टिहरी: श्रुतिका सिलस्वाल का चयन राष्ट्रमंडल युवा पुरस्कार के लिए किया गया. इस प्रतिष्ठित पुरस्कार के लिए राष्ट्रमंडल देशों से 50 युवा नामित किए गए. इनमें श्रुतिका सिलस्वाल सहित चार भारतीय हैं. यह पुरस्कार आगामी 14 सितंबर को लंदन में दिया जाएगा. श्रुतिका सिलस्वाल ने इसको लेकर खुशी जताई है तो उनके गृह जनपद के लोग भी काफी खुश हैं.
बेटी श्रुतिका सिलस्वाल की सफलता से माता पिता खुश हैं. विद्यालय शिक्षा महानिदेशक ने क्या कहा? विद्यालय शिक्षा महानिदेशक बंशीधर तिवारी ने श्रुतिका सिलस्वाल की उपलब्धि पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा कि प्रदेश के लिए यह गौरव की बात है. श्रुतिका सिलस्वाल उत्तराखंड में सिंपल एजुकेशन फाउंडेशन की एसोसिएट डायरेक्टर हैं. यह संस्था प्रदेश में विद्यालय शिक्षा के उत्थान के लिए कार्य कर रही है. इसमें प्रमुख रूप से शिक्षकों की क्षमता में संवर्धन प्रधानाचार्य में नेतृत्व विकास सामुदायिक सहयोग और बच्चों में सामाजिक संवेगात्मक अधिगम के लिए कार्य किया जा रहा है. जिससे संपूर्ण समाज लाभान्वित में हो रहा है. इसके लिए संस्था और उत्तराखंड विद्यालय शिक्षा विभाग के मध्य समझौता हुआ है. फिलहाल संस्था टिहरी जनपद में गूलर, लोदसी, कोडियाला, व्यासी, कुड़िया स्थित पांच राजकीय प्राथमिक विद्यालयों में कार्य कर रही हैं.
श्रुतिका सिलस्वाल को मिलेगा राष्ट्रमंडल युवा पुरस्कार सरकारी स्कूलों की गुणवत्ता सुधारना चाहती हैं श्रुतिका सिलस्वाल: आपको बताते चलें कि टिहरी की श्रुतिका सिलस्वाल ने दिल्ली में उच्च शिक्षा के दौरान शिक्षा के क्षेत्र में कुछ अलग करने की ठानी. 2 साल में उनका चयन राष्ट्रमंडल युवा पुरस्कार के लिए हो गया. श्रुतिका सिलस्वाल का सपना देश भर के सभी सरकारी स्कूलों में गुणात्मक सुधार पर कार्य करना है, जिससे बच्चे मजबूत हो सकें. इससे पहले श्रुतिका सिलस्वाल को टीचर फॉर इंडिया और दलाईलामा फैलोशिप मिल चुकी है.
माता पिता के साथ श्रुतिका सिलस्वाल श्रुतिका सिलस्वाल टिहरी के भेलधार की निवासी हैं: श्रुतिका सिलस्वाल मूल रूप से टिहरी जिले के कखील भेलधार की रहने वाली हैं. इनके पिता विनोद सिलस्वाल एमआईटी कॉलेज ढालवाला ऋषिकेश में नौकरी करते हैं. माता मीनाक्षी चम्बा के जीआईसी नागनी में अध्यापिका हैं. श्रुतिका सिलस्वाल कोविड-19 के बाद शिक्षा के लिए पहाड़ से होने वाले पलायन से आहत थी. वह नहीं चाहती कि कोई प्राथमिक शिक्षा के लिए अपना घर छोड़कर दूसरे शहर जाये. श्रुतिका सिलस्वाल ने कहा कि जो टीचर हैं, उनमें काफी खुलापन है. हम उनके साथ बहुत क्लोजली ग्राउंड पर काम करते हैं. हमने यह भी देखा है कि जब बच्चा अपने आसपास की चीजों को सोच पाता है और उसे विजुलाइजेशन करता है, तब उसकी लर्निंग ज्यादा मजबूत होती है. इससे काफी अच्छा परिणाम मिलता है.
बच्चों के से कम्यूनिकेशन करते हैं टीचर: हम स्कूल के अंदर बच्चों के साथ दिल से लगाव के लिए प्रैक्टिस करते हैं. हर दिन सुबह के समय बच्चों से शिक्षक बात करते हैं कि वह कैसा अनुभव करते हैं और बच्चों को पूछते हैं कि आज क्या खाया. क्या आज वह ठीक से सो पाए या नहीं सो पाए. क्या उनके घर में कोई समस्या तो नहीं है. इस तरह की बातें बच्चों को प्रभावित करती हैं और बच्चो को लगता है कि कोई उनकी भी सुन रहा है. ऐसे में अच्छे परिणाम सामने आ रहे हैं.
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श्रुतिका सिलस्वाल में ऐसे जागा बच्चों के लिए स्नेह: श्रुतिका सिलस्वाल ने ओमान और दिल्ली में पढ़ाई की. इस बीच यूथ एलायंस संस्था के साथ वालिंटियर के रूप में काम कर रही थीं. बीकॉम खत्म होने के बाद सीए की तैयारी शुरू करनी थी. लेकिन उनका मन सामाजिक कार्यों में लग रहा था. कोविड-19 के दौरान अलग-अलग क्षेत्रों में काम कर रही थीं. इस दौरान उत्तराखंड से काफी संख्या में लोग पलायन कर दूसरे शहरों में जा रहे थे. श्रुतिका बताती हैं कि मैंने अनेक लोगों से बात की. सबसे ज्यादा समस्या बच्चों की शिक्षा की थी. इसके अलावा मेरी मम्मी शिक्षिका हैं तो गांव का अनुभव था. तभी मुझे लगा कि वापस गांव जाना चाहिए और लोगों के लिए कुछ करना चाहिए. इसके बाद सिंपल फाउंडेशन से संपर्क किया और हम एक साथ काम करने लगे. इसका आज परिणाम सामने देखने को मिल रहा है.