संत कबीर नगर: पूरे विश्व को कौमी एकता मानवता और आपसी भाईचारे का संदेश देने वाले सूफी संत कबीर दास जी की आज जयंती है. संत कबीर की मगहर स्थित समाधि और मजार आज भी हिंदू मुस्लिम एकता की पहचान बनी हुई है. जिला मुख्यालय से 8 किलोमीटर दूर पूर्व दिशा में बसे मगहर से पूरे विश्व को कौमी एकता भाईचारा का संदेश जाता है. संत कबीर ने यहां अपने जीवन का अंतिम क्षण बिताया था.
सूफी संत कबीर की परिनिर्वाण स्थली मगहर में स्थित कबीर की समाधि और मजार कौमी एकता की मिसाल आज भी बनी हुई है. देश के कोने-कोने से लोग यहां पहुंचते हैं और यहां रुककर कबीर के संदेशों को ग्रहण कर अन्य लोगों तक भी पहुंचाने का काम करते हैं. यही नहीं पूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम, पूर्व राज्यपाल उत्तर प्रदेश मोतीलाल बोरा, पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ भी कबीर के दर पर मत्था टेकने आ चुके हैं. सूफी संत कबीर के अनुयायियों की माने तो पूरे विश्व को आपसी भाईचारा मानवता का संदेश देने वाले संत कबीर के इस पवित्र धाम में आने के बाद उनके पुण्य कार्यों को करने की सीख मिलती है. साथ ही एक असीम शांति की अनुभूति भी होती है.
जाति को लेकर विवाद
कबीर किस जाति, किस धर्म के थे यह किसी को नहीं पता. लहरतारा के एक तालाब के किनारे जब कबीर एक कमल में नीरू और नीमा नामक जुल्हा, यानी मुस्लिम दंपति को मिले तब उनका लालन-पालन इसी दंपति ने किया. कबीर को मुस्लिम कहा जाता है, लेकिन कमल पुष्प में मिलने की कथा उन्हें हिंदू बताती है. इन दो अलग-अलग मान्यताओं की वजह से कबीर की जाति और धर्म को लेकर हमेशा से मतभेद रहा है. पूर्वजों की माने तो कबीर की निर्वाण स्थली मगहर में समाज और मजार का भी एक रहस्य है.