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पूर्व पीएम मनमोहन सिंह की अपील, 'ये लोकतंत्र को बचाने का आखिरी मौका' - Manmohan Singh

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : May 30, 2024, 5:14 PM IST

EX PM Manmohan Singh:पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने तीन पेज का एक खुला पत्र लिखा है. इसमें उन्होंने ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार और मोदी सरकार के 10 साल के कार्यकाल की तुलना की है.

Manmohan Singh
पूर्व पीएम मनमोहन सिंह (फाइल फोटो ANI)

नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने 2024 के लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान से पहले पंजाब के मतदाताओं से एक भावनात्मक अपील की. उन्होंने कहा कि यह देश के लोकतंत्र और संविधान को बचाने का आखिरी मौका है. तीन पन्नों के खुले पत्र में दिग्गज कांग्रेस नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दो कार्यकालों के दौरान पिछले एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था में अकल्पनीय उथल-पुथल पर दुख जताया.

उन्होंने कहा, 'हमारे लोकतंत्र और संविधान को निरंकुश शासन के हमलों से सुरक्षित रखने के लिए अंतिम मौके का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाएं.' बता दें कि डॉ सिंह 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के समय वित्त मंत्री थे. वह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर भी थे.

'कुप्रबंधन के कारण दयनीय स्थिति'
पूर्व पीएम ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दो कार्यकालों और मोदी सरकार के 10 साल के प्रमुख सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक स्थिति की तुलना भी की. उन्होंने जीडीपी वृद्धि पर कहा, 'नोटबंदी की आपदा, दोषपूर्ण वस्तु और सेवा कर (GST) और कोविड महामारी के दौरान दर्दनाक कुप्रबंधन के कारण दयनीय स्थिति पैदा हो गई है.'

'नीचे गिरी देश की जीडीपी'
पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, 'मोदी सरकार में औसत जीडीपी वृद्धि दर छह प्रतिशत से नीचे गिर गई...कांग्रेस-यूपीए कार्यकाल के दौरान यह लगभग आठ प्रतिशत थी. इसके अलावा अभूतपूर्व बेरोजगारी और बेलगाम मुद्रास्फीति ने असमानता को बहुत बढ़ा दिया है. देश में बेरोजगारी 100 साल के उच्चतम स्तर पर है.'

विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार यूपीए सरकार के तहत जीडीपी वृद्धि 2010 में 8.5 प्रतिशत के उच्च स्तर को छू गई थी और 2008 में (वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान) 3.1 प्रतिशत के निचले स्तर पर पहुंची थी. उसके बाद के 10 साल में यह 9.1 प्रतिशत (2021 में) के उच्च स्तर पर पहुंच गई है और महामारी के दौरान -5.8 तक गिर गई.

सेंट्रल बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के बाद लिखा पत्र
गौरतलब है कि डॉ. सिंह का पत्र कांग्रेस द्वारा एक्स पर सेंट्रल बैंक की वार्षिक रिपोर्ट जारी करने के एक घंटे बाद शेयर किया गया है, सेंट्रल बैंक ने वित्त वर्ष 2024/25 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि सात प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था. वहीं, पिछले हफ्ते भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की एक रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2023/24 की समग्र वृद्धि दर आठ प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था.

डॉ. सिंह ने कहा कि यूपीए ने चुनौतियों के बावजूद लोगों की पर्चेजिंग पावर बढ़ाई, जबकि बीजेपी कुशासन के परिणामस्वरूप हाउलहोल्ड सेविंग ऐतिहासिक 47 साल के निचले स्तर पर आ गई है. वित्त वर्ष 2022/23 में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत पांच साल के निचले स्तर 14.2 ट्रिलियन रुपये या जीडीपी के 5.3 प्रतिशत तक गिर गई.

कांग्रेस ने शेयर किया पत्र
कांग्रेस ने इस पत्र को शेयर करते हुए कहा कि पिछले 10 साल में, BJP सरकार ने पंजाब और पंजाबियत को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. 750 किसान, जिनमें से ज्यादातर पंजाब से थे, दिल्ली की सीमाओं पर महीनों तक इंतजार करते हुए शहीद हो गए.

जब लाठी और रबर की गोलियों से भी मन नहीं भरा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में हमारे किसानों को 'आंदोलनजीवी' और 'परजीवी' कहकर उनका अपमान किया. किसानों की सिर्फ यही मांग थी कि उनसे चर्चा किए बिना उन पर थोपे गए कृषि कानूनों को वापस लिया जाए.'

यह भी पढ़ें- प्रधानमंत्री ने चुनाव प्रचार के दौरान 421 बार 'मंदिर-मस्जिद' और विभाजनकारी मुद्दों पर बात की: खड़गे

नई दिल्ली: पूर्व प्रधानमंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने 2024 के लोकसभा चुनाव के अंतिम चरण के मतदान से पहले पंजाब के मतदाताओं से एक भावनात्मक अपील की. उन्होंने कहा कि यह देश के लोकतंत्र और संविधान को बचाने का आखिरी मौका है. तीन पन्नों के खुले पत्र में दिग्गज कांग्रेस नेता ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी (BJP) के दो कार्यकालों के दौरान पिछले एक दशक में भारतीय अर्थव्यवस्था में अकल्पनीय उथल-पुथल पर दुख जताया.

उन्होंने कहा, 'हमारे लोकतंत्र और संविधान को निरंकुश शासन के हमलों से सुरक्षित रखने के लिए अंतिम मौके का ज्यादा से ज्यादा फायदा उठाएं.' बता दें कि डॉ सिंह 1991 में भारतीय अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के समय वित्त मंत्री थे. वह भारतीय रिजर्व बैंक के गवर्नर भी थे.

'कुप्रबंधन के कारण दयनीय स्थिति'
पूर्व पीएम ने कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार के दो कार्यकालों और मोदी सरकार के 10 साल के प्रमुख सामाजिक-राजनीतिक और आर्थिक स्थिति की तुलना भी की. उन्होंने जीडीपी वृद्धि पर कहा, 'नोटबंदी की आपदा, दोषपूर्ण वस्तु और सेवा कर (GST) और कोविड महामारी के दौरान दर्दनाक कुप्रबंधन के कारण दयनीय स्थिति पैदा हो गई है.'

'नीचे गिरी देश की जीडीपी'
पूर्व प्रधानमंत्री ने कहा, 'मोदी सरकार में औसत जीडीपी वृद्धि दर छह प्रतिशत से नीचे गिर गई...कांग्रेस-यूपीए कार्यकाल के दौरान यह लगभग आठ प्रतिशत थी. इसके अलावा अभूतपूर्व बेरोजगारी और बेलगाम मुद्रास्फीति ने असमानता को बहुत बढ़ा दिया है. देश में बेरोजगारी 100 साल के उच्चतम स्तर पर है.'

विश्व बैंक के आंकड़ों के अनुसार यूपीए सरकार के तहत जीडीपी वृद्धि 2010 में 8.5 प्रतिशत के उच्च स्तर को छू गई थी और 2008 में (वैश्विक वित्तीय संकट के दौरान) 3.1 प्रतिशत के निचले स्तर पर पहुंची थी. उसके बाद के 10 साल में यह 9.1 प्रतिशत (2021 में) के उच्च स्तर पर पहुंच गई है और महामारी के दौरान -5.8 तक गिर गई.

सेंट्रल बैंक की वार्षिक रिपोर्ट के बाद लिखा पत्र
गौरतलब है कि डॉ. सिंह का पत्र कांग्रेस द्वारा एक्स पर सेंट्रल बैंक की वार्षिक रिपोर्ट जारी करने के एक घंटे बाद शेयर किया गया है, सेंट्रल बैंक ने वित्त वर्ष 2024/25 के लिए वास्तविक जीडीपी वृद्धि सात प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया था. वहीं, पिछले हफ्ते भारतीय स्टेट बैंक (SBI) की एक रिपोर्ट में वित्त वर्ष 2023/24 की समग्र वृद्धि दर आठ प्रतिशत रहने का अनुमान लगाया गया था.

डॉ. सिंह ने कहा कि यूपीए ने चुनौतियों के बावजूद लोगों की पर्चेजिंग पावर बढ़ाई, जबकि बीजेपी कुशासन के परिणामस्वरूप हाउलहोल्ड सेविंग ऐतिहासिक 47 साल के निचले स्तर पर आ गई है. वित्त वर्ष 2022/23 में परिवारों की शुद्ध वित्तीय बचत पांच साल के निचले स्तर 14.2 ट्रिलियन रुपये या जीडीपी के 5.3 प्रतिशत तक गिर गई.

कांग्रेस ने शेयर किया पत्र
कांग्रेस ने इस पत्र को शेयर करते हुए कहा कि पिछले 10 साल में, BJP सरकार ने पंजाब और पंजाबियत को बदनाम करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. 750 किसान, जिनमें से ज्यादातर पंजाब से थे, दिल्ली की सीमाओं पर महीनों तक इंतजार करते हुए शहीद हो गए.

जब लाठी और रबर की गोलियों से भी मन नहीं भरा तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने संसद में हमारे किसानों को 'आंदोलनजीवी' और 'परजीवी' कहकर उनका अपमान किया. किसानों की सिर्फ यही मांग थी कि उनसे चर्चा किए बिना उन पर थोपे गए कृषि कानूनों को वापस लिया जाए.'

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