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कैदियों सी जिंदगी जीने को मजबूर हैं एसिड अटैक सर्वाइवर बहनें, तेजाब से सूख गई हैं आंखों की नसें - 2009 acid attack case

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By ETV Bharat Delhi Team

Published : Apr 6, 2024, 10:42 PM IST

2009 acid attack case
2009 acid attack case

2009 acid attack case: दिल्ली में 2009 में हुए एसिड अटैक पीड़ित दो बहनें वर्तमान में किसी तरह गुजर बसर कर रही हैं. हाईकोर्ट से आरोपियों के बरी होने बाद अब वे सुप्रीम कोर्ट जाने की तैयारी में हैं. अपने केस और परिस्थितियों के बारें बताते समय उनका दर्द छलक पड़ा. आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा...

एसिड अटैक पीड़िता और ईटीवी भारत संवाददाता के बीच बातचीत के अंश

नई दिल्ली: 14 वर्ष पहले हुए एसिड अटैक में अपनी आंखों की रोशनी गंवाने वाली दो बहनें जुवेरिया और समर के जख्म एक बार फिर से हरे हो गए हैं. दरअसल उनके केस में हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने सबूतों के आभाव में आरोपियों को बरी कर दिया है. जिसके बाद से दोनों बहनें निराश हैं और कहा कि वे लड़ाई जारी रखते हुए सुप्रीम कोर्ट में अपील करेंगी. जिसकी वजह से हमारी जिंदगी तबाह हुई उन्हें सजा दिलाकर रहेंगे.

आर्थिक परेशानियों का कर रहे सामना: पीड़िता जुवेरिया ने बताया कि अक्टूबर 2009 में मेरे और मेरी बहन के ऊपर तेजाबा फेंका गया था और हम तब से लड़ाई लड़ रहे हैं. आंखें न होने की वजह से हम दूसरों पर निर्भर हैं. दिल्ली सरकार से पहले 1500 रुपये महीना पेंशन मिलती थी. अब बढ़कर 2500 रुपये मिलते हैं, लेकिन उससे मुश्किल से ही गुजारा हो पाता है. तीन साल पहले गुजर अब्बू गुजर गए, जो सरकारी टीचर हुआ करते थे. अम्मी को पेंशन मिलती है हमने कई बार दिल्ली सरकार से नौकरी की मांग की, लेकिन हमें नौकरी नहीं मिली. इससे हम आर्थिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं. घटना के समय दिल्ली सरकार से तीन-तीन लाख रुपये का मुआवजा मिला था. वह पैसा भी हमने घर को ठीक कराने के लिए किसी को दिया था, लेकिन एक आदमी पैसा लेकर भाग गया.

दरवाजा खोलने से लगता है डर: उन्होंने हम दोनों बहनें देख नहीं पाते हैं. इसलिए जब कोई दरवाजे पर आवाज देता है तो एक बार तो डर लगता है. जब हमें यह समझ आ जाता है कि वह कौन है तभी दरवाजा खोलते हैं. कई बार हम दीवार से भी टकरा जाते हैं. हमें जब दवा के लिए या किसी अन्य काम से बाहर जाना होता है तो हम एक सप्ताह पहले अपने भाइयों से कहते हैं. हम सात सात बहन और चार भाई थे, जिसमें से एक भाई की मौत हो चुकी है. वहीं शादी के बाद बहनें ससुराल रहती हैं और भाई अलग रहते हैं. मेरी एक बहन ने अभी तक महिला आयोग की मदद से देखभाल की है. साथ ही एक एनजीओ की शाहीन ने भी काफी मदद की है. कोर्ट के फैसले से हम निराश हैं. पुलिस ने पहले ही हल्की चार्जशीट बनाकर कमजोर कर दिया था. यहां पैसे से सब हो जाता है. गवाह भी खरीदे जाते हैं. आज के समय में गलत आदमी को सही और सही को गलत साबित कर दिया जाता है.

हमले के बाद हुई 26 सर्जरी: जुवेरिया ने आगे बताया कि, एसिड अटैक के बाद छोटी बहन समर की 26 सर्जरी हुई, जबकि मेरी दो सर्जरी हुई. हमले के बाद हमें नजदीकी अस्पताल में भर्ती किया गया था. उसके बाद सफदरगंज और फिर एम्स में भी हमारा इलाज चला. घटना के एक घंटे बाद ही हमें धमकियां मिलनी शुरू हो गई थीं. उस समय बहुत डर लगता था. आरोपी काफी पैसे वाला था. उसने इलाके के एक बदमाश से ही हमारे ऊपर एसिड अटैक करवाया था.

यह था कारण: उन्होंने कहा कि आरोपी उस समय 50 साल का तलाकशुदा था. मेरी उम्र 20 वर्ष थी. उसकी बर्तन की दुकान है. वह एक महीने से मेरा पीछा कर रहा था. एक दिन में रिक्शे में जा रही थी तब उसने मुझसे अभद्रता कर दी. इसके बाद मैंने उसे थप्पड़ मार दिया था. इससे वह चिढ़ गया था और उसने मुझे धमकी दी थी. हालांकि मैंने उसे गंभीरता से नहीं लिया और यह बात अपने घर में भी नहीं बताई. वह मुझसे जबरन मिलने व बोलने की जिद करता था.

सूख गई आंखों की नसें: जुवेरिया ने बताया कि अक्टबूर में तेजाब हमले के बाद फरवरी तक हमारी आंखों में हल्की रोशनी थी. लेकिन, तेजाब से नसें सूखने के कारण वह रोशनी भी चली गई. डॉक्टरों ने काफी कोशिश की लेकिन रोशनी वापस नहीं आ सकी. आंखों की रोशनी होने के बाद अगर वह चली जाए तो किसी के लिए भी बर्दाश्त करना मुश्किल हो जाता है. एक हादसे ने हमें जीवनभर के लिए दूसरों पर निर्भर बना दिया. हमारे सारे सपने खत्म हो गए. हम अपनी जिंदगी दूसरों के सहारे जीने के लिए मजबूर हैं. सरकार से भी हमें कोई ऐसी मदद नहीं मिली, जिससे हम आर्थिक रूप से सशक्त हो सकें. अम्मी शुगर की मरीज हैं और उनकी देखभाल भी हम ही करते हैं.

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ट्रायल कोर्ट के फैसले को हाईकोर्ट ने रखा बरकरार: न्यायमूर्ति सुरेश कुमार कैत और न्यायमूर्ति नीना बंसल कृष्णा की खंडपीठ ने मंगलवार को अपने फैसले में आरोपियों को ट्रायल कोर्ट के बरी करने के फैसले को बरकरार रखा था. कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष उचित संदेह से परे अपना मामला साबित करने में सक्षम नहीं था. न केवल पीड़िताओं के बयान, बल्कि जिस तरह से जांच की गई, वह भी अभियोजन के मामले को ध्वस्त कर देती है.

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