लखनऊः कृषि कानूनों के खिलाफ बीते सात महीने से दिल्ली के बार्डर पर धरना दे रहे भाकियू (Bhartiya Kisan Union) के प्रवक्ता राकेश टिकैत ने प्रदेश की सभी किसान इकाइयों को भंग कर दिया है. किसान आंदोलन में सहयोग न देने पर प्रदेश, मंडल, जिला, तहसील व ब्लॉक की इकाइयों के सभी पदाधिकारियों को पद से हटा दिया है. हालांकि भारतीय किसान यूनियन ने उत्तर प्रदेश में प्रदेश अध्यक्ष राजबीर सिंह जादौन अपने पद पर बने हुए हैं.
बता दें कि राकेश टिकैत ने जहां मानसून सत्र में ट्रैक्टर से सदन घेरने की बात की बात कही है, वहीं इसके पहले पांच सितंबर को मुजफ्फरनगर में किसान मोर्चा की पंचायत का ऐलान किया है. इसमें यूपी चुनाव में भागेदारी किए जाने या फिर किस तरह से इसमें भाग लिया जाए, इस पर निर्णय होगा. भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता ने बताया कि मुजफ्फरनगर की महापंचायत में यूपी मिशन की शुरुआत होगी.
भाकियू के मीडिया प्रभारी धर्मेन्द्र मलिक ने भाकियू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में लिए गए निर्णय की जानकारी दी. राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत की ओर से जानकारी देते हुए धर्मेंन्द्र मलिक ने बताया कि प्रदेश अध्यक्ष राजबीर सिंह जादौन को छोड़कर भाकियू की उत्तर प्रदेश की प्रदेश कार्यकारिणी, सभी जिलों की जिला इकाईयों, सभी मंडलों संगठनात्मक इकाइयों को भंग कर दिया गया है। सभी प्रकोष्ठों के प्रदेश, जिला व मंडल अध्यक्ष को भी पदमुक्त कर दिया गया है.
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उन्होंने कहा कि संगठन की समीक्षा के आधार पर जल्द ही दोबारा सभी कमेटियों का गठन किया जाएगा. राकेश टिकैत ने इस बात के संकेत भी दिए हैं कि किसान संगठन चुनाव में भी भाजपा को चुनौती दे सकते हैं, हालांकि कई बार मीडिया के पूछे जाने पर राकेश टिकैत ने इसका खंडन किया है. अब इसपर निर्णय मुजफ्फरनगर को पांच सितंबर में होने वाली प्रस्तावित महापंचायत में ही किया जाएगा.
बता दें कि केंद्र सरकार के तीन कृषि कानूनों के विरोध में देश की राजधानी दिल्ली का घेराव कर रहे किसानों के प्रदर्शन को लगभग 7 महीने से ज्यादा का वक्त हो चुका है. केंद्र सरकार के कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने बीते साल 26 नवंबर से 'दिल्ली चलो मार्च' के तहत अपना प्रदर्शन शुरू किया था. दिल्ली का घेराव कर रहे इन किसानों के प्रदर्शन को बीती 26 जून के दिन सात महीने हो चुके हैं. ये किसान दिल्ली के टीकरी, सिंघू और गाजीपुर बॉर्डर पर डटे हुए हैं.
शुरुआत में इस प्रदर्शन में सबसे ज्यादा पंजाब के किसान शामिल हुए, लेकिन धीरे-धीरे इसमें यूपी से लेकर उत्तराखंड और हरियाणा समेत कुछ अन्य राज्यों के किसान भी शामिल हो गए. किसानों के इस आंदोलन को शुरूआत में भारी समर्थन भी मिला. देश के अलावा दुनिया के अन्य देशों में रह रहे भारतीय भी इन किसानों के समर्थन में उतरे. सोशल मीडिया से लेकर इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया तक में किसानों का हल्ला बोल सुर्खियां बटोरता रहा.