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लोकसभा उपचुनाव में दांव पर लगी सपा की साख

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Published : Jun 23, 2022, 7:57 PM IST

रामपुर और आजमगढ़ में उप लोकसभा चुनाव संपन्न हो गए हैं. इन दोनों ही सीटों पर सपा की साख दांव पर लगी है. इस बार सपा को कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है. पेश है खास रिपोर्ट.

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लोकसभा उप चुनाव में दांव पर लगी है सपा की साख

लखनऊ : उत्तर प्रदेश की आजमगढ़ और रामपुर लोकसभा सीटों पर चुनाव संपन्न हो गए. ये दोनों सीटें समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव और पूर्व मंत्री और वरिष्ठ सपा नेता मोहम्मद आजम खान के इस्तीफे के कारण रिक्त हुई थीं. अखिलेश और आजम ने हाल में ही विधानसभा चुनाव लड़ा और जीतकर भी आए थे. जिन दोनों सीटों पर उपचुनाव हो रहा है, वह दोनों ही सीटें सपा के कब्जे वाली हैं. ऐसे में भाजपा या किसी अन्य दल के पास खोने को कुछ भी नहीं है. दोनों ही सीटों पर सपा के लिए साख की लड़ाई है.


सपा के वरिष्ठ नेता मो. आजम खान के जेल से छूटने के बाद उनके बयानों से पार्टी के प्रति उनकी नाराजगी की चर्चा लगातार हो रही है. कई मुस्लिम संगठन और बुद्धिजीवी भी कह चुके हैं कि उनके समुदाय ने सपा का पुरजोर समर्थन किया, लेकिन इसके बदले उन्हें कुछ भी नहीं मिला. विधान सभा चुनाव के पहले से ही सपा पर यह आरोप लगते रहे हैं कि वह मुस्लिमों से जुड़े मसलों या मुसलमानों के साथ हुई नाइंसाफी के खिलाफ कभी खुलकर सामने नहीं आए. कानपुर और प्रयागराज की हालिया घटनाओं के बाद हुई प्रशासनिक कार्रवाई ने मुस्लिम समुदाय में सपा के खिलाफ और गुस्सा बढ़ा है. दोनों स्थानों पर एक पक्षीय कार्रवाई किए जाने के विषय भी सामने आए. इन सभी मसलों पर समाजवादी पार्टी बयान तो जारी करती रही, लेकिन कभी खुलकर सामने नहीं आई. ऐसे में यह कहा जाने लगा है कि मुसलमान अब अपने लिए नया ठौर तलाश रहे हैं. स्वाभाविक है कि इन घटनाओं के बाद यह पहला चुनाव हो रहा है इसलिए सभी की नजर रामपुर और आजमगढ़ सीटों के चुनावों पर लगी हुई हैं.


रामपुर संसदीय सीट पर सपा ही नहीं आजम खान की साख भी दांव पर लगी है. इस सीट पर कुल सोलह लाख मतदाताओं में पचास फीसद से ज्यादा मुस्लिम वोटर हैं. स्वाभाविक है कि सपा को इसका लाभ मिलता रहा है. हालांकि इस सीट पर भारतीय जनता पार्टी भी तीन बार चुनाव जीत चुकी है. 2014 में यहां से भाजपा के डॉ नेपाल सिंह चुनाव जीते थे. 1991 और 1998 में भी यहां से भाजपा के उम्मीदवार चुनाव जीतकर आए थे. भाजपा इस बार भी उम्मीद लगाए है. हालांकि कांग्रेस और बसपा के चुनाव न लड़ने से मुकाबला सीधा सपा और भाजपा में हो गया है.

वहीं, यदि बात आजमगढ़ सीट की करें, तो इस सीट पर भाजपा-सपा और बसपा में त्रिकोणीय मुकाबला है. 2009 में इस सीट से भाजपा के रमाकांत यादव ने जीत हासिल की थी. इसके बाद 2014 और 2019 में इस सीट से मुलायम सिंह यादव और अखिलेश यादव जीतकर आए थे. सपा ने इस बार धर्मेंद्र यादव को अपना प्रत्याशी बनाया है. इस बात को लेकर भी लोगों में नाराजगी है कि पार्टी बार-बार स्थानीय प्रत्याशी देने के बजाय बाहरी उम्मीदवार चुनाव में उतारती है. वहीं, बसपा से शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली चुनाव मैदान में हैं, जबकि भाजपा ने एक बार फिर भोजपुरी फिल्म अभिनेता निरहुआ को टिकट दिया है. निरहुआ यादव समाज से आते हैं, जबकि गुड्डू जमाली मुस्लिम हैं. ऐसे में इस सीट पर मुस्लिम-यादव समीकरण चले यह ही मुश्किल दिखाई दे रहा है. यहां मुख्य मुकाबले में बसपा और भाजपा बताए जा रहे हैं. इन दोनों लोकसभा सीटों पर यही देखने वाली बात होगी. यदि मुस्लिम वोट सपा से खिसका तो निश्चित रूप से पार्टी के लिए चुनौती वाली बात होगी.

राजनीतिक विश्लेषक मनीष हिंदवी कहते हैं कि 'दोनों ही सीटों पर मुसलमान एक महत्वपूर्ण भूमिका में हैं, क्योंकि दोनों ही सीटों पर इस समुदाय की संख्या ठीक-ठाक है. मुसलमान विधानसभा चुनाव के बाद सपा से नाराज हैं, क्योंकि इस समुदाय को लगता है कि उसने बढ़कर पार्टी के लिए योगदान किया है. हालांकि राज्यसभा और विधान परिषद चुनावों में पार्टी ने इसे बैलेंस करने की कोशिश की है. फिर भी कहीं न कहीं मुसलमानों में निराशा सी है. वह खुद को ठगा सा महसूस कर रहे हैं. वह समझ नहीं पा रहे हैं कि आखिर जाएं कहां? यदि आजमगढ़ से गुड्डू जमाली जीतते हैं, तो सपा को नए सिरे से अपने बारे में विचार करना होगा. गुड्डू जमाली के जीतने से बसपा का कोई कल्याण नहीं होने वाला, क्योंकि वह अपने क्षेत्र में अपना खुद का अच्छा प्रभाव रखते हैं. ऐसे में यह साफ है कि यदि सपा का वोट खिसका तो अखिलेश यादव को नए सिरे से पार्टी के लिए रणनीति बनानी होगा.' 26 जून को लोकसभा के उप चुनावों के नतीजे सामने आने के बाद बहुत कुछ तय होने वाला है.

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