग्रामीणों का बढ़ा रहे हौसला

चक पंचायत में आधा दर्जन से अधिक गांव है. जहां 10554 लोगों की आबादी है. चक के इलाके में 6000 के करीब वोटर हैं, यह इलाका चतरा लोकसभा में मौजूद है. चक के इलाके में पांच कंपनी से भी अधिक सुरक्षा बल तैनात किए गए हैं. बिहार के इलाके में गया में भी तीन कंपनी से भी अधिक केंद्रीय बलों की तैनाती की गई है. इलाके में माओवादियों के कमजोर होने के बाद एक बड़ा बाजार भी विकसित हुआ है. इलाके में सभी तरह के बाजार सजने लगे हैं और इलाका कारोबारी हब के रूप में विकसित हो रहा है.

चक के अलावा मंसुरिया में पिकेट बनाया गया है, जहां सुरक्षाबलों के मौजूदगी में बदलाव शुरू हुआ है. इलाके में पुख्ता सुरक्षा के इंतजाम किए गए हैं. ग्रामीणों के हौसले को बढ़ाया जा रहा है. - रीष्मा रमेशन , एसपी (पलामू)

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