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किसान आंदोलन 2024: WTO क्विट डे मना रहे अन्नदाता, क्यों कर रहे निकलने की मांग, एक क्लिक में समझिए

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By ETV Bharat Haryana Team

Published : Feb 26, 2024, 2:44 PM IST

Farmers Protest: किसानों आंदोलन का आज चौदहवां दिन है. किसानों का कहना है कि एमएसपी को लेकर लीगल गांरटी चाहिए. उनकी यह भी मांग है कि खेती को विश्व व्यापार संगठन(WTO) से बाहर रखा जाए. किसान आज WTO क्विट डे मना रहे हैं. आइए समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर क्यों किसान नेता WTO से भारत को बाहर निकलने की मांग कर रहे हैं.

Farmers Protest
WTO क्विट डे मना रहे अन्नदाता, क्यों कर रहे निकलने की मांग

चंडीगढ़: किसानों का आंदोलन आज चौदहवें दिन में प्रवेश कर गया है. शंभू बॉर्डर पर किसान डटे हुए हैं. किसानों की मांग है कि एमएसपी यानि न्यूनतम सर्मथन मूल्य की कानूनी गारंटी सरकार दे. लेकिन सरकार की ओर से इस पर कोई ठोस बयान अब तक सामने नहीं आया है. किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने कहा है कि " डब्ल्यूटीओ की नीति लीगल गारंटी कानून बनाने के बीच में बड़ी बाधा है". इस बीच अबूधाबी में 26 से 29 फरवरी तक विश्व व्यापार संगठन WTO का 13वां मंत्रिस्तरीय सम्मेलन आयोजित हो रहा है. किसान नेताओं की मांग है कि भारत WTO से बाहर निकल जाए.

क्या है WTO: विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) 164 सदस्य देशों से बना एक वैश्विक संगठन है जो विभिन्न देशों के बीच व्यापार के नियमों को देखता है. इसका लक्ष्य ये सुनिश्चित करना है कि देशों के बीच व्यापार यथासंभव सुचारू रुप से चलता रहे. अगर व्यापार को लेकर दो देशों के बीच विवाद उत्पन्न होता है तो ये इसका समाधान करता है. विश्व व्यापार संगठन के तहत एक रुपरेखा निर्धारित की गई है जिन पर सदस्य देशों द्वारा बातचीत के बाद हस्ताक्षर किए गए हैं. विश्व व्यापार संगठन का लक्ष्य वस्तुओं और सेवाओं के उत्पादकों, निर्यातकों और आयातकों को अपना व्यवसाय चलाने में मदद करना है.

WTO को लेकर किसानों की क्या मांग है?: किसान नेता जगजीत सिंह डल्लेवाल ने WTO पर आरोप लगाते हुए कहा कि "भारत को World Trade Organization (WTO) से बाहर निकलना चाहिए, क्योंकि डब्ल्यूटीओ एमएसपी के खिलाफ है. डल्लेवाल ने कहा कि “हम सरकार से एमएसपी की गारंटी चाहते हैं, लेकिन डब्ल्यूटीओ नीति के तहत एमएसपी को खत्म करने के लिए काम कर रहा है. यदि डब्ल्यूटीओ के तहत एमएसपी खत्म हो जाती है, तो ये हमारे किसानों के लिए हानिकारक होगा, और हम ऐसा नहीं होने दे सकते. इसलिए, हमारी मांग है कि सरकार को डब्ल्यूटीओ के समझौते से एग्रीकल्चरल सेक्टर को बाहर निकालना चाहिए". किसान नेता सरवन सिंह पंढेर ने कहा कि डब्ल्यूटीओ की नीति लीगल गारंटी कानून बनाने के बीच में बड़ी बाधा है.

सब्सिडी को लेकर क्या कहता है WTO: आर्थिक मामलों के जानकारों के अनुसार डब्लयूटीओ सरकारी सब्सिडी को गलत मानता है. WTO के अनुसार सदस्य देशों को अपने किसानों को दी जाने वाली सब्सिडी को सीमित करना चाहिए. किसानों या स्थानीय उत्पादकों को दिए जाने वाले सरकारी सब्सिडी को एक सीमा के अंदर रखना आवश्यक है. WTO का मानना है कि बहुत अधिक सब्सिडी देने से अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर असर पड़ता है. WTO के नियम के अनुसार सदस्य देशों को यह निश्चित करना होगा कि वे अपने देश में व्यापार बाधाओं को कम करें और अपने बाजारों को सभी के लिए खोलें. आर्थिक विशेषज्ञ कहते हैं कि "WTO के नियम के अनुसार बीज, खाद, सिंचाई, बिजली, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) जैसी चीजों पर किसी भी देश की सरकार उत्पादन मूल्य के 5 से 10% तक ही सब्सिडी दे सकती है".

WTO और MSP: विश्व व्यापार संगठन के समझौतों के तहत एमएसपी पर कानूनी गारंटी नहीं दी जा सकती. इसलिए किसान मांग कर रहे हैं कि भारत सरकार WTO से बाहर आकर उनकी मांग मान लें. मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत में प्रति किसान 300 डॉलर की सब्सिडी मिलती है, जबकि अमेरिका में प्रति किसान 40,000 डॉलर की सब्सिडी मिलती है. किसान नेताओं का कहना है कि "अमेरिका में किसानों को वहां की जीडीपी का पांच प्रतिशत सब्सिडी मिलती है. मगर भारत की जनसंख्या वहां से ज्यादा है और किसानों की आबादी 60 प्रतिशत है. इन किसानों को जीडीपी का 10 प्रतिशत सब्सिडी दी जा रही है. यह भी कई वर्ष पुरानी जीडीपी पर सब्सिडी दी जा रही है. सब्सिडी की इस शर्त को हटाया जाना चाहिए".

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