रामनगर:कॉर्बेट प्रशासन आबादी वाले क्षेत्रों में हाथियों के आतंक से निजात दिलाने की दिशा में प्रयास कर रहा है. इसके लिए कॉर्बेट प्रशासन रणनीति तैयार कर रहा है. कॉर्बेट प्रशासन अब विदेशी तर्ज पर बायो फेंसिंग के जरिए हाथियों को आबादी क्षेत्रों में आने से रोकने का प्रयास करेगा. बता दें, पिछले दो वर्षों में हाथियों ने फसलों को भारी नुकसान पहुंचाया है. इस दौरान एक व्यक्ति की मौत भी हुई है.
कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों के साथ ही हाथियों की तादाद भी लगातार बढ़ रही है. 2014-15 में की गई गणना में 1035 हाथी रिकॉर्ड हुए थे. 2020 की गणना में यह बढ़कर 1200 से ज्यादा हो गई. हाथियों की संख्या बढ़ने के साथ ही कॉर्बेट के क्षेत्रों में फसलों को नुकसान पहुंचाने के मामले भी लगातार बढ़ रहे हैं.
विदेशी तर्ज पर हाथियों को आबादी में आने से रोकेगा कॉर्बेट प्रशासन. पिछले साल जनवरी 2021 से 31 जुलाई 2022 की बात करें तो हाथियों द्वारा 40 किसानों की फसलों को नुकसान पहुंचाया गया है. बिजरानी क्षेत्र में हाथियों ने 6 भवनों को नुकसान पहुंचाया है. इस दौरान एक व्यक्ति की मौत हुई है, जबकि एक व्यक्ति घायल हुआ है. कॉर्बेट प्रशासन की और पीड़ित परिवारों को ₹5,64,930/- की मदद की गई है.
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मानव वन्यजीव संघर्ष की घटनाओं को देखते हुए कॉर्बेट प्रशासन रणनीति तैयार कर रहा है. अब कॉर्बेट प्रशासन विदेशी तर्ज पर ही हाथियों को आबादी क्षेत्रों में आने से रोकने के लिए बायो फेंसिंग प्लान तैयार करने की सोच रहा है. सीटीआर निदेशक धीरज पांडे ने बताया कि बायोफेंसिंग के नतीजे बहुत ही लाभदायक हैं. उन्होंने कहा जल्द ही इसका एक प्रयोग कॉर्बेट पार्क में किया जाएगा.
कॉर्बेट क्षेत्र में बायो फेंसिंग:कॉर्बेट प्रशासन बायो फेंसिंग के जरिए जंगली जानवरों को आबादी के क्षेत्र में आने से रोकने की कवायद कर रहा है. बायो फेंसिंग के एक तरीके में कॉर्बेट प्रशासन एक कतार में काटेंदार पौधे और झाड़ियां लगा सकता है. इन कांटेदार पौधों में रामबास का प्लांट, कैक्टस, बेर, जंगल जलेबी, फाइकस की कई प्रजाति के पौधे लगाए जा सकते हैं, जो नुकीले होते हैं. इन प्लांट को जानवर भी नहीं खाता है. कॉर्बेट प्रशासन बायो फेंसिंग के लिए प्लांटों का इस्तेमाल कर सकता है.
बायो फेंसिंग का दूसरा प्रकार: कोर्बेट पार्क के क्षेत्र में दूसरे प्रकार से भी बायो फेंसिंग जा सकती है. इस तकनीक में अंदर की तरफ खाई खोदी जाती है. खाई से निकलने वाली मिट्टी में प्लांट का रोपण किया जाता है, जिससे पानी का कंजर्वेशन भी होगा. बारिश में पानी इन गड्ढों में इकट्ठा भी होगा. इस खाई को वन्यजीवों की सुरक्षा की दृष्टि से ज्यादा गहरा नहीं खोदा जाता. यह खाई एक फीट गहरी और एक फीट चौड़ी होती है.
इस खाई पर प्लांट को बिल्कुल चिपका कर लगाया जाता है. धीरे-धीरे जब पौधा पेड़ का रूप लेगा, तो जानवरों के लिए एक प्रकार की बाढ़ तैयार हो जाएगी. जिससे आबादी क्षेत्रों में वन्यजीव नहीं आ पाएंगे. इससे प्रकृति को भी कोई नुकसान नहीं होगा. अब देखना होगा कॉर्बेट प्रशासन बायो फेंसिंग के लिए कौन की तकनीकि का इस्तेमाल करेगा.