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..तो 'विकास' का मुद्दा बदलेगा यूपी की सियासी तकदीर, मुस्लिम वोटर मारेंगे 'आखिरी हथौड़ा' !

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Published : Jul 24, 2021, 5:47 PM IST

Updated : Jul 24, 2021, 7:56 PM IST

..तो 'विकास' का मुद्दा बदलेगा यूपी की सियासी तकदीर
..तो 'विकास' का मुद्दा बदलेगा यूपी की सियासी तकदीर

बसपा के ब्राह्मण कार्ड का असर उतना ही नहीं पड़ेगा जितना दिखाई दे रहा है. मुस्लिम वोटर भी इससे प्रभावित होंगे. इसके पीछे एक तथ्य यह भी है कि अब तक प्रदेश में मुस्लिम वोट उसी पार्टी को मिले हैं जो भाजपा को हराते दिखी है. इस बार यदि मायावती ब्राह्मणों के वोट से मजबूत दिखीं तो मुस्लिम वोट हर सीट पर मजबूत बसपा प्रत्याशी के पक्ष में गिरेगा. ऐसे में यूपी में ब्राह्मण कार्ड कई दलों का सियासी समीकरण बिगाड़ते दिखाई दे रहा है.

हैदराबाद :उत्तर प्रदेश में आगामी कुछ महीनों में विधानसभा चुनावों की गर्मी अपने चरम पर पहुंच जाएगी. इस बीच हर दिन प्रदेश में राजनीतिक समीकरण और मुद्दे बदलते दिखाई देंगे. पर एक बात तो स्पष्ट है कि विधानसभा चुनाव 2022 की मुख्य रणनीति का केंद्र न तो मंदिर मुद्दा होगा और न ही तुष्टिकरण की राजनीति. मुद्दा सिर्फ 'विकास' का होगा. पर यह वह 'विकास' नहीं जिसकी हर चुनाव में चर्चा होती है. यह विकास वह 'विकास' है जिसने उत्तर प्रदेश की पूरी राजनीति को ब्राह्मण राजनीति के इर्द-गिर्द समेटकर रख दिया है. खासकर बहुजन समाज पार्टी के ब्राह्मण कार्ड खेलने के बाद सभी राजनीतिक दल ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने में जुट गए हैं.

इसी बीच एक नया सियासी समीकरण भी उभरता हुआ नजर आ रहा है. दरअसल, अब मुस्लिम वोटरों के भी बसपा में शिफ्ट होने का अंदेशा जताया जा रहा है. 2007 के चुनाव में भी बसपा को ब्राह्मणों के वोट के साथ अच्छे खासे मुस्लिम वोट मिले थे. यह वह सोशल इंजीनिरिंग का माॅडल था जिसे पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के माॅडल से लिया गया था. ब्राह्मण-दलित और मुस्लिम वोटरों ने मायावती को मुख्यमंत्री बना दिया था.

विधानसभा चुनाव 2022

ऐसे में बसपा के ब्राह्मण कार्ड का असर उतना ही नहीं पड़ेगा जितना यह दिखाई दे रहा है. मुस्लिम वोट भी इससे प्रभावित होंगे. इसके पीछे एक तथ्य यह भी है कि अब तक प्रदेश में मुस्लिम वोट उसी पार्टी को मिले हैं जो भाजपा को हराते दिखी है. इस बार यदि मायावती ब्राह्मणों के वोट से मजबूत दिखीं तो मुस्लिम वोट हर सीट पर मजबूत बसपा प्रत्याशी के पक्ष में गिरेगा. ऐसे में यूपी में ब्राह्मण कार्ड कई दलों का सियासी समीकरण बिगाड़ते दिखाई दे रहा है.

सभी दल नए सिरे से बना रहे चुनावी रणनीति

दरअसल, उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव 2022 के मद्देनजर जहां कुछ महीने पहले तक भाजपा समेत सभी बड़े दलों के नेता हिंदु वोटरों को 'रिझाने' के लिए मंदिरों में 'सजदा' करने पहुंच रहे थे, वहीं अब बसपा के ब्राह्मण कार्ड खेलते ही नए सिरे से अपनी रणनीति बनाने में जुट गए हैं. बसपा की यह 'अवसरवादी' (भाजपा से ब्राह्मणों के कथित नाराजगी के बीच) ब्राह्मण राजनीति भाजपा समेत अन्य दलों को कितना डैमेज करेगी, इसका अंदाजा अभी कोई भी दल ठीक से नहीं लगा पा रहा है. इस बीच भाजपा को जहां सत्ता जाने का डर सता रहा है तो वहीं समाजवादी पार्टी के नेता भी परेशान हैं. सियासी समीकरणों के बीच उनकी परेशानी जायज भीजान पड़ती है.

भाजपा की बढ़ी मुश्किलें

मुस्लिम वोटरों का ट्रेंड भी परेशानी का सबब

पिछले कुछ चुनावों से उत्तर प्रदेश में मुस्लिम वोटरों के ट्रेंड ने सभी दलों को परेशान कर रखा है. अब तक भाजपा के सामने सबसे बड़ी पार्टी समाजवादी पार्टी ही दिखाई दे रही थी. विधानसभा चुनाव 2017 में कांग्रेस-सपा गठबंधन के चलते प्रदेश की हर सीट पर भाजपा के सामने इस गठबंधन का प्रत्याशी मजबूत दिखाई दे रहा था. इसके चलते भी मुस्लिम वोटरों का झुकाव इस गठबंधन की ओर रहा. सपा में आजम खां के घटते कद और मुलायम सिंह यादव के पहले जितना सक्रिय न रहने से धीरे-धीरे मुस्लिम कैडर वोट का भी पार्टी से मोहभंग शुरू हो गया.

इस स्थिति को भांपकर कांग्रेस ने पिछले कुछ सालों से मुस्लिम समाज में पैठ बनानी शुरू कर दी थी. इसे लेकर सपा भी सतर्क थी. हालांकि इसी बीच भाजपा की पांच साल की सरकार ने मुस्लिम वोटरों को प्रदेश में काफी हद तक 'न्यूट्रल' करने का भी काम किया. लेकिन अब भी उनका झुकाव भाजपा की ओर नहीं हो सका है.

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मुस्लिम वोटर ढूंढ रहे 'ऑप्शन'

माना जा रहा है कि ब्राह्मणों की तरह मुस्लिम वोटर भी एक 'ऑप्शन' ढूंढ रहे हैं. इसी बीच बहुजन समाज पार्टी के मैदान में कूदने और ब्राह्मण वोटरों को अपने पाले में लाने की कवायद तेज कर दी गयी. ऐसे में इस बात के भी कयास लगाए जा रहे हैं कि यदि बसपा इस चुनाव में भाजपा के विकल्प के रूप में दिखी तो मुस्लिम वोटर जो यूपी में करीब 19 प्रतिशत माना जाता है, एकतरफा बसपा की ओर मुड़ सकता है. इन परिस्थितियों में करीब 27 प्रतिशत बसपा के कैडर वोटर, 13 प्रतिशत ब्राह्मण वोटर (यदि साथ आए) को लेकर 19 प्रतिशत मुस्लिम वोटरों के साथ बसपा स्पष्ट बहुमत या उससे भी बड़ी जीत हासिल कर सकती है.

कम नहीं हैं दुश्वारियां

इस चुवाव में बसपा को हालांकि इसके 2007 माॅडल की धार और इसकी रणनीति पर पूरा भरोसा है लेकिन अब भी उसे भाजपा के राष्ट्रवाद जैसे मुद्दों से चुनौतियां मिलती दिखाई दे रहीं हैं. आगामी चुनाव में राष्ट्रवाद एक बार फिर बड़ा मुद्दा रह सकता है. भाजपा इस मुद्दे को लेकर वोटों के ध्रुवीकरण का प्रयास करती भी दिखेगी. ऐसे में आखिरी समय में यदि ब्राह्मण वोटर का मन बदला तो परिणाम बसपा की उम्मीदों के उलट भी हो सकते हैं.

हालांकि ब्राह्मण वोटरों की नब्ज टटोलने के लिए ही बसपा सुप्रीमो मायावतीने पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव सतीश चंद्र मिश्र को ब्राह्मण सम्मेलन कराने का जिम्मा दे दिया है. पहला चरण अयोध्या से शुरू भी हो गया है. अगला चरण मथुरा और फिर काशी में तीसरा चरण होगा. चित्रकूट में चौथा चरण होगा जहां आरएसएस ने हाल ही में यूपी विधानसभा चुनाव के मद्देनजर चार दिवसीय विचार-मंथन सत्र का आयोजन किया था.

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भाजपा को पहले से था अंदाजा, तभी पार्टी में लाए गए जितिन प्रसाद

राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो खुशी दुबे केस (विकास दुबे की रिश्तेदार) को लेकर ब्राह्मण समाज के गुस्से का अंदाजा भाजपा आलाकमान को पहले से ही था. यही वजह थी कि लखनऊ में संघ की ओर से बार-बार समीक्षक दल भेजकर स्थिति का जायजा लिया जा रहा था. राजनितिक पंडित मानते हैं कि कांग्रेस के बड़े और दिग्गज ब्राह्मण चेहरे जितिन प्रसाद को भी इसी वजह से पार्टी ने आनन-फानन सदस्यता ग्रहण कराई गयी थी. हालांकि जितिन का पार्टी में आना कितना लाभकारी होगा, यह वक्त ही बताएगा.

क्या कहते हैं आंकड़े

आबादी के हिसाब से ब्राह्मण समुदाय का यूपी में वर्चस्व रहा है. यूपी में 11-14 फीसदी ब्राह्मण वोट बैंक हैं जो जाटव और यादव वोट बैंक के बराबर है. कुछ ऐसी भी सीटें हैं जहां ब्राह्मण वोटरों की संख्या 15 फीसदी से भी अधिक है. बलरामपुर, बस्ती, संत कबीर नगर, महाराजगंज, गोरखपुर, देवरिया, जौनपुर, अमेठी, वाराणसी, चंदौली, कानपुर और इलाहाबाद ऐसे ही जिलों में शामिल हैं. माना जाता है कि कुल 115 से अधिक सीटों पर ये हार-जीत आसानी से तय करते हैं. ऐसे में 403 सीटों में 115 सीटें काफी महत्वपूर्ण हो जाती हैं.

यूपी में ब्राह्मण लंबे समय से रहा किंग मेकर

उत्तर प्रदेश में लंबे समय से ब्राह्मण किंग मेकर रहे हैं. 90 के दशक से पूर्व यूपी में कांग्रेस बनाम अन्य की राजनीति चलती थी. शुरुआती दौर में ब्राह्मणों ने कांग्रेस को खूब वोट किया. इसी के चलते यूपी में अब तक 21 में 6 मुख्यमंत्री ब्राह्मण रहे, वो भी सभी कांग्रेस से. अयोध्या मंदिर आंदोलन के बाद इनका वोट भाजपा की ओर शिफ्ट हुआ. हालांकि ब्राह्मण वोट बैंक को साधने का सबसे बड़ा प्रयोग साल 2007 में मायावती ने ही किया. 'ब्राह्मण शंख बजाएगा, हाथी दौड़ा आएगा' के नारे ने 2007 में मायावती के हाथ सत्ता की चाबी सौंप दी.

साल 2012 में बसपा सरकार से नाराजगी के बाद विकल्प की तलाश में ब्राह्मण सपा से जुड़े तो सपा की सरकार बनीं. फिर साल 2017 में भाजपा ने गेम पलट दिया. सेंटर फार द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटी (CSDS) की एक रिपोर्ट बताती है कि साल 2007 और 2012 में भाजपा को ब्राह्मणों ने 40 और 38 फीसदी वोट दिया. हालात ये थे कि भाजपा राज्य में तीसरे नंबर की पार्टी थी. साल 2017 में 80 फीसदी वोट दिए तो भाजपा पूर्ण बहुमत से सरकार में आ गई.

अयोध्या के ब्राह्मण सम्मेलन में सतीश मिश्र

बसपा ने ब्राह्मण कार्ड फेंककर खेला है बड़ा दांव

राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि बसपा ने अयोध्या जैसे महत्वपूर्ण स्थान से ब्राह्मण सम्मेलन की शुरूआतकर एक बड़ा दांव खेला है. मथुरा, वाराणसी और चित्रकूट में बैठकों के साथ ब्राह्मणों का ध्यान आकर्षित करने के लिए एक सुविचारित जुंआखेला है. पार्टी इस प्रकार ब्राह्मणों के धार्मिक मुद्दों और आस्था की नब्ज टटोलने की कोशिश कर रही है. हालांकि यह वक्त ही बताएगा कि उसकी रणनीति कितनी कारगर साबित होती है.

Last Updated :Jul 24, 2021, 7:56 PM IST

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