वाराणसी : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय बीते कई महीनों से 'जंग का मैदान' बना हुआ है. आए दिन छात्र-छात्राओं को धरने पर बैठे देखा जा सकता है. वह चाहे छेड़छाड़ का मामला हो या फिर छात्रों की पढ़ाई से संबंधित कोई मुद्दा हो. चाहे नियुक्ति का मामला हो या फिर परीक्षा से संबंधित हो. हर मामले में छात्रों को धरने पर बैठना पड़ रहा है. ऐसा ही एक और मामला दीक्षांत समारोह को लेकर सामने आया है. काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में 16 दिसंबर को दीक्षांत समारोह होना है. कुलपति समेत कई मुख्य अतिथि इस आयोजन का हिस्सा होंगे. ऐसे में कुलपति ने यह फैसला सुनाया है कि संबद्ध कॉलेजों के दीक्षांत उनके अपने कैंपस में ही आयोजित होंगे. इसे लेकर छात्र धरने पर बैठे हैं.
छात्रों के साथ हो रहा भेदभाव:काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के सेंट्रल कार्यालय के सामने छात्र-छात्राएं धरने पर हैं. वे लगातार एक ही मांग कर रहे हैं कि हमारी मांगों को माना जाए और लिखित में आश्वासन दिया जाए. सभी ने कुलपति को पत्र लिखते हुए कहा है कि 'विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा एक विभाजनकारी निर्णय लिया गया है, कहा गया है कि संबद्ध महाविद्यालयों के विद्यार्थियों का दीक्षांत समारोह मुख्य परिसर में न होकर उनके महाविद्यालय में होगा. इस भेदभावपूर्ण निर्णय का सभी छात्र-छात्राएं विरोध करते हैं. साथ ही मांग करते हैं कि पूर्व की तरह ही विद्यार्थियों को मुख्य परिसर में उपाधि प्रदान करने का काम किया जाए.' छात्रों ने इस पत्र के माध्यम विश्वविद्यालय प्रशासन से बात करने की मांग की है.
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102 साल से चली आ रही विश्वविद्यालय की परंपरा:काशी हिन्दू विश्वविद्यालय की पीजी के छात्र विपुल सिंह ने कहा, 'दीक्षांत समारोह के मामले को लेकर हम बीएचयू के सेंट्रल ऑफिस के बाहर धरने पर बैठे हुए हैं. विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह में 102 साल से जो प्रक्रिया और परंपरा चली आ रही थी कि मुख्य परिसर और संबद्ध कैंपस के सभी के दीक्षांत समारोह मुख्य परिसर में ही आयोजित होते थे. अचानक 103वें दीक्षांत समारोह में कुलपति द्वारा एक फरमान जारी किया जाता है कि बीएचयू के मुख्य कैंपस से जो संबद्ध कॉलेज के कैंपस हैं उनका दीक्षांत समारोह नहीं होगा. उनके कॉलेज में दीक्षांत दिया जाएगा. यह बहुत दुखद और शर्मिंदगी भरा है.'
लिखित में आश्वासन मिलने पर उठेंगे छात्र:पीजी के छात्र विपुल सिंह ने कहा, बीते 102 साल से जो परंपरा चली आ रही है, जिसके कारण बीएचयू प्रशासन को कभी कोई समस्या नहीं आई. विश्वविद्यालय को कोई समस्या नहीं आई. अचानक ऐसी कौन सी मजबूरी आ गई, कि कुलपति ऐसा तानाशाही फैसला लेकर छात्रों को इस तरह से लगातार परेशान कर रहे हैं. हमारी एक ही मुख्य मांग है कि सभी छात्र-छात्राओं का दीक्षांत समारोह विश्वविद्यालय के मुख्य परिसर में ही आयोजित किया जाए. उसमें वे चाहे संबद्ध कॉलेज ही क्यों न हों. बीते 102 साल से चली आ रही परंपरा को ही आगे बढ़ाया जाए. हम तभी इस धरने से उठेंगे जब तक हमें इसे लेकर लिखित में आश्वासन नहीं आयेगा.
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