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हाईकोर्ट का अहम फैसला; निकाह में बने रहते हुए मुसलमान को लिव इन रिलेशनशिप में रहने का हक नहीं, इस्लाम इजाजत नहीं देता - High Court order

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By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : May 8, 2024, 10:11 PM IST

Updated : May 8, 2024, 10:27 PM IST

एक महत्वपूर्ण निर्णय में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा है कि इस्लाम को मानने वाले व्यक्ति को अपनी पत्नी के जीवित रहते लिव इन रिलेशनशिप में रहने का कोई अधिकार नहीं है.

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लखनऊ: एक महत्वपूर्ण निर्णय में हाईकोर्ट की लखनऊ बेंच ने कहा है कि इस्लाम को मानने वाले व्यक्ति को अपनी पत्नी के जीवित रहते लिव इन रिलेशनशिप में रहने का कोई अधिकार नहीं है. कोर्ट ने कहा कि इस्लामिक मत इस बात की इजाजत नहीं देता कि कोई मुसलमान अपने निकाह के बने रहते दूसरी स्त्री के साथ लिव इन रिलेशनशिप में भी रहे.

जस्टिस एआर मसूदी व जस्टिस अजय कुमार श्रीवास्तव प्रथम की पीठ ने यह आदेश याचीगण हिंदू लड़की व शादीशुदा मुस्लिम पुरूष शादाब खान की उस याचिका पर सुनवाई के दौरान पारित किया, जिसमें उन्होंने न केवल इस मामले में दर्ज प्राथमिकी को रद्द करने की मांग की थी बल्कि लिव इन रिलेशन में रहने के दौरान सुरक्षा की मांग भी की थी.

अपने आदेश में कोर्ट ने कहा कि रूढ़ियां व प्रथाएं भी विधि का समान स्त्रोत हैं और संविधान का अनुच्छेद 21 ऐसे रिश्ते के अधिकार को मान्यता नहीं देता जो रूढ़ियों व प्रथाओं से प्रतिबंधित हो. इन टिप्पणियों के साथ कोर्ट ने पुलिस को आदेश दिया कि युवती को सुरक्षा में उसके माता-पिता के पास पहुंचा दिया जाए. याचियों का कहना था कि वे बालिग हैं और अपनी मर्जी से लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे हैं. वहीं युवती के भाई द्वारा मामले में अपहरण का आरोप लगाते हुए बहराइच के विशेश्वरगंज थाने में एफआईआर दर्ज करा दी गई है. याचिका में उक्त एफआईआर को चुनौती दी गई. साथ ही याचियों के शांतिपूर्ण जीवन में दखल न दिए जाने का आदेश देने की भी मांग की गई थी.

सुनवाई के दौरान कोर्ट के सामने आया कि शादाब की शादी 2020 में फरीदा खातून से हुई, जिससे उसे एक बच्ची भी है. फरीदा इस समय अपने माता-पिता के साथ मुंबई में रह रही है. इस तथ्य के सामने आने पर केार्ट ने कहा कि वर्तमान याचिका द्वारा याचीगण अपने लिव-इन रिलेशनशिप को वैधानिकता देना चाहते हैं जबकि याची शादाब जिस मजहब से ताल्लुक रखता है, उसमें एक विवाह के निर्वहन के दौरान लिव इन रिलेशन की अनुमति नहीं है.

केस के तथ्यों पर गौर करने के बाद कोर्ट ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 21 उन प्रकार के मामलों में सुरक्षा का अधिकार नहीं प्रदान करता, जिनमें रूढ़ियां और प्रथाएं भिन्न-भिन्न मत वाले व्यक्तियों को किसी कृत्य को करने से मना करती हों, क्योंकि संविधान का अनुच्छेद 13 रूढ़ियों और प्रथाओं को भी कानून मानता है. कोर्ट ने कहा कि चूंकि इस्लाम शादीशुदा मुसलमान को लिव इन में रहने की इजाजत नहीं देता अतः याचिकाकर्ता लिव इन में रहने के लिए सुरक्षा पाने का कोई अधिकार नहीं है.
कोर्ट ने कहा कि संविधानिक नैतिकता और सामाजिक नैतिकता में सामान्जस्य बनाए जाने की आवश्यकता है ताकि समाज में शांन्ति कायम रह सके और सामाजिक तानाबाना बना रहे.

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Last Updated : May 8, 2024, 10:27 PM IST
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