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'अजगर करे न चाकरी, पंछी करै न काम : दास मलूका कह गए सब का दाता राम'

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Published : Dec 25, 2020, 1:29 PM IST

स्पेशल रिपोर्ट.

संत मलूकदास का 'अजगर करे न चाकरी, पंछी करै न काम : दास मलूका कह गए सब का दाता राम', यह दोहा सम्पूर्ण विश्व में अपनी सारगर्भिता को लेकर साहित्यकारों के बीच कौतुहल का विषय बना हुआ है. दोहे को लेकर लोग इस संत को न केवल याद करते हैं, बल्कि उनकी स्मृति को अपने जेहन मे सहेज कर रखे हुए हैं.

सीतापुर:कर्मयोगी संत मलूकदास जी महाराज का जन्म कौशांबी जिले के ग्राम कड़ा माणिकपुर में वैशाख कृष्ण पंचमी (गुरुवार) को हुआ था. उनमें बाल्यावस्था में ही कविता लिखने का गुण विकसित हो चुका था. उन्होंने जो भी शिक्षा प्राप्त की, वह स्वाध्याय, सत्संग व भ्रमण के द्वारा प्राप्त की.

स्पेशल रिपोर्ट.

मुगल शासक भी प्रभावित थे
महाराजश्री कर्मयोगी संत थे. वह जाति व्यवस्था के घोर विरोधी थे. उन्होंने देश भर में भ्रमण करते हुए वैष्णवता और रसोपासना का प्रचार-प्रसार किया. हिन्दू-मुस्लिम दोनों ही समुदाय में उनके शिष्य थे. आचार्य मलूकदास के पास सत्संग हेतु लोगों का तांता लगा रहता था. संत तुलसीदास तक ने कई दिनों तक उनका आतिथ्य स्वीकार किया था. मुगल शासक औरंगजेब भी उनके सत्संग से अत्यंत प्रभावित था.

कहा जाता है कि मलूकदास को एक वटवृक्ष के नीचे ज्ञान प्राप्त हुआ था. सीतापुर जिले में वह वटवृक्ष आज भी मौजूद है, जहां पर मध्यकाल के सिद्ध संत मलूकदास को ज्ञान प्राप्त हुआ था. इसके बाद उन्होंने लिखा था कि 'अजगर करे न चाकरी, पंक्षी करै न काम, दास मलूका कह गये सब का दाता राम.'

धरोहरों से भरा पड़ा है मठ
जिला मुख्यालय से 42 किलोमीटर दूर विकास खण्ड गोंदलामऊ क्षेत्र के कोरौना गांव के दक्षिण में वनगढ आश्राम स्थित है. यहां मलूकदास जी ने मठ स्थापित किया था, जहां कई ऐतिहासिक धरोहरों को संजोए गए हैं.

संत मलूकदास जी मध्यकाल के अपने गुरू देवमुरारी के आदेश पर नैमिष क्षेत्र में आये थे. उस समय मलूकदास जी ने अपने गुरू से पूछा था कि वहां हमें पेट भरने के लिए संसाधन क्या होगा, जिस पर गुरू ने कहा था कि भगवान सबको यथा समय भोजन देता है. मलूकदास अपने गुरू देवमुरारी के आश्राम दारागंज इलाहाबाद से चलकर नैमिष क्षेत्र के 84 कोसी परिक्रमा के प्रथम पडाव कोरौना के समीप एक विशाल जंगल में स्थित एक वटवृक्ष की खोह में बैठ गए.

वृक्ष की खोह में बैठे
मलूकदास जी यह जानना चाहते थे कि भगवान सबको यथा समय भोजन कैसे देते हैं. इसकी परीक्षा के लिए वह मौन हो कर बैठे हुए थे. वहीं पर किसान व चरवाहों ने अपना भोजन वृक्ष की शाखाओं में टांग रखा था. उसी जंगल से गुजर रहे दस्यु के दल की नजर वृक्ष पर टंगे भोजन पर पड़ी. भूख से व्याकुल दस्यु ने भोजन को खाना चाहा तो दस्यु के सरदार ने रोकते हुए कहा कि ऐसा न हो कि इस भोजन में जहर मिला हो, इसलिये इसका परीक्षण करना जरूरी है.

इस बाबत दस्यु की नजर जंगल में स्थित उसी वटवृक्ष की खोह में पड़ी, जिसमें मलूकदास जी बैठे हुए थे. दस्युओं ने मलूकदास जी से भोजन करने के लिए कहा तो उन्होंने मना कर दिया. तब दस्युओं ने उन्हें पीट-पीट कर भोजन करने के लिए बाध्य कर दिया. बस इसी घटना से मलूकदास जी को ज्ञान की प्राप्ति हुई. इस घटना के बाद उन्होंने लिखा था कि "अजगर करे न चाकरी, पंक्षी करै न काम, दास मलूका कह गये सबके दाता राम".

मठ में आज भी सजोई रखी है मलूकदास जी की यादें
मलूक पीठ में मलूकदास जी द्वारा इस्तेमाल की गई शैय्या, चरणपादुका आदि मौजूद है. अब यह वटवृक्ष कई शाखाओं के रूप में एक बड़े क्षेत्र में फैल चुका है. मलूकदास जी इसी आश्रम में रहे और वर्षों तक तपस्या की. चूंकि यह स्थान विशाल वन क्षेत्र था, इसलिये इस स्थान का नाम तत्कालीन समय में वनगढ पड़ गया. मलूकदास जी ने गुरू परम्परा को आगे बढाया. संतोष दास खाकी वर्तमान समय में इस पीठ के पीठाधीश्वर हैं.

इस स्थान पर मलूकदास जी द्वारा स्थापित वर्षों पुराना राधाकृष्ण मन्दिर है. इसका जीर्णोद्धार इस आश्रम के छठवें पीठाधीश्वर बाबा ननकूदास ने लगभग 300 वर्ष पूर्व करवाया था. यह आश्रम आस्था का केंद्र बना हुआ है. इस स्थान पर दूर-दूर से संतों व श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है. मलूकदास का जन्म संवत 1631 में ग्राम कड़ा जिला इलाहाबाद (प्रयागराज) में हुआ, उनकी मृत्यु संवत 1739 में बताई जाती है.

मलूकदास जी के शिष्य-

  • मलूकदास जी के शिष्य-राघव दास
  • राघव दास के दो शिष्य हुए- द्ववारिका दास, गैवीदास
  • गैवीदास के शिष्य- महाकवि नरोत्तमदास
  • द्ववारिका दास जी के शिष्य- रघुवरदास
  • रघुवरदास के शिष्य- भरतदास
  • भरतदास जी के शिष्य- हरीदास
  • हरीदास के शिष्य- अयोध्या दास
  • आयोध्या दास के शिष्य- दनकूदास
  • दनकूदास के शिष्य- बाबा चरणदास खाकी
  • चरणदास खाकी के शिष्य संतोष दास खाकी, जो वर्तमान समय में पीठ के महंत हैं.

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