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महिला एवं बाल कल्याण विभाग की पहल, पारंपरिक व्यंजनों को मिल रही नई पहचान

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Published : Jan 10, 2022, 9:48 PM IST

महिला एवं बाल कल्याण विभाग पहाड़ के पारम्परिक भोजन को खाद्य श्रंखला में शामिल करने के लिए विभिन्न जागरूकता कार्यक्रम चला रहा है.

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पारम्परिक भोजन को खाद्य श्रंखला को लेकर कार्यक्रम

पिथौरागढ़: आज के भौतिकवादी दौर में लोगों का रूझान फास्ट फूड की ओर तेजी से बढ़ रहा है. जिस कारण लोग अतिरिक्त मोटापे और कैंसर जैसी घातक बीमारियों के शिकार हो रहें हैं. वहीं इस समस्या से निजात दिलाने के महिला एवं बाल कल्याण विभाग द्वारा पहाड़ के पारम्परिक भोजन को खाद्य श्रंखला में शामिल करने के लिए विभिन्न जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं. विभाग द्वारा आंगनबाड़ी केंद्रों और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के माध्यम से गांव-गांव में बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों को पारम्परिक व्यंजनों के प्रति जागरूक किया जा रहा है.

भारत सरकार की महत्वाकांक्षी योजना 'राष्ट्रीय पोषण अभियान' के तहत पहाड़ के पारम्परिक व्यंजनों को खाद्य श्रंखला में शामिल करने के लिए अभियान चलाया जा रहा है. इस अभियान के जरिये जहां पहाड़ के विलुप्त हो रहे पहाड़ी व्यंजनों को फिर से नई पहचान मिल रही है. साथ ही बच्चों को कुपोषण और महिलाओं को एनीमिया से निजात दिलाने में भी ये अभियान कारगर साबित हो रहा है.

पारम्परिक भोजन को खाद्य श्रंखला को लेकर कार्यक्रम

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इस अभियान के तहत महिला एवं बाल कल्याण विभाग द्वारा गांव-गांव में पारम्परिक व्यंजनों के फायदे बताए जा रहे हैं. साथ ही टेक होम राशन (टीएचआर) से कई प्रकार के पारम्परिक व्यंजन बनाने का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है. अभियान के तहत पारम्परिक व्यंजनों का स्टाल लगाकर क्वेराल का रायता, दाड़िम की चटनी , मंडुवे का हलवा और रोटी, लाल चावल की खीर, मेथी के माड़े, सूजी और गाजर के चीले इत्यादि के बारे में लोगों को बताया जा रहा है.

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महिला एवं बाल कल्याण विभाग का कहना है कि इस अभियान का मकसद उपेक्षित हो चुके पहाड़ के पारम्परिक व्यंजनों को फिर से खाद्य श्रंखला में शामिल करना हैं, ताकि कुपोषण मुक्त भारत के अभियान को सफल बनाया जा सके.

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