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सुप्रीम कोर्ट ने हत्या मामले में गुजरात हाईकोर्ट के एक फैसले को पलटा, पिता-पुत्र को किया बरी - SC acquits father son

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By Sumit Saxena

Published : Apr 13, 2024, 1:56 PM IST

SC acquits father-son in 1996 murder case
SC ने 1996 के हत्या मामले में पिता-पुत्र को बरी कर दिया

SC acquits father son: सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के एक फैसले को पलट दिया. शीर्ष अदालत ने कहा कि हाईकोर्ट ने स्थापित सिद्धांत का अनदेखी की है.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने लगभग तीन दशक पुराने हत्या के मामले में पिता-पुत्र को बरी कर दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि गुजरात हाईकोर्ट ने स्थापित सिद्धांत को अनदेखा किया है. आगे कहा कि अपीलीय अदालत केवल इस आधार पर बरी करने के आदेश को पलट नहीं सकती कि एक और दृष्टिकोण संभव है.

न्यायमूर्ति अभय एस. ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने कहा कि अपीलीय अदालत बरी करने के आदेश में तभी हस्तक्षेप कर सकती है, जब वह सबूतों की फिर से सराहना करने के बाद संतुष्ट हो कि एकमात्र संभावित निष्कर्ष यह है कि आरोपी का अपराध तर्कसम्मत संदेह से परे स्थापित किया गया है.

पीठ की ओर से फैसला लिखने वाले न्यायमूर्ति ओका ने कहा, 'अपीलीय अदालत केवल इस आधार पर बरी करने के आदेश को पलट नहीं सकती कि एक और दृष्टिकोण संभव है. दूसरे शब्दों में बरी करने का निर्णय विकृत पाया जाना चाहिए. जब तक अपीलीय अदालत इस तरह के निष्कर्ष को दर्ज नहीं करती, बरी करने के आदेश में कोई हस्तक्षेप नहीं किया जा सकता है.'

पीठ ने 10 अप्रैल को दिए फैसले में कहा कि उच्च न्यायालय ने इस सुस्थापित सिद्धांत की अनदेखी की है कि बरी करने का आदेश आरोपी की बेगुनाही की धारणा को और मजबूत करता है. उच्च न्यायालय के फैसले में दूसरी त्रुटि की ओर इशारा करते हुए, न्यायमूर्ति ओका ने कहा, 'उच्च न्यायालय एक निष्कर्ष दर्ज करने की हद तक चला गया है कि अपीलकर्ता अपने समर्थन में सबूत पेश करने में विफल रहा है. बचाव पक्ष के गवाह की जांच करने में विफल रहा है और झूठ साबित करने में विफल रहा है. अभियोजन पक्ष की कहानी सबूत के बोझ की यह अवधारणा पूरी तरह से गलत है.'

न्यायमूर्ति ओका ने कहा कि जब तक प्रासंगिक दंड विधान के तहत आरोपी पर कोई नकारात्मक बोझ नहीं डाला जाता है या कोई उल्टा दायित्व नहीं होता है, तब तक अभियुक्त को किसी भी बोझ से मुक्ति की आवश्यकता नहीं है. उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि ऐसे मामले में जहां वैधानिक अनुमान है, अभियोजन पक्ष द्वारा प्रारंभिक बोझ उतारने के बाद, खंडन का बोझ आरोपी पर स्थानांतरित हो सकता है.

उपरोक्त वैधानिक प्रावधानों के अभाव में इस मामले में उचित संदेह से परे आरोपी के अपराध को साबित करने का बोझ अभियोजन पक्ष पर था. इसलिए सबूत के बोझ पर उच्च न्यायालय का निष्कर्ष पूरी तरह से गलत है. यह देश के कानून के विपरीत है. गुजरात में एक पुंजाभाई की हत्या के अपराध में पिता-पुत्र पर मुकदमा चलाया गया.

यह घटना 17 सितंबर, 1996 को हुई थी. यह आरोप लगाया गया था कि भूपतभाई बच्चूभाई चावड़ा और बच्चूभाई वलाभाई चावड़ा ने पंजाबभाई पर पाइप और लाठियों से हमला किया था. पीड़ित को काफी चोटें आई और आखिरकार उसने दम तोड़ दिया. जुलाई 1997 में ट्रायल कोर्ट ने आरोपियों को बरी कर दिया. फिर अभियोजन पक्ष ने इसे गुजरात उच्च न्यायालय में इस फैसले को चुनौती दी.

गुजरात हाईकोर्ट ने बरी करने के फैसले को पलट दिया और दोनों को हत्या के लिए दोषी ठहराया. पिता-पुत्र ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख किया. सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात हाईकोर्ट के फैसले को रद्द करते हुए कहा,'उच्च न्यायालय के पास बरी करने के आदेश को पलटने का कोई कारण नहीं था. ट्रायल कोर्ट के 5 जुलाई 1997 के फैसले और आदेश को बहाल किया जाता है.'

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