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दृष्टिहीनों की 'मसीहा' रोशनी लाने वाली डॉ. नैचियार - Dr Natchiar Light for Million

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Apr 24, 2024, 4:55 PM IST

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Dr Natchiar Story: तमिलनाडु के वडामलापुरम के शांत गांव में, हरे-भरे खेतों और पहाड़ियों के बीच, आशा की एक किरण चमकती दिखाई पड़ रही है. हम बात कर रहे हैं डॉक्टर नैचियार की, जिन्हें दृष्टिहीनों के लिए 'रोशनी लाने वाली' डॉक्टर के नाम से जाना जाता है. डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने से लेकर देश की पहली न्यूरो-नेत्र रोग विशेषज्ञ बनने, पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित होने के पीछे उनके लंबे संघर्ष की एक सच्ची कहानी छिपी हुई है. उनकी यात्रा लाखों-करोड़ों लोगों के लिए प्रेरणा के श्रोत हैं.

डॉ. नैचियार दृष्टिहीनों की 'मसीहा'(वीडियो)

मदुरै: डॉ. नैचियार उन लोगों के लिए वरदान हैं, जिन्होंने अब तक अंधेरे के सिवाय कुछ नहीं देखा. डॉक्टर ने दृष्टि से वंचित लोगों की आंखों में रोशनी लाने के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया. उनके दशकों के अथक समर्पण से भरी यात्रा ने लाखों लोगों के जीवन में सकारात्मक बदलाव लाए हैं. दृष्टि बाधित लोगों की आंखों में रोशनी देने के लिए उनके अथक प्रयास और काफी लंबी यात्रा समाज को एक नई प्रेरणा दे रही है. उन्होंने आंखों की इलाज के क्षेत्र में ऐसे तमाम कीर्तिमान स्थापित किए, जिसके कारण वे देश-विदेश में कुशल नेत्र रोग विशेषज्ञ के तौर पर प्रसिद्ध हो गईं.

बड़े भाई ने दिखाई राह
एक साधारण किसान परिवार में जन्मी, डॉ. नैचियार का शुरुआती जीवन काफी चुनौतियों से भरा रहा. खासकर महिलाओं के लिए ग्रामीण जीवन की वास्तविकता से लोग परिचित ही होंगे. गांव में रहकर अपने सपनों को साकार रूप देना कोई आसान खेल नहीं. बचपन में ही उनके पिता की बीमारी के कारण अचानक मृत्यु हो गई. पर वो घबराई नहीं, जीवन में कड़वे अनुभवों को झेलते हुए उनके भीतर दृढ़ संकल्प की ज्योत जगी. उनके जीवन में बदलाव लाने का श्रेय उनके बड़े भाई डॉ. गोविंदप्पा वेंकटस्वामी को जाता है. एक प्रसिद्ध नेत्र रोग विशेषज्ञ बड़े भाई के मार्गदर्शन में नैचियार को भविष्य के लिए महान उद्देश्य मिल गया. वैसे नैचियार शुरू से ही कभी भी कड़ी मेहनत करने से पीछे नहीं हटीं. उन्होंने ठान लिया था कि वह एक दिन अपने बड़े भाई की तरह ही सफल आंखों की डॉक्टर बनेंगी. अपने सपनों को साकार करने के लिए उन्होंने डाक्टरी की पढ़ाई की. पढ़ाई के दौरान उन्होंने दृष्टिबाधित छात्रों के संघर्षों को काफी नजदीक से जाना. उनके मन में करुणा के बीज फूट चुके थे. उन्होंने शायद ही सोचा होगा कि आगे चलकर वह समाज के लिए ऐसा काम करेंगी, जो नेत्र रोग निवारण के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित होगा. नैचियार के शुरुआती संघर्षों ने उनके आने वाले भविष्य को तय कर दिया था.दृष्टिबाधितों के जीवन में उजाला लाने का संकल्प और जुनून ने उन्हें काफी प्रेरित किया. इस प्रकार नेत्र विज्ञान की दुनिया में नैचियार की असाधारण यात्रा शुरू हुई. डॉ. नैचियार अंधेरे में जीवन जीने को मजबूर ऐसे हजारों लोगों के लिए एक वरदान साबित हुईं. वे देश और दुनिया में आंखों में रोशनी देने वाली डॉक्टर के नाम से मशहूर हो गईं. वंचितों की सेवा करने की उनकी अटूट प्रतिबद्धता ने एक ऐसी विरासत को तैयार किया जो आने वाली कई पीढ़ियों को प्रेरित करती रहेगी.

दृष्टिबाधितों के लिए डॉक्टर की पढ़ाई की
1958 का वह दौर था जब डॉ. नैचियार ने मदुरे मेडिकल कॉलेज से अपने मेडिकल सफर की शुरुआत की और नेत्र रोग विज्ञान के क्षेत्र में अभूतपूर्व करियर की नींव रखी. 1963 में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त करने से लेकर देश की पहली न्यूरो-नेत्र रोग विशेषज्ञ बनने तक, उन्होंने जो भी अचीवमैंट हासिल किया, वह नेत्र विज्ञान के क्षेत्र में मील का पत्थर साबित हुआ. कर्मठ और जुनूनी डॉ. नैचियार ने सभी बाधाओं को तोड़ दिया और चिकित्सा पेशेवरों की भावी पीढ़ियों के लिए एक नया मार्ग प्रशस्त किया. डॉ नैचियार का दृष्टिकोण शिक्षा जगत की सीमाओं से कहीं आगे तक फैला हुआ था. यह समावेशिता, पहुंच और समानता का दृष्टिकोण था. यह एक ऐसा दृष्टिकोण था जो उनके बड़े भाई गोविंदप्पा वेंकटस्वामी द्वारा अरविंद आई हॉस्पिटल और ऑरोलैब की स्थापना के दौरान प्रकट हुआ. दृष्टिबाधितों के लिए आसान आंखों के इलाज का महत्व को पहचानते हुए डॉ नैचियार अपने भाई के साथ एक भागीदार के तौर पर जुड़ गईं. यहां से उनकी एक ऐसी यात्रा शुरू हुई, जिसने आंखों के इलाज के क्षेत्र में एक बड़ी क्रांति ला दी. उनकी विशेषज्ञता और जुनून उनके साझा मिशन का हिस्सा बन गया.

नैचियार रोशनी देने वाली डॉक्टर
डॉ नैचियार ने कभी खुद एक दायरे में बांध कर नहीं रखा. गांव के परिवेश में पली-बढ़ी डॉ नैचियार को ग्रामीणों की तकलीफों उनकी जरूरतों के बारे में पूरा ज्ञान था. उन्होंने एक सफल नेत्र रोग विशेषज्ञ के तौर पर ग्रामीण समुदायों में चिकित्सा शिविरों और परीक्षा केंद्रों सहित नवोन्मेषी कार्यक्रम के माध्यम से जरूरतमंद लोगों के दरवाजे तक आशा की किरण पहुंचाईं. उनका अब एक ही मात्र उद्देश्य था. वह यह कि किसी भी मरीज को इलाज के दौरान पैसा आड़े न आए. उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि किसी भी परिस्थिति में दृष्टिबाधित मरीजों का इलाज हो. समाज के प्रति उनकी निस्वार्थ सेवा की वजह से डॉक्टर नैचियार पद्मश्री पुरस्कार से सम्मानित हुईं. हालांकि, उनके लिए सबसे बड़ा पुरस्कार रोगियों के चेहरे पर मुस्कुराहट थी. चेहरे पर एक ऐसी खुशी जो उनके जीवन में रोशनी नई आशा और संभावना लेकर आए. आज, डॉ. नैचियार नेत्र देखभाल को एक आंदोलन का रूप दे दिया है. उनकी विरासत चिकित्सा पेशेवरों और व्यक्तियों की पीढ़ियों को समान रूप से प्रेरित करती रहती है. उनका अटूट समर्पण, करुणा और उत्कृष्टता के प्रति प्रतिबद्धता अक्सर अंधेरे में डूबी दुनिया में मार्गदर्शक प्रकाशस्तंभ के रूप में काम करती है. डॉ. नैचियार की कहानी हम सभी को करुणा, नवीनता और अटूट समर्पण की परिवर्तनकारी शक्ति की याद दिलाती है. अपने दूरदर्शी नेतृत्व और असीम सहानुभूति के माध्यम से, उन्होंने न केवल अंधेरी दुनिया में जी रहे लोगों में दृष्टि बहाल की है बल्कि आशा की एक लौ भी जलाई है जो दुनिया भर के लाखों लोगों के दिलों में चमकती रहेगी.

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