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Reality Check: PM मोदी के संसदीय क्षेत्र के इस सरकारी अस्पताल मरीजों की अनदेखी, दवाओं के लिए भटकने को मजबूर

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Published : Aug 3, 2023, 7:57 PM IST

वाराणसी राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय में मरीजों के लिए दवाओं किल्लत है. अस्पताल में दवाओं के लिए मरीजदर-दर भटक रहे है. डॉक्टर मरीजों को बाहर से दवा लाने की सलाह दे रहे हैं. आइए इस मामले को विस्तार से समझते हैं.

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राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय

बनारस के आयुर्वेद अस्पताल की हकीकत सरकारी दवाओं के लिए दर-दर भटक रहे मरीज

वाराणसी:उत्तर प्रदेश में डबल इंजन की सरकार स्वास्थ्य सुविधाओं को बेहतर करने के लाख दावे करती है. लेकिन, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र के अस्पतालों की स्थिति ऐसी है कि मरीजों को उससे अधिक लाभ नहीं मिल रहा है. अस्पताल में डॉक्टर भी हैं और मरीज भी आ रहे हैं, लेकिन दवाओं का कुछ अता-पता नहीं है. दवाएं मिलेंगी या नहीं मरीजों के मन में यह शंका बनी रहती है. इस अस्तपाल का नाम राजकीय आयुर्वेद महाविद्यालय है. बड़ी बात यह है कि यह एक यह शोध संस्थान भी है. मरीजों को यहां पर दवाएं नहीं मिल पाती हैं. उन्हें बाहर से दवा खरीदने के लिए कह दिया जाता है.


अस्पताल में नहीं मिलती हैं पूरी दवाएं:ईटीवी भारत ने इस अस्पताल की स्थिति जानने के लिए यहां अपना इलाज कराने आए मरीजों से बात की. इस दौरान हमारी मुलाकात दवा के लिए भटक रहे मरीज अभिषेक से हुई. उन्होंने बताया कि इस अस्पताल में अकसर दवाएं नहीं रहती हैं. पूरी दवाइयां कभी नहीं मिलती हैं. कुछ दवाएं अस्पताल में मिलती हैं तो कुछ बाहर से लेनी पड़ती हैं. लगभग 500-1000 रुपये का अन्तर पड़ जाता है. सरकार अगर सुविधा दे रही है तो अस्पताल में पूरी सुविधा मिलनी चाहिए. अस्पताल में दवाइयां पूरी नहीं मिल पाती हैं और ये दिक्कत हमेशा रहती है. कुछ न कुछ दवाइयां बाहर से लेनी पड़ती हैं.

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बाहर से दवाएं खरीदने को बोला जाता है:दवा के काउंटर के पास मौजूद अंजुलिता ने बताया कि यहां पर दवा नहीं मिलती है. कहते हैं कि दवा बाहर से ले लीजिए. जिस मरीज को आकस्मिक रूप से दवा चाहिए वो बाहर से दवाएं लेगा ही. बाहर से दवाइयां लेने पर पैसे अधिक खर्च करने पड़ते हैं. अगर दवाएं अस्पताल से मिल जाएं तो नि:शुल्क मिल जाएंगी. बाहर से दवा लेने पर 1000 से 2000 रुपये तक खर्च करने पड़ते हैं. दवाइयां नहीं रहती हैं तो हमें बाहर से खरीदना पड़ता है.

शासन की तरफ से सिर्फ 43 दवाओं की अनुमति:अस्पताल के एसएमओ अरविंद कुमार ने बताया कि शासन की तरफ से उपलब्ध दवाओं में से कुछ आउटऑफ स्टॉक हो जाती हैं. अस्पताल में दवाओं का स्टॉक पुराना ही चल रहा है. 43 दवाएं शासन की और 10 दवाएं लगभग आईएमपीसीएल की आती हैं. दवाएं जब आती हैं तो बांटी जाती हैं. जब ये दवाएं खत्म होती हैं तो हम इसके लिए शासन से पत्राचार करते रहते हैं. दवाएं कभी समय से आ जाती हैं तो कभी समय से नहीं आती हैं. जब दवाएं अस्पताल में देरी से पहुंचती हैं तो उस समय मरीजों को दवा मिलने में परेशानी का सामना करना पड़ता है. वर्तमान में हमने डायरेक्टर ऑफिस से दो महीने के लिए दवाएं मंगाई हैं. ये दवाएं अस्पताल में बाटी जा रही हैं. उन्होंने बताया कि आयुर्वेद में मरीजों की संख्या भी बढ़ चुकी है. रोजाना करीब 400 से 600 मरीज आते हैं.


बाहर से क्यों लिखी जाती हैं दवाएं:एसएमओ ने बताया कि यहां पर काम कर रहे कंसल्टेंट का कहना है कि शासन की तरफ से जो स्वीकृत दवाएं हैं इसके अलावा भी हमें कुछ स्पेशल और अच्छी दवाएं चाहिए. इसके लिए वे लोग बाहर की दवाएं लिखते हैं. हमें मरीज को ठीक करना होता है. इसके लिए शासन की तरफ से मिलीं दवाओं से काम नहीं चल पाता है. इस कारण से बाहर से दवाएं लिखनी पड़ती हैं.


हमेशा बनी रहती है ऐसी ही स्थिति:बता दें कि बेहतर अस्पताल करने के दावे करने वाले प्रदेश में खुद प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र में अस्पताल का बुरा हाल है. यहां पर मरीजों की संख्या ज्यादा है, लेकिन दवाओं का स्टॉक कम है. तीन महीने की परेशानी के बाद स्ट़ॉक मंगाया गया है, लेकिन वह भी सिर्फ दो महीने के लिए हैं. इसके बाद फिर से स्टॉक के लिए परेशानी हो सकती है. नई दिल्ली में स्थापित आयुर्वेद संस्थान की मानें तो वहां पर 250 ऐसी दवाएं हैं जो मरीजों के लिए उपलब्ध हैं. वहीं वाराणसी स्थिति राजकीय आयुर्वेद अस्पाल में दवाओं का अभाव देखने को मिल रहा है. ऐसी स्थिति हमेशा बनी रहती है.


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