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देश के प्रथम हिंद केसरी रामचंद्र पहलवान का निधन, लंबे समय थे बीमार, कुश्ती में जीते थे 200 से ज्यादा अवार्ड - hind kesari ramchandra babu death

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By ETV Bharat Madhya Pradesh Team

Published : Apr 20, 2024, 6:20 PM IST

Updated : Apr 21, 2024, 7:43 AM IST

देश के प्रथम हिंद केसरी रामचंद्र बाबू पहलवान ने दुनिया को अलविदा कह दिया है. 95 वर्ष की उम्र में बुरहानपुर जिले के नेपानगर में उनका निधन हो गया. रामचंद्र बाबू ने पहलवानी में कई मुकाबले जीतकर 1958 में देश के प्रथम हिंद केसरी का खिताब पाया था.

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बुरहानपुर। शनिवार को देश के प्रथम हिंद केसरी रामचंद्र बाबू पहलवान का 95 वर्ष की उम्र में निधन हो गया. उन्होंने नेपानगर के वार्ड क्रमांक 04 श्री राम मंदिर के पास स्थित निवास पर अंतिम सांस ली. दरअसल लंबे समय से रामचंद्र पहलवान का स्वास्थ्य खराब चल रहा था. बीते दिनों नेपानगर विधायक मंजू दादू भी उनका हाल चाल जानने पहुंची थी. बता दें कि वह स्वदेशी पहलवानी में कई बड़े मुकाबलों में जीत हासिल कर चुके हैं. वर्ष 1958 में देश के प्रथम हिंद केसरी का खिताब हासिल किया था. इसके अलावा रामानंद सागर द्वारा निर्मित रामायण धारावाहिक में उन्होंने हनुमान जी रोल ठुकराया था, जिसके बाद दारा सिंग को हनुमान के रोल के लिए कास्ट किया गया था.

युवाओं को पहलवानी के गुर सिखाए

साल 1929 में बुरहानपुर में जन्मे रामचंद्र बाबू पहलवान रोजगार की तलाश में नेपानगर चले गए थे. उन्होंने 1992 तक नेपा मिल में जूनियर लेबर एंड वेलफेयर सुपरवाइजर के रूप में सेवाएं दीं. इसके अलावा सेवानिवृत्त होने के बाद भी कई युवाओं को पहलवानी के गुर और कुश्तियां सिखाई है. सबसे खास बात यह थी कि नौकरी के दौरान और सेवानिवृत्त के बाद में भी उन्होंने पहलवानी का शौक नहीं छोड़ा. इतना ही उन्होंने कुछ समय लोगों की मालिश व रोगियों का उपचार भी किया.

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कुश्तियों में 200 से ज्यादा पुरस्कार जीते

रामचंद्र पहलवान अब तक 250 से ज्यादा कुश्तियों में 200 से ज्यादा पुरस्कार जीते हैं. अपने युवा अवस्था में उन्होंने कई पहलवानों को देसी अखाड़े में कुश्ती के दांव-पेंच सिखाए हैं. करीब 45 साल के पहलवानी जीवन में उन्होंने छोटे-बड़े 100 से ज्यादा पहलवानों को तैयार किया हैं, अब उनके कई शागिर्दों की गिनती देश और प्रदेश के नामी पहलवानों में होती हैं. हिंद केसरी रामचंद्र बाबू के परिवार में पत्नी, पांच बेटे, बहुएं और नाती पोती हैं. उनके अंतिम समय में परिवार के सदस्य उनकी सेवा और देखभाल कर रहे थे. अलग-अलग शहरों में नौकरी करने के बावजूद बारी-बारी से वे उनकी देखभाल करते रहे.

Last Updated : Apr 21, 2024, 7:43 AM IST
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