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ओ री घिनौड़ी...क्यों लुप्त होती जा रही है पहाड़ की पहचान गौरैया

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Published : Mar 20, 2020, 10:45 AM IST

Updated : Mar 20, 2020, 12:43 PM IST

आज विश्व गौरैया दिवस है. पहले हर घर के आंगन में फुदकती दिखती गौरैया, पिछले दो दशक से विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई है. हालत ये है कि इस प्यारी सी चिड़िया की संख्या में 60 फीसदी तक की कमी आ गई है. विशेषज्ञ इसके लिए लगातार बन रही नई कॉलोनियों, कटते पेड़ों और फसलों में कीटनाशकों के छिड़काव को जिम्मेदार मान रहे हैं.

World Sparrow Day Haldwani
विश्व गौरैया दिवस

हल्द्वानी: अपने बचपन में अक्सर घरों की मुंडेर और आंगन में चहचहाने और फुदकने वाली चिड़िया गौरैया को दाना चुगते आपने देखा होगा. लेकिन बढ़ते शहरीकरण, रासायनिक प्रदूषण और रेडिएशन के चलते हमारे और आपके बीच से ये सुंदर चिड़िया अब धीरे-धीरे विलुप्ति की कगार पर पहुंच गई है. पिछले 15 सालों में गौरैया की संख्या में 60 से 70फीसदी तक की कमी आई है.

विश्व गौरैया दिवस

क्यों विलुप्त हो रही है गौरैया

पशु चिकित्सक और शोधकर्ता डॉ रमेश कुमार प्रजापति का कहना है कि लगातार हो रहे शहरीकरण, पेड़ों का कटान और फसलों में रासायनिक का छिड़काव गौरैया की कमी का कारण बन रहे हैं. फसलों में कीटनाशकों के अंधाधुंध प्रयोग से गौरैया की प्रजनन क्षमता में कमी आई है. कीटनाशकों के इस्तेमाल से कीड़े नष्ट होने से गौरैया और उसके बच्चों को मिलने वाले भोजन में भी कमी आई है. गौरैया जब कीटनाशक का छिड़काव की हुई फसल के दाने खाती है तो उसको गॉट नाम की बीमारी हो जाती है. गॉटनाम की बीमारी गौरैया की किडनी को डैमेज कर देती है जो अंतत: उसकी मौत का कारण बनता है.

इसलिए मनाया जाता है गौरैया दिवस

विश्व गौरैया दिवस को पर्यावरण मित्र गौरैया के प्रति जागरूकता लाने के उद्देश्य से मनाया जाता है. इसके अलावा ये शहरी वातावरण में रहने वाले आम पक्षियों के प्रति जागरूकता लाने हेतु भी मनाया जाता है. इसे हर साल 20 मार्च के दिन मनाया जाता है.

ऐसे शुरू हुआ गौरैया संरक्षण दिवस

नासिक निवासी मोहम्मद दिलावर ने गौरैया पक्षियों की सहायता हेतु नेचर फॉर इवर सोसाइटी की स्थापना की थी. इनके इस कार्य को देखते हुए टाइम ने 2008 में 'हीरोज ऑफ दी एनवायरमेंट' नाम दिया था. विश्व गौरैया दिवस मनाने की योजना भी इन्हीं के दिमाग की उपज थी. 2010 में पहली बार गौरैया दिवस मनाया गया. 20 मार्च 2018 को पूरे विश्व में 'गौरैया दिवस' मनाया गया. तब इसकी थीम 'आई लव स्पैरो' रखी गई थी.

पहाड़ में सदियों से है पक्षियों के संरक्षण की प्रथा

उत्तराखंड में सदियों से पक्षियों के संरक्षण का चलन है. हर त्योहार पर सबसे पहले चिड़ियों के लिए खाना निकाला जाता है. पक्षी पहाड़ के जन-जीवन में ऐसे रचे बसे हैं कि उन पर गीत भी हैं. गोपाल बाबू गोस्वामी का गीत- 'आमै की डाई मा घुघुती ना बासा' इतनी मिठास लिए है कि आज भी हर कोई इसे गुनगुनाता है. नरेंद्र सिंह नेगी का गाया गाना- 'घुघुती घुराण लागि मेरा मैतै की' आज भी ससुराल में रह रही बेटियों की आंखें भिगा जाता है.

गौरैया के बारे में जानें

  • गौरैया का जंतु-वैज्ञानिक नाम 'पासर डोमेस्टिकस' है.
  • कुछ लोग इसे 'वीवर फिंच' परिवार की सदस्य मानते हैं.
  • इनकी लम्बाई 14 से 16 सेंटीमीटर होती है.
  • इनका वजन 25 से 32 ग्राम तक होता है.
  • एक समय में ये कम से कम तीन अंडे देती है.
  • भोजन की तलाश में इनका झुंड दो से तीन किलोमीटर दूरी तय करता है.
  • यह दिल्ली प्रदेश की राजकीय पक्षी है.

गौरैया को ऐसे बचाएं

  • गौरैया को अपने घर और आसपास घोंसले बनाने दें.
  • अपनी छत, आंगन, खिड़की, मुंडेर पर दाना-पानी रख दें.
  • गर्मी आ रही है तो गौरैया के लिए घर के बाहर पानी रख दें.
  • घर के आसपास ज्यादा से ज्यादा पेड़ लगाएं.
  • फसलों में रासायनिक कीटनाशकों की जगह जैविक कीटनाशक प्रयोग करें.
Last Updated : Mar 20, 2020, 12:43 PM IST

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