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कोयले की कमी से ठप हो रही उत्पादन इकाइयां, बिजली कटौती से जूझ रहे ग्रामीण इलाके

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Published : Oct 11, 2021, 11:04 PM IST

कोयले की कमी से ठप हो रही उत्पादन इकाइयां
कोयले की कमी से ठप हो रही उत्पादन इकाइयां

कोयले के संकट का असर राज्य की बिजली उत्पादन इकाइयों पर पड़ने लगा है. कोयले से चलने वाली अन्य उत्पादन इकाइयां भी कम क्षमता पर चल रही हैं. कोयले की कमी से कई उत्पादन इकाइयां ठप हो रही हैं. वहीं बिजली कटौती से ग्रामीण इलाके जूझ रहे हैं.

लखनऊ : कोयले की कमी से उत्तर प्रदेश सहित पूरा देश बिजली संकट से जूझ रहा है. कई उत्पादन इकाइयां बंद करनी पड़ गई हैं, तो कई में पहले की तुलना में काफी कम बिजली उत्पादन हो पा रहा है. इसकी वजह से यूपी में गांव की तो छोड़िए, शहर में भी बिजली कटौती शुरू हो गई है. गांव में लगभग सात से आठ घंटे बिजली कटौती की जा रही है तो शहर के तमाम इलाके भी बिजली संकट से जूझ रहे हैं.


कोयले की कमी का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने बैठक कर बिजली संकट दूर करने के लिए चिंता जताई है. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी इससे अवगत कराया गया है. उत्तर प्रदेश में लगभग 4500 मेगावाट के उत्पादन गृह बंद है, या कम क्षमता पर मशीनें चल रही हैं. ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि कोयले की कमी की वजह से बिजली की कटौती से ग्रामीण इलाके बुरी तरह जूझ रहे हैं.


उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने पूरे देश के कोयला संकट पर एक विस्तृत रिपोर्ट सौंपते हुए कहा कि पूरे देश में कोल इंडिया का पांच वर्षों का कोल डिस्पैच देखा जाए तो वह 2015-16 में 535 मिलियन टन और वर्ष 2020-21 में लगभग 574 मिलियन टन रहा है. सबसे जायदा वर्ष 2018-19 में कोल इंडिया ने लगभग 608 मिलियन टन कोयला खदानों से निकाल कर बेचा है. अगर सबसे अधिकतम खपत को आधार मानकर देखा जाय तो 50 मिलयन टन कोयला देश के तापीय उत्पादन इकाईयों में हर माह खपत होता है. कुछ जरुरत विदेशों से आने वाले कोयले से पूरी होती है.

वतर्मान में कोयला मंत्री का कहना है कि बिजली आपूर्ति बाधित होने का बिल्कुल भी खतरा नहीं है. कोल इंडिया लिमिटेड के पास 24 दिनों की कोयले की मांग के बराबर 43 मिलियन टन का पर्याप्त कोयले का स्टॉक है. ऐसे में स्टॉक होने से काम नहीं चलने वाला जबतक कोयला उत्पादन गृहों तक न पहुंच जाए. एक सबसे बड़ा सवाल यह उठना लाजमी है कि जितना कोयला स्टॉक में उपलब्ध है, उसका आधा कोयला तो देश में जो उत्पादन गृह कम कपैसिटी पर चल रहे और बंद है उन्हीं की जरुरत भर का होगा. ऐसे में केंद्र सरकार को कोयले का भण्डारण बढ़ाकर कोयले की किल्लत को दूर करना होगा. दूसरा सबसे बड़ा मामला यह है कि बिजली उत्पादन गृहों को नियमत: 15 दिन और 30 दिन का कोयला स्टॉक में होना चाहिए. आज पूरे देश में तापीय उत्पादन गृहों की जो पोजीशन है उनके पास औसत पांच दिन से जायदा कोयला स्टॉक में नहीं है. इसका मतलब देश में कोयले की किल्लत तो है और अगर किल्लत नहीं है तो ग्रामीण क्षेत्रों में कोयले की वजह से कटौती क्यों हो रही है ?


राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद के अध्यक्ष व राज्य सलाहकार समिति के सदस्य अवधेश कुमार वर्मा ने प्रदेश के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा से मुलाकात कर एक जनहित प्रस्ताव सौंपा. कोयला संकट पर एक विस्तृत रिपोर्ट पेश की. कहा कि पूरे देश में कोयला संकट है, ऐसे में उससे निपटने के लिए कुछ आवश्यक कदम तत्काल सरकार को उठाना चाहिए. इस संकट में उत्तर प्रदेश सरकार को 400 मेगावाट हाईड्रॉ की बिजली थोड़ा सा प्रयास करने से मिल सकती है. अगर इससे सम्बंधित एक याचिका जो विद्युत नियामक आयोग में लंबित है उस पर तत्काल निर्णय कराया जाए.

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उन्होंने ऊर्जा मंत्री से मांग की है कि प्रदेश सरकार को इस संकट से निपटने के लिए एक आर्थिक पैकेज का एलान भी करना चाहिए, जिससे पावर कार्पोरेशन कोयले और बिजली की खरीद से पीछे न हटे. ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने कहा बिजली संकट न होने पाये इससे निपटने के लिए सरकार हर जरूरी कदम उठा रही है. सभी उच्चाधिकारियों को सभी उत्पादन गृहों पर नजर रखने को कहा गया है, जिससे सभी जगह कोयले की आपूर्ति सुनिक्षित की जा सके और जिन भी माध्यमों से बिजली खरीद आवश्यक होगी की जाएगी, ताकि उपभोक्ताओं को कोई बिजली कटौती की मार न झेलनी पड़े.

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