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उत्तराखंड स्थापना दिवस: नेताओं ने सत्ता के लिए बनाए और बिगाड़े समीकरण, राजनीतिक लाभ के आगे पीछे छूटा विकास!

By ETV Bharat Uttarakhand Team

Published : Nov 8, 2023, 4:23 PM IST

Updated : Nov 9, 2023, 9:50 AM IST

Uttarakhand Foundation Day 2023 उत्तराखंड के लोग आज 23वां राज्य स्थापना दिवस मना रहे हैं. जिस मकसद के लिए राज्य आंदोलन हुआ था, वो सपना अभी दूर की कौड़ी ही लग रहा है. इसके लिए राज्य के नेताओं की सत्ता की वो भूख जिम्मेदार रही, जिसके लिए वो आए दिन राजनीतिक समीकरण बनाते और बिगाड़ते रहे. इस दौरान राज्य विकास की दौड़ में पिछड़ता चला गया.

Uttarakhand Foundation Day 2023
उत्तराखंड स्थापना दिवस

देहरादून (उत्तराखंड): 1990 के बाद उत्तराखंड के राज्य आंदोलन ने तेजी पकड़ी थी. 1994 उत्तराखंड राज्य आंदोलन का चरम था. आखिरकार तत्कालीन मुलायम सरकार का भयंकर दमन झेलने के बाद 9 नवंबर 2000 को उत्तर प्रदेश से अलग होकर पहाड़ी राज्य उत्तराखंड (तब उत्तरांचल नाम दिया गया) बना. अलग उत्तराखंड राज्य आंदोलन के लिए आधिकारिक तौर पर 42 लोगों ने शहादत दी थी. हजारों लोग घायल हुए थे.

23 साल में उत्तराखंड को मिले 10 नए चेहरे. खंडूड़ी दो बार बने सीएम.

9 नवंबर 2000 को बना उत्तराखंड: अपना राज्य बना तो जोश था, उमंग थी. आंदोलनकारियों के सपनों को हकीकत में बदलने की बारी थी. पहाड़ की अपनी सरकार बनी. अपने मुख्यमंत्री बने. देखते ही देखते 23 साल बीत गए, लेकिन राज्य आंदोलनकारियों के सपने धरातल पर नहीं उतर सके. राज्य के अंतिम छोर पर बैठा व्यक्ति जो उत्तराखंड राज्य आंदोलन के दौरान जान की बाजी लगाकर मुलायम सिंह यादव की पुलिस के आगे सीना तानकर खड़ा था, वो आज खुद को ठगा महसूस कर रहा है.

23 साल में बने 11 मुख्यमंत्री: राज्य स्थापना के बाद से उत्तराखंड 23 साल का सफर पूरा कर चुका है. इस दौरान जितना विकास नहीं हुआ उससे कई गुना ज्यादा रफ्तार से मुख्यमंत्री बनते चले गए. 23 साल में उत्तराखंड राज्य 10 मुख्यमंत्री देख चुका है. नेताओं की इस राजनीतिक धमाचौकड़ी के बीच राज्य का विकास कभी प्राथमिकता नहीं रहा. राज्य स्थापना का असली मकसद उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों के दूरस्थ गांवों तक विकास का सूरज पहुंचाना मकसद था. अफसोस की 23 साल बाद भी अभी भी उत्तराखंड के कई इलाके ऐसे हैं जहां विकास की किरण नहीं पहुंच सकी है. मूलभूत सुविधाओं के अभाव में पलायन नहीं रुका. जबकि राज्य आंदोलन की अवधारणा में पलायन रोकना प्रमुख बिंदु था. लेकिन राजनीतिक अस्थिरता ने उत्तराखंड को बार बार गहरे घाव दिए.

उत्तराखंड विधानसभा में 70 विधायक हैं: 9 नवंबर 2000 को जब उत्तराखंड राज्य, उत्तर प्रदेश से अलग हुआ तो तब अंतरिम विधानसभा में सिर्फ 30 सदस्य थे. राज्य की जो पहली सरकार बनी वो बहुमत के कारण बीजेपी की सरकार थी. अंतरिम रूप में पहली सरकार बनने के साथ ही उत्तराखंड में राजनीतिक अस्थिरता के बीज भी उगने लगे थे. पहली अंतरिम सरकार के मुख्यमंत्री नित्यानंद स्वामी अपना कार्यकाल भी पूरा नहीं कर सके. करीब एक साल मुख्यमंत्री रहे नित्यानंद स्वामी को गद्दी छोड़नी पड़ी और भगत सिंह कोश्यारी सीएम बने. मुख्यमंत्री के रूप में करीब चार महीने के भगत सिंह कोश्यारी के कार्यकाल के बाद उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव हुए.

उत्तराखंड के 11 मुख्यमंत्रियों का सफरनामा:
नित्यानंद स्वामी थे पहले सीएम: नित्यानंद स्वामी उत्तराखंड की अंतरिम सरकार के पहले सीएम बने थे. उत्तराखंड राज्य स्थापना के समय नित्यानंद स्वामी उत्तर प्रदेश विधान परिषद के सदस्य थे. नित्यानंद स्वामी को जब उत्तराखंड का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया तो पार्टी संगठन में आंतरिक विरोध उभर आया था. दरअसल जिस मकसद से उत्तराखंड राज्य का आंदोलन लड़ा गया था, उसमें राज्य के ही नेता को सीएम बनाने का भी सपना था. नित्यानंद स्वामी ने भले ही अपने जीवन का ज्यादातर हिस्सा देहरादून में बिताया था, लेकिन उनका जन्म हरियाणा में हुआ था. ऐसे में पार्टी के अंदर ही भारी विरोध के कारण उन्हें 29 अक्टूबर 2001 को मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देना पड़ा.

भगत सिंह कोश्यारी बने थे दूसरे मुख्यमंत्री: नित्यानंद स्वामी के पद त्यागने के बाद बीजेपी के खांटी नेता भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री की गद्दी मिली. कोश्यारी की मुख्यमंत्री की पारी सिर्फ चार महीने की ही थी. दरअसल 2002 में उत्तराखंड के पहले विधानसभा चुनाव हुए. करीब 16 महीने चली बीजेपी की अंतरिम सरकार से राज्य की जनता उकता गई.

एनडी तिवारी बने तीसरे मुख्यमंत्री: उत्तराखंड के मतदाताओं ने 2002 में राज्य के पहले विधानसभा चुनावों में कांग्रेस को सत्ता सौंप दी. नारायण दत्त तिवारी उत्तराखंड के तीसरे और पहले निर्वाचित मुख्यमंत्री बने. उत्तराखंड के राजनीतिक इतिहास में एनडी तिवारी ही एकमात्र मुख्यमंत्री रहे, जिन्होंने तमाम बगावतों, साजिशों और विपक्ष के हमलों के बीच भी अपनी पांच साल की पारी पूरी की. हालांकि 2007 में उत्तराखंड विधानसभा के जो दूसरे चुनाव हुए उसमें कांग्रेस हार गई.

खंडूड़ी बने चौथे मुख्यमंत्री: 2007 में उत्तराखंड विधानसभा के दूसरे चुनाव हुए. सत्ता विरोधी लहर ने कांग्रेस की नारायण दत्त तिवारी सरकार को चारों खानों चित्त कर दिया. बीजेपी पहली बार उत्तराखंड की सत्ता में चुनकर आई. सख्त मिजाज वाले फौज के रिटायर्ड मेजर जनरल भुवन चंद्र खंडूड़ी उत्तराखंड के चौथे मुख्यमंत्री बनाए गए. नारायण दत्त तिवारी तो पार्टी के अंदर की साजिशों को असफल करते हुए पांच साल मुख्यमंत्री बने रहे थे, लेकिन खंडूड़ी पार्टी के अंदर की साजिश से पार नहीं पा सके. अपनी ही पार्टी के विधायकों के विरोध के कारण करीब 27 महीने के कार्यकाल के बाद 23 जून 2009 को भुवन चंद्र खंडूड़ी को मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा देना पड़ा.

रमेश पोखरियाल निशंक बने पांचवें सीएम: खंडूड़ी के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देने के बाद रमेश पोखरियाल निशंक उत्तराखंड के पांचवें मुख्यमंत्री बने. जैसे-जैसे निशंक का कार्यकाल आगे बढ़ता गया, उनकी सरकार पर भ्रष्टाचार के आरोप लगते गए. ऐसी नौबत आ गई कि उत्तराखंड के सबसे लोकप्रिय लोकगायक नरेंद्र सिंह नेगी ने उस सरकार और उसके मुखिया के कथित भ्रष्टाचार पर गीत बना दिया. आखिरकार बीजेपी नेतृत्व को फिर से मुख्यमंत्री बदलना पड़ा.

खंडूड़ी फिर से बने उत्तराखंड के सीएम: भुवन चंद्र खंडूड़ी ने दोबारा उत्तराखंड की सत्ता संभाली. लेकिन तब तक पार्टी और सरकार को राजनीतिक चोट लग चुकी थी. इस राजनीतिक चोट का इलाज करने का भुवन चंद्र खंडूड़ी ने भरपूर प्रयास किया. लेकिन चुनाव में सिर्फ 6 महीने ही बचे थे. 2012 में हुए उत्तराखंड विधानसभा के तीसरे चुनाव में बीजपी को हार का सामना करना पड़ा. भुवन चंद्र खंडूड़ी मुख्यमंत्री रहते हुए अपने गृह जनपद की सीट से चुनाव हार गए.

2012 में कांग्रेस की वापसी और बहुगुणा बने सीएम: 2012 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने एक बार फिर सत्ता में वापसी की. हरीश रावत मुख्यमंत्री पद के सबसे बड़े दावेदार थे. लेकिन कांग्रेस हाईकमान ने हरीश रावत समेत राज्य के राजनीतिक पंडितों को चौंकाते हुए विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री बना दिया. इससे पहले विजय बहुगुणा उत्तराखंड की राजनीतिक में कभी सक्रिय नहीं दिखे थे. ऐसे में कांग्रेस ने नया मुख्यमंत्री तो बना दिया, लेकिन साथ ही बगावत के बीज भी बो दिए थे.

केदारनाथ आपदा में ढह गई विजय बहुगुणा की सरकार: 2013 में केदारनाथ धाम में भीषण आपदा आई. हजारों लोग मारे गए और उससे भी ज्यादा लोगों का जीवन प्रभावित हुआ. विजय बहुगुणा सरकार आपदा से निपटने में विफल साबित हुई. चारों तरफ उत्तराखंड की विजय बहुगुणा सरकार की आलोचना होने लगी. राज्य के अंदर हरीश रावत के नेतृत्व में अलग ही बवाल चल रहा था. ऐसे में कांग्रेस हाईकमान के बाद मुख्यमंत्री बदलने के सिवाय कोई चारा नहीं था. विजय बहुगुणा को मुख्यमंत्री की गद्दी से उतार दिया गया.

हरीश रावत बने 8वें मुख्यमंत्री: विजय बहुगुणा के बाद हरीश रावत उत्तराखंड के नए मुख्यमंत्री बने. हरीश रावत राज्य के 8वें मुख्यमंत्री थे. यानी स्थापना के 14 साल में राज्य हर 2 साल में औसतन दो मुख्यमंत्री देख चुका था. हरीश रावत के लिए मुख्यमंत्री की गद्दी पर बैठकर सरकार चलाना कभी भी आनंददायक नहीं रहा. पार्टी के भीतर विधायकों का एक गुट लगातार हरीश रावत सरकार को अस्थिर करने में लगा रहा. आखिरकार 9 विधायकों ने हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार से बगावत कर दी. ये विधायक बीजेपी से जा मिले.

राज्य में पहली बार लगा राष्ट्रपति शासन: उत्तराखंड की राजनीतिक स्थिति इतनी बिगड़ गई कि केंद्र सरकार ने कैबिनेट की आपात बैठक बुलाई. बैठक में उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगाने पर मुहर लगी. राष्ट्रपति शासन के खिलाफ हरीश रावत सुप्रीम कोर्ट गए. सुप्रीम कोर्ट ने फ्लोर टेस्ट कराया. कांग्रेस के फ्लोर टेस्ट में पास होने पर सुप्रीम कोर्ट ने उत्तराखंड से राष्ट्रपति शासन हटा दिया. लेकिन हरीश रावत के शासन काल में मची राजनीतिक गदर का वोटरों में अच्छा संदेश नहीं गया.

2017 में त्रिवेंद्र बने 9वें सीएम: 2017 के विधानसभा चुनाव में हरीश रावत के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी चुनाव हार गई. बीजेपी ने 70 में से 57 सीटें जीतकर बंपर मैंडेट हासिल किया. बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को उत्तराखंड का 9वां मुख्यमंत्री बनाया. त्रिवेंद्र सिंह रावत ने 4 साल तक अपने मन मुताबिक मुख्यमंत्री के रूप में सरकार चलाई. इस बीच रह रहकर खबरें आती रहीं कि असंतुष्ट विधायक दिल्ली में शिकायत करके आ रहे हैं. इसके बावजूद त्रिवेंद्र सिंह रावत बेधड़क सरकार चलाते रहे.

कई निर्णय त्रिवेंद्र के लिए बने घातक: त्रिवेंद्र रावत के लिए सबसे ज्यादा घातक चारधाम देवस्थानम बोर्ड बनाना साबित हुआ. उत्तराखंड चूंकि देवभूमि है. चारधाम देवस्थानम बोर्ड के विरोध के सुर दिल्ली में बीजेपी हाईकमान तक भी पहुंचे. हिंदूवादी पार्टी का हाईकमान इस मामले से खुद को असहज महसूस करने लगा. गैरसैंण को मंडल बनाकर उसमें कुमाऊं के दो जिलों को शामिल करने की घोषणा भी त्रिवेंद्र के लिए आत्मघाती साबित हुई. इसके साथ ही त्रिवेंद्र सिंह रावत के व्यवहार की भी असंतुष्ट नेता शिकायत करने लगे. इस सब कारणों से त्रिवेंद्र की गद्दी चली गई.

तीरथ रावत बने 10वें मुख्यमंत्री:त्रिवेंद्र सिंह रावत के मुख्यमंत्री पद से हटने के बाद तीरथ सिंह रावत को अगला सीएम बनाया गया. तीरथ राज्य के 10वें मुख्यमंत्री थे. सीएम पद पर आसीन होने के बाद से ही अपने बयानों के कारण चर्चित रहे तीरथ इन्हीं कारणों से मुख्यमंत्री पद पर ज्यादा दिन तक नहीं टिक सके. करीब चार महीने तक सीएम रहने के बाद तीरथ को गद्दी छोड़नी पड़ी.

पुष्कर सिंह धामी बने 11वें सीएम: तीरथ की मुख्यमंत्री पद से विदाई के बाद पुष्कर सिंह धामी को बीजेपी ने मुख्यमंत्री बनाया. धामी उत्तराखंड के 11वें मुख्यमंत्री बने. 4 जुलाई 2021 को पुष्कर सिंह धामी ने राज्य के 11वें मुख्यमंत्री की जिम्मेदारी संभाली. धामी ने करीब 7 महीने सरकार चलाई और इस दौरान 2022 के विधानसभा चुनाव आ गए.

बीजेपी ने लगातार दूसरी बार जीता चुनाव: 2022 का विधानसभा चुनाव बीजेपी के लिए ऐतिहासिक रहा. बीजेपी ने लगातार दूसरी बार उत्तराखंड विधानसभा का चुनाव जीता. लेकिन चौंकाने वाली बात ये थी कि तत्कालीन सीएम पुष्कर सिंह धामी चुनाव हार गए. लेकिन बीजेपी हाईकमान ने धामी में विश्वास जताते हुए उन्हें फिर से मुख्यमंत्री बनाया.

इस तरह देखा जाए तो 23 साल में उत्तराखंड 11 मुख्यमंत्री देख चुका है. इसमें पुष्कर सिंह धामी ने दूसरी बार मुख्यमंत्री पद संभाला है. नारायण दत्त तिवारी राज्य के एकमात्र मुख्यमंत्री रहे हैं जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया था. यानी अगर एनडी तिवारी के पांच साल हटा दें तो उत्तराखंड 18 साल में 10 मुख्यमंत्री देख चुका है. यानी औसत की बात की जाए तो एक मुख्यमंत्री का कार्यकाल 2 साल भी पूरा नहीं होता है. ठीक यही गति उत्तराखंड के विकास की भी रही है. धामी सरकार हालांकि कोशिश कर रही है, लेकिन पहले ही विकास यात्रा पर इतने पैच आ चुके हैं कि उन्हें भरने में ही काफी समय लग रहा है.
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Last Updated : Nov 9, 2023, 9:50 AM IST

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