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चतरा लोकसभा सीट पर ब्राह्मण और भूमिहार के बीच टक्कर! पिछड़े, आदिवासियों और दलितों के गढ़ में अगड़े ठोक रहे हैं ताल - Lok Sabha Election 2024

KN Tripathi, Kalicharan Singh. झारखंड का चतरा लोकसभा क्षेत्र वैसे तो पिछड़े, आदिवासी और दलितों का गढ़ माना जाता है, लेकिन यहां पर लोकसभा चुनाव में ब्राह्मण और भूमिहार के बीच में टक्कर है. बीजेपी ने कालीचरण सिंह को मैदान में उतारा है तो कांग्रेस की ओर से केएन त्रिपाठी ताल ठोक रहे हैं.

contest between Brahmin and Bhumihar on Chatra Lok Sabha seat
contest between Brahmin and Bhumihar on Chatra Lok Sabha seat
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By ETV Bharat Jharkhand Team

Published : Apr 20, 2024, 5:00 PM IST

लातेहार: झारखंड का चतरा लोकसभा क्षेत्र इन दिनों चर्चा का केंद्र बना हुआ है. पिछड़ों, आदिवासियों और दलितों की संख्या अधिक होने के बावजूद लोकसभा चुनाव 2024 के मुख्य मुकाबले में यहां एनडीए और इंडिया गठबंधन की ओर से अगड़ी जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा गया है. इस प्रकार चतरा लोकसभा क्षेत्र के मुख्य मुकाबले में ब्राह्मण और भूमिहार जाति के उम्मीदवार मजबूती से ताल ठोक रहे हैं.

दरअसल, झारखंड के चतरा लोकसभा क्षेत्र में पिछड़ों, आदिवासियों और दलित मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है. ओबीसी समाज के लोगों के द्वारा दावा किया जाता है कि पूरे संसदीय क्षेत्र में ओबीसी की संख्या लगभग 50% है. परंतु इसमें कोई दो राय नहीं है कि ओबीसी मतदाताओं की संख्या 35% से कम हो. वहीं क्षेत्र में आदिवासी समाज के मतदाताओं की संख्या भी 28 प्रतिशत मानी जा रही है.

हालांकि भोक्ता समाज को आदिवासियों की श्रेणी में शामिल किए जाने के बाद यह प्रतिशत और अधिक बढ़ गया है. इसी प्रकार भोक्ता समाज को अनुसूचित जाति की श्रेणी से अलग होने के बाद भी इस इलाके में अनुसूचित जाति के वोटरों की संख्या कम से कम 12 से 15% जरूर मानी जाती है. इस प्रकार देखा जाए तो ओबीसी दलित और आदिवासी वोटरों की संख्या इस इलाके में 80% के करीब होगी. परंतु वर्तमान के चुनाव में अगड़ी जाति के दो उम्मीदवार मुख्य मुकाबले में नजर आ रहे हैं.

contest between Brahmin and Bhumihar on Chatra Lok Sabha seat
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ब्राह्मण और भूमिहार आमने-सामने

भारतीय जनता पार्टी ने कालीचरण सिंह को चतरा संसदीय क्षेत्र से अपना उम्मीदवार घोषित किया है. वहीं कांग्रेस पार्टी ने कृष्णानंद त्रिपाठी को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है. कालीचरण सिंह भूमिहार जाति से आते हैं और यह चतरा के स्थानीय निवासी भी हैं. कालीचरण सिंह को संगठन में काम करने का अनुभव तो है, परंतु चुनाव लड़ने का इनके पास कोई पुराना तजुर्बा नहीं है.

शिक्षक रह चुके कालीचरण सिंह को उम्मीद है कि स्थानीय होने के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के कारण हर वर्ग का समर्थन उन्हें मिलेगा. वहीं दूसरी और कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णानंद त्रिपाठी ब्राह्मण वर्ग से आते हैं. मूल रूप से पलामू के रहने वाले कृष्णानंद त्रिपाठी पूर्व में विधायक और झारखंड सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. उन्हें पूरी उम्मीद है कि कांग्रेस की पारंपरिक वोट के अलावे अन्य मतदाताओं के द्वारा भी उन्हें पूरा समर्थन मिलेगा.

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जाति का फैक्टर नहीं करता है काम

राजनीति की जानकारी रखने वाले प्रोफेसर आरएल प्रसाद की मानें तो चतरा संसदीय क्षेत्र में जाति फैक्टर ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होता है. यहां अब तक चुनावी मुकाबला और चुनावी परिणाम पर ध्यान दें तो साफ हो जाता है कि यहां के मतदाता जाति और वर्ग के आधार पर वोट नहीं देते. यहां की जनता उम्मीदवारों की योग्यता और केंद्र सरकार को ध्यान में रखकर मतदान करती है. इसलिए चुनावी मैदान में जब कोई प्रत्याशी आता है तो जरूरी नहीं है कि उनके जाति के लोग उनके पक्ष में उतर जाएं.

दूसरी बात यह भी है कि इस इलाके में कोई भी ऐसा बड़ा जनप्रतिनिधि भी नहीं हुआ है जो अपनी जाति, समाज या वर्ग के लिए कुछ विशेष किया हो. वहीं पिछले 10 वर्षों से जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर आम लोग मतदान कर रहे हैं, उससे जाति आधारित राजनीति की विचारधारा वाले लोगों की लोकप्रियता काफी कम हुई है.

चतरा संसदीय क्षेत्र में लोकसभा चुनाव में मतदान की तिथि 20 मई को है. कुल मिलाकर लगभग एक माह का समय राजनीतिक पार्टियों और प्रत्याशियों के पास बचा हुआ है. अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले 30 दिनों में अगड़ी जाति के उम्मीदवारों के बीच टक्कर होगी या फिर कोई अन्य उम्मीदवार खेल बिगाड़ देंगे.

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दरअसल, झारखंड के चतरा लोकसभा क्षेत्र में पिछड़ों, आदिवासियों और दलित मतदाताओं की संख्या काफी अधिक है. ओबीसी समाज के लोगों के द्वारा दावा किया जाता है कि पूरे संसदीय क्षेत्र में ओबीसी की संख्या लगभग 50% है. परंतु इसमें कोई दो राय नहीं है कि ओबीसी मतदाताओं की संख्या 35% से कम हो. वहीं क्षेत्र में आदिवासी समाज के मतदाताओं की संख्या भी 28 प्रतिशत मानी जा रही है.

हालांकि भोक्ता समाज को आदिवासियों की श्रेणी में शामिल किए जाने के बाद यह प्रतिशत और अधिक बढ़ गया है. इसी प्रकार भोक्ता समाज को अनुसूचित जाति की श्रेणी से अलग होने के बाद भी इस इलाके में अनुसूचित जाति के वोटरों की संख्या कम से कम 12 से 15% जरूर मानी जाती है. इस प्रकार देखा जाए तो ओबीसी दलित और आदिवासी वोटरों की संख्या इस इलाके में 80% के करीब होगी. परंतु वर्तमान के चुनाव में अगड़ी जाति के दो उम्मीदवार मुख्य मुकाबले में नजर आ रहे हैं.

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ब्राह्मण और भूमिहार आमने-सामने

भारतीय जनता पार्टी ने कालीचरण सिंह को चतरा संसदीय क्षेत्र से अपना उम्मीदवार घोषित किया है. वहीं कांग्रेस पार्टी ने कृष्णानंद त्रिपाठी को यहां से अपना उम्मीदवार बनाया है. कालीचरण सिंह भूमिहार जाति से आते हैं और यह चतरा के स्थानीय निवासी भी हैं. कालीचरण सिंह को संगठन में काम करने का अनुभव तो है, परंतु चुनाव लड़ने का इनके पास कोई पुराना तजुर्बा नहीं है.

शिक्षक रह चुके कालीचरण सिंह को उम्मीद है कि स्थानीय होने के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता के कारण हर वर्ग का समर्थन उन्हें मिलेगा. वहीं दूसरी और कांग्रेस प्रत्याशी कृष्णानंद त्रिपाठी ब्राह्मण वर्ग से आते हैं. मूल रूप से पलामू के रहने वाले कृष्णानंद त्रिपाठी पूर्व में विधायक और झारखंड सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. उन्हें पूरी उम्मीद है कि कांग्रेस की पारंपरिक वोट के अलावे अन्य मतदाताओं के द्वारा भी उन्हें पूरा समर्थन मिलेगा.

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जाति का फैक्टर नहीं करता है काम

राजनीति की जानकारी रखने वाले प्रोफेसर आरएल प्रसाद की मानें तो चतरा संसदीय क्षेत्र में जाति फैक्टर ज्यादा महत्वपूर्ण नहीं होता है. यहां अब तक चुनावी मुकाबला और चुनावी परिणाम पर ध्यान दें तो साफ हो जाता है कि यहां के मतदाता जाति और वर्ग के आधार पर वोट नहीं देते. यहां की जनता उम्मीदवारों की योग्यता और केंद्र सरकार को ध्यान में रखकर मतदान करती है. इसलिए चुनावी मैदान में जब कोई प्रत्याशी आता है तो जरूरी नहीं है कि उनके जाति के लोग उनके पक्ष में उतर जाएं.

दूसरी बात यह भी है कि इस इलाके में कोई भी ऐसा बड़ा जनप्रतिनिधि भी नहीं हुआ है जो अपनी जाति, समाज या वर्ग के लिए कुछ विशेष किया हो. वहीं पिछले 10 वर्षों से जिस प्रकार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम पर आम लोग मतदान कर रहे हैं, उससे जाति आधारित राजनीति की विचारधारा वाले लोगों की लोकप्रियता काफी कम हुई है.

चतरा संसदीय क्षेत्र में लोकसभा चुनाव में मतदान की तिथि 20 मई को है. कुल मिलाकर लगभग एक माह का समय राजनीतिक पार्टियों और प्रत्याशियों के पास बचा हुआ है. अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले 30 दिनों में अगड़ी जाति के उम्मीदवारों के बीच टक्कर होगी या फिर कोई अन्य उम्मीदवार खेल बिगाड़ देंगे.

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