लखनऊ : जो खटकते थे कभी आंखों में, उसी को नूर बनाए बैठे हैं. समाजवादी पार्टी के मुखिया और यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव आजकल यही कर रहे हैं. कुछ वर्ष पहले पार्टी के जिन फ्रंटल संगठनों को उन्होंने अनुपयोगी बताते हुए भंग कर दिया था. उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव नजदीक आते ही, उनकी महत्ता समझने लगे हैं. यही वजह है कि अखिलेश यादव अपने इन संगठनों में नेताओं को जिम्मेदारी दे रहे हैं, जिससे संगठन को मजबूत करते हुए चुनावी तैयारियों को आगे बढ़ाया जा सके. इसे लेकर पार्टी के अंदर ही चर्चा तेज हो गई है कि डेढ़ वर्ष पहले जिन कार्यकर्ताओं का मनोबल तोड़ दिया गया, उसमे चुनावी उत्साह किस हद तक भरने में सफलता मिलेगी. यदि कार्याकर्ता उत्साहित हो भा जाएं, तो क्या वह वोट बैंक तैयार कर पाएंगे, क्योंकि उनसे जुड़े लोग तो पहले बिखर चुके हैं. हैरानी की बात यह है कि पार्टी के चार फ्रंटल संगठनों में से तीन तो युवाओं से जुड़े संगठन हैं और यूपी में 52.7 प्रतिशत आबादी युवाओं की है.
समाजवादी पार्टी के चार फ्रंटल संगठन हैं
समाजवादी पार्टी संविधान के मुताबिक चार फ्रंटल संगठन मुख्य रूप से काम करते हैं. इनमें समाजवादी लोहिया वाहिनी, समाजवादी युवजन सभा व मुलायम सिंह यादव यूथ ब्रिगेड व समाजवादी छात्र सभा शामिल है. यह चारों फ्रंटल संगठन समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय स्तर पर काम करते हैं और उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में इनके पदाधिकारी नियुक्त होते हैं. संगठन से जुड़े या अन्य विषयों पर यह लोग काम करते हैं, जिससे पार्टी संगठन को मजबूत किया जा सके और चुनाव में इसका लाभ मिले. करीब डेढ़ साल पहले समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने इन सभी चार फ्रंटल संगठनों की राष्ट्रीय कार्यकारिणी भंग कर दिया था. तभी से इन संगठनों के पदाधिकारी पूरी तरह से निष्क्रिय हो गए और अपना कामकाज छोड़ दिया.
फ्रंटल संगठनों को भी सक्रिय कर रहे अखिलेश यादव सिर्फ दो फ्रंटल संगठन के अध्यक्ष घोषित
पार्टी के वरिष्ठ नेता सूत्र बताते हैं कि पिछले दिनों समाजवादी लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में प्रदीप तिवारी व मुलायम सिंह यूथ ब्रिगेड में सिद्धार्थ सिंह को राष्ट्रीय अध्यक्ष पद की जिम्मेदारी दी गई है. लेकिन इनकी अपनी राष्ट्रीय कार्यकारी नहीं बन पाई है. ऐसे में सिर्फ अध्यक्ष के होने से चुनावी तैयारी संभव नहीं है. लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रदीप तिवारी कहते हैं कि हम लोग जल्द ही राष्ट्रीय अध्यक्ष से अनुमति लेने के बाद अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी गठित करेंगे, जिसमें समाज के सभी वर्ग के लोगों का प्रतिनिधित्व नजर आएगा. वहीं, दो फ्रंटल संगठन के अध्यक्ष अभी तक घोषित नहीं किए गए हैं, ऐसे में कार्यकारिणी कहां से बने.
कार्यकारिणी में इतने होते हैं पदाधिकारी
समाजवादी पार्टी के संविधान के मुताबिक फ्रंटल संगठन की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में 51 सदस्य होते हैं. इनमें अध्यक्ष उपाध्यक्ष, महासचिव, सचिव कोषाध्यक्ष व सदस्य बनाए जाते हैं. इसके अलावा राष्ट्रीय कार्यकारिणी के अंतर्गत सभी राज्यों के प्रदेश अध्यक्ष घोषित होते हैं और फिर प्रदेश कार्यकारिणी के अंतर्गत 51 सदस्य होते हैं और इस कार्यकारिणी के सहारे तमाम तरह के संगठन के कामकाज होते हैं और चुनावी तैयारियों को आगे बढ़ाने का काम किया जाता है.
राजनीतिक विश्लेषक रतन मणिलाल कहते हैं कि फ्रंटल संगठनों में नए चेहरों को जिम्मेदारी देकर उन्हें चुनाव के लिए तैयार करना यह अखिलेश यादव के लिए एक बड़ी चुनौती है. फिलहाल वह धीरे-धीरे करके संगठन में नए चेहरों को जिम्मेदारी दे रहे हैं. मुझे लगता है कि यह देरी से उठाया गया कदम है. चुनावी माहौल को देखते हुए उन्हें यह काम पहले किया जाना चाहिए था. फ्रंटल संगठनों को भंग करने से क्या नुकसान हुआ? इसके सवाल पर वह कहते हैं कि इससे समाजवादी पार्टी को नुकसान तो हुआ है, संगठन के कामकाज पर असर पड़ा है. जिला स्तर पर जो मजबूती समाजवादी पार्टी को मिलती है वह नहीं मिली. निचले स्तर पर मजबूती समाजवादी पार्टी में कहीं नजर नहीं आई. समाजवादी पार्टी के फ्रंटल संगठनों के माध्यम से कैडर को सक्रिय करना भी एक बड़ी चुनौती होती है. लेकिन जब फ्रंटल संगठन ही भंग होंगे तो यह काम नहीं हो सकता और इससे संगठन के कामकाज के साथ-साथ चुनावी तैयारियों पर भी असर पड़ता है. अब फ्रंटल संगठनों में नए चेहरों को जिम्मेदारी देकर चुनावी तैयारियों को आगे बढ़ाने को लेकर अखिलेश यादव सक्रिय हुए हैं.
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राजनीतिक विश्लेषक रतन मणि लाल कहते हैं कि फ्रंटल संगठन निष्क्रिय होने से नुकसान होता है. समाजवादी पार्टी के फ्रंटल संगठन के निष्क्रिय होने से स्वाभाविक है कि संगठन के कामकाज पर असर पड़ता है. यही नहीं अभी जो पंचायत के चुनाव हुए हैं उसमें पहले के चुनाव में समाजवादी पार्टी की अच्छी परफॉर्मेंस रही है. लेकिन उसके बाद, जो जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव हुए हैं उसमें समाजवादी पार्टी का लगभग सफाया हो गया है. यह भी देखा गया है कि तमाम सारे पुराने नेता हैं, उन लोगों ने बहुत ज्यादा काम नहीं किया है. ऐसे में पार्टी संगठन का महत्व इनको समझ में आया है कि पार्टी संगठन बहुत मजबूत होना चाहिए और इसके आगे किसी बड़े चुनाव के लिए तैयार हुआ जा सकता है, जिससे मजबूती के साथ चुनाव मैदान में पार्टी उतर सकें. यह बात बिल्कुल सही है कि डेढ़ साल पहले समाजवादी पार्टी ने अपने सभी फ्रंटल संगठनों को भंग कर दिया था, उसमें बहुत सारी शिकायतें थी उसको लेकर यह काम किया गया था. वह पार्टी के जो नेता है वह असंतुष्ट हैं और सक्रियता से काम नहीं कर रहे हैं और तमाम जो फ्रंटल संगठन के नेता थे उनके दूसरे दलों में भी जाने की बात हो रही थी. अखिलेश यादव इन फ्रंटल संगठनों के नेताओं से खुश नहीं थे, जिसके बाद पूरी कार्यकारिणी बंद कर दी गई थी. जब चुनाव नजदीक है और उनके पास बहुत कम समय बचा है तो संगठनों में पार्टी नेताओं को नई जिम्मेदारी दी जा रही है.