उत्तराखंड

uttarakhand

मोहर्रमः 72 वफादार निहत्थे साथियों के साथ कर्बला में उतरे थे हुसैन, जानिए क्या है परंपरा

By

Published : Sep 9, 2019, 11:14 PM IST

Updated : Sep 10, 2019, 12:14 AM IST

मोहर्रम के मौके पर हजरत इमाम हुसैन को मानने वाले लोग अपने जिस्म को जंजीरों से लहूलुहान कर देते हैं. इस दिन शिया समुदाय के लोग मातम अजादारी और नोहा जनी मरसिए पढ़ते हैं और हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं.

muharram

रुड़की: दुनिया में हर त्योहार खुशी के साथ मनाया जाता है, लेकिन मोहर्रम एक ऐसा त्योहार है. जिसे गम के साथ मनाया जाता है. इसे गम का त्योहार कहा जाता है. इस दिन हजरत इमाम हुसैन को मानने वाले लोग अपने जिस्म को जंजीरों से लहूलुहान कर देते हैं. जख्म होने पर भी उनके मुंह से आह तक नहीं निकलती है. गम में डूब कर हजरत इमाम हुसैन की शहादत को याद करते हैं.

मोहरम की परंपरा.

माना जाता है कि हजरत इमाम हुसैन इंसानियत और इस्लाम को बचाने के लिए निहत्थे अपने 72 वफादार साथियों के साथ कर्बला के मैदान में उतरे थे. जहां पर इस्लाम के दुश्मन यजीद के साथ लड़े थे. इसमें यजीद ने हजरत इमाम हुसैन को इस्लाम धर्म का बड़ा पैरोकार मानते हुए बेरहमी से उनकी और उनके साथियों का कत्ल कर दिया था.

ये भी पढ़ेंःशर्मनाक: गर्भवती महिला को डोली के सहारे दुर्गम रास्तों से पहुंचाया अस्पताल, डॉक्टर भी मिले गायब

मोहर्रम इस्‍लामी महीना है और इससे इस्‍लाम धर्म के नए साल की शुरुआत होती है. लेकिन 10वें मुहर्रम को हजरत इमाम हुसैन की याद में मुस्लिम मातम मनाते हैं. मान्‍यता है कि इस महीने की 10 तारीख को इमाम हुसैन की शहादत हुई थी, जिसके चलते इस दिन को रोज-ए-आशुरा कहते हैं. मोहर्रम के दिनों में खासतौर पर शिया समुदाय के लोग मातम अजादारी और नोहा जनी मरसिए पढ़ते हैं. हजरत इमाम हुसैन को और उनकी शहादत को याद करते हैं. इसी कड़ी में मंगलवार को मोहर्रम का त्योहार मनाया जाएगा. जिसे लेकर रुड़की में तैयारियां तेज हो गई है.

Last Updated : Sep 10, 2019, 12:14 AM IST

ABOUT THE AUTHOR

...view details