वाराणसी: ज्ञानवापी को लेकर गुरुवार को एएसआई सर्वे की रिपोर्ट सार्वजनिक होने के बाद हड़कंप मचा हुआ है. हिंदू पक्ष अपनी तरफ से दावा कर रहा है कि इस रिपोर्ट में यह स्पष्ट है कि मंदिर के स्ट्रक्चर पर ही वर्तमान मस्जिद के स्ट्रक्चर को बना दिया गया है. यह पूरा स्थान मंदिर का है. इसे 2 सितंबर 1669 में औरंगजेब ने तोड़ दिया था. इस जानकारी के बाद पहली बार मुस्लिम पक्ष की तरफ से बयान (Muslim side objection on ASI report in Varanasi Gyanvapi Case) आया है.
मुस्लिम पक्ष के वरिष्ठ अधिवक्ता एखलाक अहमद ने ईटीवी भारत को दिए गए इंटरव्यू में स्पष्ट तौर पर कहा है कि जो रिपोर्ट आई है, वह गलत है. हम इस रिपोर्ट के पूरे अध्ययन करने के बाद ही इसके संदर्भ में आगे कार्रवाई करेंगे. अपनी आपत्ति दाखिल करके जरूरत पड़ी तो आगे बढ़ेंगे. उन्होंने यह भी कहा कि जो मूर्तियां मिली है, वह पहले के कमिश्नर कार्रवाई के दौरान ही मिली हुई हैं. सिर्फ उनकी नाप करवा कर उसकी डिटेल एएसआई ने अपनी रिपोर्ट में लिख दी है.
मुस्लिम पक्ष ने यह भी कहा है कि जो मूर्तियां मिली है वह मंदिर का हिस्सा नहीं, बल्कि उनके यहां मौजूद कुछ मूर्ति बनाने वाले किराएदारों के द्वारा फेंके गए मलबा (Idols are tenant artisan's debris) है. सभी मूर्तियां टूटी हुई हैं. उसका परिसर से कोई लेना-देना नहीं है. अधिवक्ता एखलाक अहमद का कहना है कि हम पूरी रिपोर्ट का अध्ययन करेंगे. उसके बाद यह डिसाइड करेंगे कि हमें करना क्या है. उसमें कोई भी ऐसी चीज नहीं है, जो हम उस पर बात करें. कमीशन की कार्रवाई जो हुई थी, उसमें जो फोटोग्राफ सामने आई थी वही सारी फोटोग्राफ इस रिपोर्ट में लगाई गई हैं. बस उसमें अंतर इतना है कि वह फोटोग्राफ सादी थी और इसमें फोटो लेकर उसमें कितना लंबा कितना चौड़ा है इस बारे में उसकी नाप लिख दी गई हैं. ऐसी कोई भी चीज नहीं है, जो नई हो.
अधिवक्ता का कहना है कि खुदाई के लिए एएसआई को एकदम मना किया गया था कोर्ट का यह स्पष्ट निर्देश था कि अंदर खुदाई नहीं होगी खुद आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया के डायरेक्टर की तरफ से कोर्ट में अंडरटेकिंग भी दी गई थी कि हम खुदाई अंदर नहीं करेंगे, लेकिन उन्होंने परिसर के पिछले हिस्से में जो कुछ मलबा पड़ा हुआ था उसकी सफाई उन्होंने करवाई थी. इसकी वजह से हमारे पिछले हिस्से में मौजूद दो मजार सामने आ गई, जो पिछले कई सालों से मलबे के नीचे दब गई थी. पश्चिम की तरफ यह दोनों मजार मौजूद थी, जो सफाई की वजह से सामने आ गई यह फायदा हमें जरूर हुआ है. वहीं दक्षिणी तहखाना में मिट्टी निकाल कर कुछ पता करने की कोशिश की थी, लेकिन वहां पर उन्हें कुछ नहीं मिला. इसलिए उन्होंने वहां मालवा छोड़ दिया.
वहीं पश्चिमी दीवार को मंदिर का स्ट्रक्चर बताए जाने की एएसआई रिपोर्ट को अधिवक्ता मुस्लिम पक्ष गलत बता रहे हैं. उनका कहना है कि ऐसा कुछ भी नहीं है यह बिल्कुल गलत है. उसमें ऐसा कुछ भी नहीं है. उसमें कोई भी मूर्ति नहीं लगी है, जिससे यह पता चले कि वह मंदिर की दीवार है. वह बिल्कुल गलत बोल रहे हैं और सर्वे की रिपोर्ट में ऐसा कुछ भी नहीं लिखा गया है क्योंकि जितने भी मीनार होते हैं. वह दो पार्ट में होते हैं. यह तकनीकी तौर पर है आप कोई भी मीनार देखेंगे तो वह दो पार्ट में होते हैं. अगर वह एक पार्ट में होगा, तो वह गिर जाएगा. अधिवक्ता मुस्लिम पक्ष ने कहा कि हम अभी इसे पढ़ेंगे और देखेंगे इसमें क्या गलत रिपोर्ट दी है. उसका ऑब्जेक्शन दाखिल करेंगे.
अधिवक्ता का कहना है कि जो फिगर है माल में पड़े हुए हैं उसमें कोई बहुत बड़ी बात नहीं है. हमारी एक बिल्डिंग थी, जिसे हम नॉर्थ गेट छत्ता द्वारा के नाम से जानते थे. हमारे यहां पांच किराएदार थे, जो मूर्ति बनाने का काम करते थे. वह मलवा पीछे की तरफ फेंक दिया करते थे. अगर वह मूर्तियां मिली हैं, तो कोई बहुत बड़ी बात नहीं है, क्योंकि खंडित मूर्तियां है. कोई ऐसी मूर्ति नहीं मिली है जो सबूत है जो भगवान शिव की हो या किसी अन्य की हो वह मलवा है जो मूर्ति बनाने वालों के द्वारा फेंका गया था.
अधिवक्ता मुस्लिम पक्ष का कहना है कि जो हमारे किराएदार थे वही सब मालवा फेंक हुए हैं, क्योंकि जो भी मूर्तियों या अन्य चीज मिली हैं. अधिवक्ता मुस्लिम पर क्या कहना है की मस्जिद के अंदर कुछ भी नहीं पाया गया है. तहखाना के अंदर भी कुछ नहीं मिला है उत्तर की तरफ अंदर एक कमरा है जो फर्श है उसके पिछले हिस्से का उस पर पाया गया है. वह खुली जमीन रहती थी. वहां पर कोई भी कुछ भी फेंक जाता था. 1993 में बैरिकेडिंग लगी थी वहां हर कोई आता था. उसका इस्तेमाल करता था हमारे किराएदार उसमें मालवा फेंक दिया करते थे. पांचों लोग जो किराएदार थे वह मूर्तिकार ही थे.
वहीं इस मामले में वादिनी सीता साहू का कहना है सब कुछ दूध का दूध पानी का पानी हो गया है. पूरी की पूरी मस्जिद मंदिर के स्ट्रक्चर पर बनी हुई है, यह इस रिपोर्ट से साफ हो गया है. अब हम आगे बढ़ेंगे और जो सील वजूखाना है और उसमें हमारे भगवान शिव मौजूद है जिसे यह लोग फवारा करते हैं उसकी भी हम एएसआई जांच की मांग करेंगे, ताकि वह भी स्पष्ट हो जाए कि वह पत्थर कब का है कितना पुराना है और शिवलिंग का स्वरूप और निर्माण का वर्ष क्या है. सीता साहू का कहना है कि मंदिर पर पूरी तरह से मस्जिद का निर्माण करके यह लोग सच छुपाना चाहते थे जो अब सामने आ चुका है.