वाराणसी: ज्ञानवापी सर्वे की ASI रिपोर्ट खासा चर्चा में है. ज्ञानवापी सर्वे का काम पूरा हो चुका है. अब ASI को अपनी रिपोर्ट कोर्ट में पेश करनी है. मगर लगातार एएसआई इसको लेकर समय मांग रहा है. भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने ज्ञानवापी परिसर की वैज्ञानिक सर्वेक्षण रिपोर्ट जमा करने के लिए कोर्ट से तीन सप्ताह का और समय मांगा है.
इससे पहले वाराणसी की जिला अदालत ने ज्ञानवापी मस्जिद परिसर की सर्वेक्षण रिपोर्ट जमा करने के लिए 28 नवंबर तक का समय दिया था. ऐसे में अब सवाल यह उठ रहा है कि ASI को रिपोर्ट जमा करने में इतना समय क्यों लग रहा है. इसको लेकर ईटीवी भारत की टीम ने एक्सपर्ट से बातचीत की. सबसे पहले यह जानते हैं कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) ने कोर्ट में समय क्यों मांगा है.
आईए जानते हैं जीपीआर कैसे काम करता है. एएसआई की तरफ से कोर्ट में कहा गया है कि, विशेषज्ञ पुरातत्वविदों, पुरालेखविदों, सर्वेक्षणकर्ताओं, भूभौतिकी विशेषज्ञों आदि द्वारा एकत्र किए गए आंकड़ों को संग्रहीत करने की दिशा में हम काम कर रहे हैं. विभिन्न विशेषज्ञों और विभिन्न उपकरणों से मिली जानकारी को आत्मसात करना एक कठिन और धीमी प्रक्रिया है. रिपोर्ट को पूरा करने और सर्वेक्षण रिपोर्ट को अंतिम रूप देने में कुछ और समय लगेगा.
ASI चाहती है कोई कंट्रोवर्सी न होः रिपोर्ट जमा करने में हो रही देरी और रिपोर्ट बनाने में लगने वाले समय को लेकर ईटीवी भारत की टीम ने पड़ताल की. इस बारे में पुरातत्वविद और जियो फिजिक्स के विशेषज्ञों से बातचीत की गई. BHU के जियो फिजिक्स और पुरातत्विद विभाग के प्रोफेसर प्रो. पीबी राणा से हमने बात की. उनका कहना है, 'हम लोगों का जो अनुभव है हम उसके आधार पर कह सकते हैं कि ASI वाले इस तरह की व्याख्या चाहते हैं, जिससे कि कोई कंट्रोवर्सी न हो. उन पर कोई क्रॉस सवाल न खड़ा हो. ऐसे में समय मांगकर और डिस्कशन के बाद वे अपनी रिपोर्ट बना रहे हैं. सर्वे के दो से चार दिन में रिपोर्ट हो जानी चाहिए. सरकार की विचारधारा को देखते हुए भी ये लोग अपनी रिपोर्ट तैयार कर रहे होंगे.'
एएसआई रिपोर्ट देने में क्यों देरी कर रही. ऐतिहासिक चीजों के साथ लॉजिक और रिफरेंसः प्रो. पीबी राणा का कहना है, 'ऐसा भी हो सकता है कि इनको किसी तरह की बात कही गई होगी. ऐसे में हर तरफ से टेस्ट करने के बाद सर्वे की रिपोर्ट बनाई जा रही है. सर्वे अनुमान पर आधारित है. कोई पक्का तो नहीं है कि एक फिक्स तारीख होगी. अभी तक ऐसी कोई तकनीक नहीं आई है जो इसे 100 फीसदी फिक्स कर दे. ऐसे में 10-20 फीसदी लॉजिक और जो रिफरेंसेज हैं, ऐतिहासिक चीजें हैं उनको जोड़कर रिपोर्ट बनाई जाती है. ये लोग यही चाहते हैं कि कोई ऐसा तथ्य आए, जिससे कोई समस्या न हो. सर्वे की टीम में कई दिग्गज काम कर रहे हैं. ऐसे में रिपोर्ट तैयार करने में हर एक का अपना तर्क हो सकता है. इसे लेकर सर्वसम्मति भी बनानी होगी.'
तीन सोर्सेज को जोड़कर तैयार होगी रिपोर्टः प्रो. पीबी राणा बताते हैं, 'जो ऐतिहासिक फैक्ट हैं और जो स्पॉट पर पाए गए हैं जरूरी नहीं है कि वही सही हों. ऐसे में इसकी किस तरह से व्याख्या की जाती है इस पर भी रिपोर्ट निर्भर करता है. ऐतिहासिक सोर्स, माइथोलॉजिक सोर्स और जो स्पॉट पर वस्तु पाई गई है इसी को जोड़कर रिपोर्ट तैयार होती है. इसे कैसे लिखा जाए इसी में सर्वे की टीम समय ले रही है. जीपीआर और साइंटिफिक चीजों का परिणाम तो फिक्स है. उसमें कोई समय नहीं लगता है. क्योंकि यह राजनीतिक मामला है, कई तरह के विरोध हैं तो ऐसे में एक-एक पक्ष को मिलाया जा रहा है. इसे सर्वसम्मति से फाइनल करने में समय लगेगा.'
टीम में हिस्टोरियन के साथ टेक्निकल साइंटिस्टः वे बताते हैं, '5-6 लोग जो इसमें मुख्य हैं, जिसमें 3-4 टेक्निकल साइंटिस्ट हैं. साथ ही जो दूसरे लोग हैं वे नॉन टेक्निकल साइंस के हैं या फिर हिस्टोरियन हैं. ऐसे में ताल-मेल मिलाने में भी समय लगेगा. जबतक सर्वसम्मति से तय नहीं होगा तब तक उसे फाइनल रिपोर्ट नहीं माना जाएगा.' वहीं जब सर्वे टीम ने अदालत से समय बढ़ाने की मांग की तब जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश ने अधिक समय मांगने का कारण बताने को कहा. उन्होंने केंद्र सरकार के स्पेशल काउंसिल अमित श्रीवास्तव से पूछा कि आखिर रिपोर्ट दाखिल करने में देरी क्यों की जा रही है? जज ने यह भी कहा कि क्या गारंटी है कि रिपोर्ट अगले तीन हफ्ते में दाखिल हो जाएगी?
GPR से मिल जाता है क्विक रिजल्टः जियो फिजिक्स के प्रो. उमाशंकर बताते हैं, 'GPR का अर्थ ग्राउंड पेनिट्रेटिंग रडार है. यह किलो हर्ट्ज और मेगा हर्ट्ज में बहुत ही हाई फ्रिक्वेंसी पर काम करता है. यह आर्कियोलॉजिकल सर्वे और साइलो सबसर्फेस इमेजिंग के लिए प्रयोग किया जाता है. आप इससे क्विक रिजल्ट प्राप्त कर सकते हैं. आपको तुरंत पता लग जाएगा कि कोई पाइप है या कोई भी मैटेलिक चीज है. यह जियो फिजिकल सर्वे में होगा. अगर आप ये पता लगाना चाहते हैं कि उस मैटेरियल का एज क्या है या उससे संबंधित और जानकारी चाहते हैं तो लैब स्टडी करना पड़ेगा. इसमें समय लगता है. इस दौरान किसी सभ्यता या समय से कोरिलेट करने में अधिक समय लगता है.'
मॉनीटर पर ही दिख जाती हैं चीजेंःवे बताते हैं, 'अगर उस स्थान पर क्या चीजें जमीन के अंदर हैं या इस तरह का कुछ है तो जब आप जियो फिजिकल सर्वे जीपीआर से करेंगे. आपको सब कुछ मॉनीटर पर ही दिख जाएगा. उसके लिए इंटप्रिटर चाहिए. ऐसा नहीं है कि ब्लाइंडली कोई देखेगा और बता देगा. उसके लिए एक्सपर्टीज की जरूरत होती है. जीपीआर से यह पता लगा सकते हैं कि कोई चीज वहां पर दबी है या कोई मैटेलिक चीज है. जीपीआर से अप्रत्यक्ष रूप से इन सभी चीजों की जानकारी मिल सकती है.' ऐसे में उनका कहना है कि अगर वहां से प्राप्त चीजों का लैब टेस्ट किया जा रहा होगा तो समय लग सकता है, लेकिन अगर सिर्फ जियोग्राफिकल सर्वे की रिपोर्ट चाहिए तो वह तुरंत मिल जाता है.
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