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17 दिनों में पांच भारत रत्न, मोदी सरकार के क्या हैं राजनीतिक संदेश ?

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Feb 9, 2024, 6:34 PM IST

Updated : Feb 9, 2024, 7:50 PM IST

Bharat Ratna
भारत रत्न

पांच बड़ी शख्सियतों को भारत रत्न देने के पीछे मोदी सरकार की राजनीतिक मंशा क्या हो सकती है ? क्या इस फैसले का असर आने वाले लोकसभा चुनाव पर भी पड़ेगा ? क्या भाजपा दक्षिण के राज्यों समेत जाट इलाकों में अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रही है ? क्या पार्टी अपने राजनीतिक कैडरों को भी कोई संदेश दे रही है ? आइए इनसे जुड़े कुछ प्रमुख तथ्यों पर एक नजर डालते हैं.

नई दिल्ली : पिछले 17 दिनों में मोदी सरकार ने पांच बड़ी शख्सियतों को भारत रत्न देने की घोषणा की है. ये हैं- कर्पूरी ठाकुर, लाल कृष्ण आडवाणी, चौ. चरण सिंह, पीवी नरसिम्हा राव और एमएस स्वामीनाथन. कर्पूरी ठाकुर बिहार से, चौ. चरण सिंह पश्चिमी उत्तर प्रदेश से और पीवी नरसिम्हा राव तेलंगाना से और एमएस स्वामीनाथन तमिलनाडु से संबंध रखते हैं. चुनावी साल में पांच-पांच व्यक्तियों को भारत रत्न देने के ऐलान के क्या मायने हैं ? क्या इसके जरिए राजनीतिक संदेश देने की कोशिश की जा रही है ? आइए इस सवाल का जवाब जानने की कोशिश करते हैं.

गैर गांधी परिवार के नेताओं को मोदी का सम्मान

मोदी सरकार ने अपने 10 साल के कार्यकाल में कांग्रेस के उन नेताओं को सम्मानित किया है, जो गांधी परिवार से नहीं हैं. जैसे- सरदार वल्लभ भाई पटेल, प्रणब मुखर्जी और अब पीवी नरसिम्हा राव. मोदी सरकार ने दुनिया भर में सबसे ऊंची मूर्ति (स्टैच्यू ऑफ यूनिटी) गुजरात में स्थापित करवाई है और वह मूर्ति सरदार पटेल की है. पटेल कांग्रेस के बड़े नेता थे. वह नेहरू मंत्रिमंडल के सदस्य थे. ऐसा कहा जाता है कि आजादी के बाद कांग्रेस के अधिकांश नेता पटेल को पीएम के तौर पर देखना चाहते थे, लेकिन गांधी, नेहरू के पक्ष में खड़े थे, लिहाजा वह पहले प्रधानमंत्री बने. पीएम मोदी ने सार्वजनिक मंच से कई बार कांग्रेस पार्टी पर पटेल की उपेक्षा करने के आरोप लगाए हैं.

इसी तरह से 2019 लोकसभा चुनाव से ठीक पहले मोदी सरकार ने प्रणब मुखर्जी को भारत रत्न देने की घोषणा की थी. प्रणब मुखर्जी पश्चिम बंगाल से थे. राजनीतिक हलकों में यह सर्वविदित है कि प्रणब मुखर्जी का गांधी परिवार से बहुत अच्छा संबंध नहीं था. वरिष्ठ पत्रकार संजय बारू ने अपनी एक किताब में जिक्र किया है कि जिस समय सोनिया गांधी ने मनमोहन सिंह को पीएम पद के लिए चुना था, उस समय प्रणब मुखर्जी बहुत सहज नहीं थे. बारू के अनुसार मुखर्जी यह मानकर चल रहे थे कि उन्हें ही पीएम के रूप में चुना जाएगा.

इसी तरह से अब पीवी नरसिम्हा राव को लेकर भी बात कही जा सकती है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पूर्व पीएम पीवी नरसिम्हा राव का जब निधन हुआ था, उनकी अंत्येष्टि आंध्र प्रदेश में हुई थी. मीडिया रिपोर्ट में अक्सर इसका उल्लेख किया जाता है कि उस समय केंद्र में यूपीए की सरकार थी, फिर भी दिल्ली में उनकी अंत्येष्टि के लिए कोई जगह नहीं दी गई थी.

अब बिहार की बात करते हैं. बिहार में कुछ दिन पहले ही सत्ता परिवर्तन हो गया. आरजेडी और जेडीयू का गठबंधन टूट गया. जेडीयू और भाजपा ने फिर से गठबंधन कर अपनी सरकार बना ली है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार नए गठबंधन को लोकसभा चुनाव में फायदा मिल सकता है, बशर्ते अति पिछड़ा वर्ग नीतीश कुमार के साथ खड़ा रहे. नीतीश कुमार कुर्मी जाति आते हैं. भाजपा ने सम्राट चौधरी को उप मुख्यमंत्री बनाया है. वह कोइरी जाति से हैं. साथ ही विजय सिन्हा भी उप मुख्यमंत्री बने हैं और वह अगड़ी जाति भूमिहार वर्ग से आते हैं.

मीडिया रिपोर्ट के हिसाब से इन तीनों जातियों को एनडीए का समर्थक माना जाता है. दलितों के प्रमुख नेता- चिराग पासवान और जीतन राम मांझी भी एनडीए के साथ हैं. दूसरी ओर यादव और मुस्लिमों को राजद का समर्थक माना जाता है. ऐसे में विश्लेषक मानते हैं कि ईबीसी यानी अति पिछड़ा वर्ग जिस किसी भी गठबंधन के साथ खड़ा हो जाए, तो उनकी सरकार बन सकती है. कर्पूरी ठाकुर इसी समुदाय से आते थे. वह बिहार के मुख्यमंत्री रह चुके हैं. वह एक निहायत ही ईमानदार नेता थे. उन्होंने पिछड़े वर्गों को आगे लाने के लिए कई काम किए थे. पीएम मोदी ने उनकी सौंवीं जयंती से ठीक एक दिन पहले उन्हें भारत रत्न देने की घोषणा की थी. इस फैसले के बाद ही नीतीश कुमार औपचारिक रूप से एनडीए में शामिल हो गए थे. ओबीसी समुदाय कर्पूरी ठाकुर को अपना आदर्श मानता है.

अब पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की बात करते हैं. वह पश्चिमी उत्तर प्रदेश से आते हैं. उन्हें किसानों का मसीहा कहा जाता है. जाट और किसानों के बीच वह बहुत ही लोकप्रिय थे. जैसे ही सरकार ने चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा की, उनके पोते जयंत चौधरी ने ट्वीट किया, दिल जीत लिया. इसके बाद उनकी पार्टी ने एनडीए के साथ जाने पर भी रजामंदी दे दी.

आपको बता दें कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में लोकसभा की कुल 27 सीटें हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने यहां पर 19 सीटें जीती थीं. 2014 के लोकसभा चुनाव से ठीक पहले 2013 में इन इलाकों में दंगे फैल गए थे. हालांकि, किसान आंदोलन की वजह से भाजपा की लोकप्रियता थोड़ी घटी, लेकिन समय रहते ही भाजपा ने नए कृषि कानूनों को वापस ले लिया और विधानसभा चुनाव में राजनीतिक नुकसान से अपने आपको बचा लिया.

अब माना जा रहा है कि चौ. चरण सिंह को भारत रत्न देने की घोषणा के बाद जाट समुदाय भाजपा के साथ जा सकता है. ऊपर से आरएलडी ने भी गठबंधन पर अपनी मुहर लगा दी है. मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक जयंत चौधरी की पार्टी को भाजपा लोकसभा में दो सीटें दे सकती है और किसी एक नेता को राज्यसभा की सीट दे सकती है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अलावा हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में भी इस फैसले का सरकारात्मक संदेश जा सकता है. यहां पर जाट समुदाय बड़ा प्रभाव रखता है.

पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न दिए जाने को लेकर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में अच्छा रिस्पॉंस मिल सकता है, यह आकलन मीडिया का है. राव एक विद्वान व्यक्ति थे. वह बहुभाषी थे. वह संयुक्त आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री भी थे. उसके बाद वह केंद्र में मंत्री बने. भाजपा तेलंगाना और आंध्र प्रदेश, दोनों राज्यों में अपना पैर पसारने की कोशिश कर रही है.

तेलंगाना में उसे राजनीतिक सफलता मिलती हुई दिख रही है. इससे भी बड़ी बात यह है कि आंध्र प्रदेश की दोनों ही प्रमुख राजनीतिक पार्टियां- टीडीपी और वाईएसआरसीपी- के साथ भाजपा के रिश्ते सामान्य हैं. जनसेना पार्टी भाजपा की सहयोगी है. तेलगू राज्यों में नरसिम्हा राव का बड़ा आदर है. उन्होंने जिस तरह से देश को आर्थिक संकट से उबारा था, पूरा देश उनका कायल हो गया था. 1992 में जिस समय बाबरी मस्जिद को गिरा दिया गया था, वह उस समय देश के पीएम थे. कुछ लोगों ने उनसे सवाल भी किया था, आप इसे रोक सकते थे.

भाजपा दक्षिण के राज्यों में लगातार अपना प्रभाव बढ़ाने की कोशिश कर रही है. संभवतः यही वजह है कि पीएम मोदी ने संसद में सेंगोल परंपरा को पुनर्जीवित किया. उन्होंने काशी-तमिल संगमम आयोजित करवाए. पद्म अवार्ड में भी दक्षिण की कई बड़ी हस्तियों को शामिल किया है. कर्नाटक में उन्होंने जेडीएस से गठबंधन का भी ऐलान किया है. तमिलनाडु में भाजपा और एआईएडीएमके का गठबंधन था. हालांकि, अब यह गठबंधन टूट चुका है.

कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भी आप दक्षिण से जोड़ सकते हैं. वह तमिलनाडु से थे. कृषि के क्षेत्र में उनके कार्यों का पूरा देश लोहा मानता है. राजनीतिक रूप से यहां पर कितना असर पड़ेगा, अभी कुछ कहना मुश्किल है. लेकिन पूरा देश जानता है कि साठ के दशक में जब देश अन्न संकट का सामना कर रहा था, तब उन्होंने धान की कई किस्में विकिसत की, जो अधिक उत्पादन देने वाला साबित हुआ. वे हरित क्रांति के जनक थे.

जहां तक लाल कृष्ण आडवाणी की बात है, तो पार्टी ने इसके जरिए अपने कार्यकर्ताओं को संदेश देने की कोशिश की है. मीडिया रिपोर्ट में बार-बार इस बात को लेकर चर्चा चलती रहती थी कि आडवाणी मोदी के राजनीतिक गुरु थे, इसके बावजूद उन्हें वह सम्मान नहीं मिला, जिसके वह हकदार थे. साथ ही इस बात को लेकर भी मीडिया रिपोर्ट में बहस होती रही है कि आडवाणी ही वह नेता हैं, जिन्होंने भाजपा को दो सीटों से बढ़ाकर 180 तक ले गए. राम मंदिर आंदोलन के वह सबसे प्रखर नेता था. उनकी यात्रा की गूंज पूरे देश में सुनाई देती थी. मीडिया रिपोर्ट में यह भी कहा जाता है कि आडवाणी ही वह व्यक्ति थे, जिन्होंने मोदी को गुजरात का सीएम बनाए रखा था, नहीं तो वाजपेयी के समय में कुछ ऐसे भी नेता थे, जो चाहते थे कि मोदी सीएम न रहें. बहुत संभव है कि मोदी के इस फैसले से उन कार्यकर्ताओं की भावनाओं को तुष्ट किया गया हो, जो इस तरह की सोच रखते हों. मीडिया रिपोर्ट में अब कहा जा रहा है कि मोदी ने एक साथ पार्टी, पक्ष और विपक्ष तीनों को संदेश दे दिया.

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Last Updated :Feb 9, 2024, 7:50 PM IST
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