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SP Election Preparations : तीन चुनाव हारने के बाद वोट बैंक सहेजने की कोशिश में अखिलेश यादव

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Published : Feb 3, 2023, 1:27 PM IST

समाजवादी पार्टी (SP Election Preparations ) पिछले तीन बड़े चुनाव हार चुकी है. इसके पीछे राजनीतिक रणनीतिकारों की राय अलग अलग है. फिलहाल सपा की मौजूदा सियासत का अंदाज कुछ अलग ही है. धर्म और हिंदुत्व के मुद्दे पर सत्ता में आई भाजपा को टक्कर देने में कहीं न कहीं विपक्षी दलों से बड़ी चूक हुई है. शायद अखिलेश ने यही भांप कर अलग ही रुख अखतियार कर लिया है.

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लखनऊ :समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव पिछले 3 बड़े चुनाव हार चुके हैं और अब जब 2024 का लोकसभा चुनाव नजदीक है तो उन्हें अपने वोट बैंक सहेजने की चिंता सताने लगी है. यह चिंता दूर करने के लिए वह हर प्रयास करते नजर आ रहे हैं. अखिलेश यादव पूरी तरह से पिछड़े वोट बैंक को सहेजने के लिए काम भी कर रहे हैं. अपनी गठित राष्ट्रीय कार्यकारिणी में इसकी झलक देखी है और योजनाबद्ध तरीके से वह इस पर काम कर रहे हैं. हाल ही में इसकी झलक भी दिखी और उनके बयान भी उनके वोट बैंक की चिंता करते हुए नजर आ रहे हैं. इस काम को आगे बढ़ाने के लिए अखिलेश खुद के साथ सपा के अन्य चेहरों को आगे किया है.


दरअसल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव और फिर उसके बाद वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव को लेकर कोई रिस्क नहीं लेना चाहते हैं. अब पूरी तरह से जातीय समीकरण को फिट करके ही चुनाव मैदान में उतरने की रणनीति पर काम कर रहे हैं. यही कारण है कि बीजेपी के हिंदुत्व के कार्ड में समाहित पिछड़ी जातियों को बीजेपी से अलग करने की सोची समझी रणनीति के साथ समाजवादी पार्टी भी पिछड़े कार्ड पर पूरी तरह से आगे बढ़ती हुई नजर आ रही है. वर्ष 2012 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी मुलायम सिंह यादव के जातीय समीकरण के आधार पर सत्ता की कुर्सी पर पहुंची थी और अखिलेश यादव को मुख्यमंत्री बनाया गया था. इसके बाद से विधानसभा चुनाव, लोकसभा चुनाव अखिलेश यादव के नेतृत्व में हुए और अपने हिसाब से एजेंडा सेट करते हुए आगे बढ़े, लेकिन सबको साथ लेकर चलने की कोशिश में अखिलेश यादव को सफलता नहीं मिल पाई. पिछड़ा वोट बैंक भारतीय जनता पार्टी के साथ काफी हद तक शिफ्ट हो गया और बीजेपी की सरकार बन गई.


वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी को ऐतिहासिक विजय मिली थी. वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में समाजवादी पार्टी की सत्ता से बेदखल हो गई और भारतीय जनता पार्टी की भी उत्तर प्रदेश में सरकार बन गई. वर्ष 2019 का लोकसभा चुनाव में भी समाजवादी पार्टी की रणनीति कामयाब नहीं हुई. वर्ष 2022 में भी अखिलेश यादव ने बड़े स्तर पर रथ यात्राएं निकालीं, लेकिन कामयाब नहीं हुए. अब अखिलेश यादव वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव से पहले पिछड़ा कार्ड और उसके साथ मुस्लिम वोट बैंक को साथ लेकर आगे बढ़ने की कोशिशों में लगे हुए हैं और इस पूरे अभियान को आगे बढ़ाने में उन्होंने स्वामी प्रसाद मौर्य जैसे पिछड़े चेहरों को आगे बढ़ाया है.


राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर मनीष हिंदवी कहते हैं कि समाजवादी पार्टी की जो नई कार्यकारिणी की लिस्ट आई है, उसको ध्यान से देखिए तो अखिलेश यादव ओबीसी वोट बैंक की तरफ पीछे जाते दिख रहे हैं. रामचरितमानस को लेकर जो स्वामी प्रसाद मौर्य का बयान आया है तो उन्हीं के तमाम पार्टी के जो सवर्ण नेता हैं, उन्होंने नाराजगी की जाहिर की है और अखिलेश यादव ने खामोशी अख्तियार की हुई है. एक बात स्पष्ट है कि वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव में हार के बाद उनको यह समझ में आ गया है कि उनका जो बेस वोट बैंक होगा वह भी ओबीसी प्लस मुस्लिम का होगा. अखिलेश यादव वापस ओबीसी वर्ग को साधने के लिए काम करते हुए नजर रहे हैं. मुस्लिम उनके साथ पहले से है. वह अब ओबीसी सी प्लस मुस्लिम तो गठजोड़ करने पर लगे हुए हैं. नई कार्यकारिणी में उन्होंने क्षत्रिय, ब्राह्मण समाज को नजरअंदाज करने का काम किया है जो ठाकुर बिरादरी के लोग हैं वे मुलायम सिंह यादव के समय से लंबे समय तक समाजवादी पार्टी के साथ जुड़े रहे हैं, लेकिन इस कार्यकारिणी में उनको नजरअंदाज किया गया है. यह प्रयोग कितना सफल होगा यह आने वाला समय बताएगा.


समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सुनील सिंह साजन ने कहा कि रामचरितमानस को लेकर हमारा विरोध नहीं है. उसके कुछ अंश को लेकर हमारा विरोध है. एक चौपाई के एक अंश को लेकर विरोध है. समाज का बड़ा वर्ग अगर इससे अपमानित होता हो तो मुझे लगता है उस चौपाई को हटा देना चाहिए. सभी विद्वानों को मिलकर यह सहमति बनानी चाहिए. हम कह रहे हैं कि अगर आज गोस्वामी तुलसीदास हमारे बीच में होते और उनको लगता कि हमारी किसी चौपाई या शब्द से लोग आहत हो रहे हैं तो वह खुद चौपाई को हटा देते. समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सुनील सिंह साजन अति पिछड़े कार्ड के सवाल पर कहते हैं कि समाजवादी पार्टी की सबकी बात करती है. सबको साथ लेकर आगे चलती है हम पिछड़ों दलितों की बात करते हैं हम किसान नौजवान अगले सबकी बात करते हैं. अगर किसी के खिलाफ अन्याय होगा तो किसी को कहीं अपमानित किया जाएगा तो समाजवादी पार्टी आवाज उठाएगी.

रामचरितमानस पर सवाल उठाने के बाद समाजवादी पार्टी कार्यालय के बाहर तमाम तरह की होर्डिंग और पोस्टर लगाए गए हैं जिनमें कहा गया है कि हां हम शूद्र हैं गर्व से कहते हैं कि हम शूद्र हैं. समाजवादी पार्टी इसी जातीय समीकरण को आगे बढ़ाते हुए नजर आ रही है. इस सवाल पर समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता सुनील सिंह साजन कहते हैं कि मुझे लगता है कि पोस्टर से किसी को दिक्कत नहीं होनी चाहिए. इस देश में संविधान लागू है. सबको अपनी बात कहने का हक है. कोई कह सकता है कि हमें गर्व है हम ब्राह्मण हैं, क्षत्रिय हैं तो कोई कह सकता है हमें गर्व है कि हम वैश्य हैं, कोई कह सकता है कि हमें गर्व है कि हम शूद्र हैं, इसमें कोई अपमानित नहीं हो रहा है, क्यों किसी के पेट में दर्द हो रहा है और क्या हो रहा है. इसका जवाब उन्हें देना चाहिए.

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