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अनाथ बच्चों को सहारा देकर अंतरराष्ट्रीय फलक पर चमकीं पौलोमी शुक्ला

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Published : Feb 4, 2021, 1:14 AM IST

poulomi pavini shukla

उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ की रहने वाली पौलोमी पाविनी शुक्ला को फोर्ब्स पत्रिका ने 'इंडिया 30 अंडर 30' लिस्ट में शामिल किया है. पौलिमी पेशे से वकील हैं और अनाथ बच्चों के लिए काम करती हैं. अनाथ बच्चों के ऊपर उन्होंने एक किताब भी लिखी है. ईटीवी भारत से खास बातचीत में पौलोमी शुक्ला ने अपने सफर के बारे में विस्तार से जानकारी दी.

लखनऊ :राजधानी लखनऊ की पौलोमी पाविनी शुक्ला को विश्व विख्यात अंतरराष्ट्रीय पत्रिका फोर्ब्स ने इंडिया 30 अंडर 30 लिस्ट में शामिल करते हुए बड़ा सम्मान दिया है. यह लखनऊ ही नहीं, उत्तर प्रदेश वासियों के लिए एक बड़े गर्व की बात है. सीनियर आईएएस अधिकारी आराधना शुक्ला की बेटी व युवा आईएएस अधिकारी प्रशांत शर्मा की पत्नी पौलोमी ने पिछले कुछ वर्षों से अनाथ बच्चों को शैक्षिक रूप से सशक्त बनाने को लेकर एक बड़ी मुहिम शुरू की है. उनकी इस मुहिम को अब बड़ा इनाम भी मिला है. अंतरराष्ट्रीय पत्रिका ने अंडर-30 लिस्ट में उनका नाम शामिल करते हुए एक बड़ा सम्मान दिया है.

वीडियो रिपोर्ट...

ईटीवी भारत से बातचीत करते हुए पौलोमी शुक्ला ने कहा कि यह काम वह पिछले कई वर्षों से कर रही हैं. जहां भी उन्हें अनाथ बच्चे मिलते हैं तो वह उनको पढ़ाने की चिंता करती हैं और इसके लिए हर स्तर पर प्रयास करती हैं. अब उन्हें यह जो सम्मान मिला है, उससे उन्हें और अधिक काम करने की प्रेरणा भी मिली है.

पांच वर्षों से अनाथ बच्चों को कर रहीं शिक्षित
पौलोमी शुक्ला कहती हैं कि करीब 5 साल पहले से अनाथ बच्चों को उनका अधिकार दिलाने के लिए काम कर रही हूं. मेरे पहले के काम को देखते हुए मेरे पुराने स्कूल सीएमएस के संस्थापक जगदीश गांधी ने फोर्ब्स पत्रिका में मुझे नॉमिनेट किया था. मेरे काम को देखने के बाद मुझे यह सम्मान मिला है. पत्रिका ने अपने अंडर-30 लिस्ट में मुझे शामिल कर सम्मानित किया है. इसके लिए मैं पत्रिका की आभारी हूं. इसलिए नहीं कि सिर्फ मेरा नाम इस पत्रिका में शामिल हुआ है बल्कि इसलिए कि मेरा नाम आने से इन अनाथ बच्चों की एक कहानी और आगे बढ़ेगी. लोग सुनेंगे, जानेंगे, जिससे और भी लोग इससे प्रेरित होंगे. इससे उन अनाथ बच्चों को और अधिक शैक्षिक रूप से सशक्त किया जा सकेगा.

पौलोमी पाविनी शुक्ला.

'मां से मिली प्रेरणा'
गरीब अनाथ बच्चों को शैक्षिक रूप से सशक्त बनाने की प्रेरणा कैसे मिली, इस सवाल पर पौलोमी शुक्ला बताती हैं कि मैं एक अधिवक्ता हूं, लेकिन इसकी प्रेरणा मुझे मेरी मां से मिली. मेरी आईएएस मां जब जिला अधिकारी के रूप में हरिद्वार में तैनात थीं तो मुझे वह एक अनाथालय पर लेकर गईं थी. वहीं इन बच्चों के साथ मेरी दोस्ती हो गई थी. इसके बाद से हर साल मेरा जन्मदिन मेरी मां उनके साथ ही सेलिब्रेट करती थीं. फिर वहां के बच्चे मेरे दोस्त बन गए थे. हम लोग साथ-साथ बड़े हुए. मैं भी लगभग उसी उम्र की थी और वह लोग भी उसी उम्र के थे. जब मैं कॉलेज जाने लगी तो उनमें से एक लड़की ने मुझसे कहा कि मेरा भी मन कॉलेज जाने का है. फिर इस बारे में पता किया तो मुझे हैरानी हुई कि अनाथ बच्चों को शैक्षिक रूप से सशक्त करने को लेकर कोई योजना ही नहीं है. तो फिर मैंने यह मुहिम शुरू की और अनाथ बच्चों को शैक्षिक रूप से सशक्त करने का काम करना शुरू कर दिया.

पौलोमी शुक्ला कहती हैं कि ऐसे अनाथ बच्चों के लिए किसी प्रकार की स्कॉलरशिप आदि दिए जाने का भी प्रावधान नहीं था. मुझे लगा कि यह सबसे कमजोर लोग हैं, जिनके पास कोई नहीं है. इनके लिए अगर हम कुछ नहीं करेंगे, इसके लिए सरकार कोई प्रयास नहीं करेगी तो फिर आखिर कौन इनकी मदद करेगा? तब से मेरे मन में विचार आया और मैंने फिर इन बच्चों को शैक्षिक रूप से सशक्त बनाने के लिए एक अभियान चलाना शुरू कर दिया. इसके बाद हमने इस विषय पर एक किताब भी लिखी और मैंने सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका भी दायर की थी.

पौलोमी पाविनी शुक्ला.

'कई राज्यों में जाकर प्रयास शुरू किया तो मिलने लगे अधिकार'
पौलिमी पाविनी शुक्ला ने बताया कि इसके साथ ही मैं कई राज्यों में जाकर बच्चों को शैक्षिक रूप से सशक्त बनाने को लेकर लगातार प्रयास कर रही हूं और उन्हें शिक्षा दिलाने के लिए लगातार सरकारों के स्तर पर बात कर रही हूं. इससे वह लोग सशक्त भी हो रहे हैं. हमारे इस छोटे से प्रयास से तमाम जगहों पर काफी बदलाव भी हुए हैं. भारत में यह आश्चर्यजनक बात है कि 2 करोड़ अनाथ बच्चे हैं और इनमें से सिर्फ एक लाख बच्चे ही अनाथालय में हैं.

केंद्र सरकार ने अनाथ बच्चों के लिए बढ़ाया बजट
उन्होंने कहा कि जब से हमने यह मुहिम शुरू की है, तब से धीरे-धीरे करके इन बच्चों को शैक्षिक स्तर बेहतर किया जा रहा है. इन्हें इनके अधिकार भी मिल रहे हैं. दिल्ली में शिक्षा का अधिकार अधिनियम के अंतर्गत अनाथ बच्चों को शिक्षा देने का काम शुरू किया गया है. हमारे ही प्रयास से दिल्ली और सिक्किम में यह काम शुरू हुआ है. अभी उत्तराखंड में भी 5% तक इन अनाथ बच्चों को पढ़ाई और नौकरी में आरक्षण दिया गया है. इसके साथ ही तमिलनाडु ने भी ग्रुप डी नौकरियों में भी 10 फीसद आरक्षण दिया है. तेलंगाना में भी इन अनाथ बच्चों को ओबीसी घोषित किया गया है. हमारी पीआईएल के बाद केंद्र सरकार का बजट भी अनाथ बच्चों का दोगुना हो गया है. महाराष्ट्र और गोवा सरकार ने भी अनाथ बच्चों के लिए तमाम तरह के काम किए हैं.

पौलोमी पाविनी शुक्ला.

लखनऊ के अनाथालय में दिए स्मार्ट टीवी
इसके अलावा लखनऊ में कोरोना वायरस के संकट काल के समय भी अनाथ बच्चों को शैक्षिक रूप से सशक्त करने के उद्देश्य से ही 27 अनाथालय में स्मार्ट टीवी दान दिए थे, जिससे बच्चों की पढ़ाई न रुके. इसके साथ ही कई कंपनियों ने 120 बच्चों को गोद लिया है, जिससे इन बच्चों को न सिर्फ शैक्षिक रूप से सशक्त किया जाए, बल्कि इन्हें प्रशिक्षित भी किया जाए.

'उत्तराखंड सीएम से बात हुई तो अनाथ बच्चों को मिला आरक्षण'
इसके अलावा पौलोमी शुक्ला कहती है कि उत्तराखंड सरकार ने भी अनाथ बच्चों के लिए व्यवस्था की है. उत्तराखंड के मुख्यमंत्री ने अनाथ बच्चों के लिए काफी काम भी किया है. उन्होंने अनाथ बच्चों के लिए 5 फीसद आरक्षण भी दिया है. इसके साथ ही उन्होंने इन बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार अधिनियम में व्यवस्था सुनिश्चित कराने की बात कही है. उन्होंने उत्तराखंड के सभी जिलों में अनाथालय की व्यवस्था सुनिश्चित करने के निर्देश दिए हैं. इसके साथ ही छत्तीसगढ़ सरकार ने भी हमारी इस मुहिम को बहुत सपोर्ट किया.

पौलोमी शुक्ला.

लखनऊ के सीएमएस स्कूल और अमेरिका में हुई पढ़ाई
राजधानी लखनऊ के सीएमएस स्कूल से अपनी शुरुआती पढ़ाई पूरी करने के बाद पौलोमी अमेरिका के एक निजी स्कूल में इकोनॉमिक्स की पढ़ाई पूरी की. इसके बाद वह वापस भारत आईं और फिर यहां पर कानून की पढ़ाई की. इसके साथ ही मैंने यहीं से इकोनॉमिक्स में मास्टर डिग्री हासिल की है. मेरा दिल सिर्फ अनाथ बच्चों के लिए ही धड़कता है.

अनाथ बच्चों के लिए शिक्षा के अधिकार अधिनियम में हो शिक्षा की व्यवस्था
पौलोमी शुक्ला कहती हैं कि हमारी कोशिश है कि सभी राज्यों में शिक्षा के अधिकार अधिनियम के अंतर्गत इन अनाथ बच्चों को शिक्षा देने की व्यवस्था सुनिश्चित की जाए. ताकि बच्चों को कम से कम बेसिक शिक्षा तो मिल जाए. इसके बाद हम चाहते हैं कि कोई भी सरकारी योजना है या फिर कोई भी स्कॉलरशिप, इसमें अगर आप किसी भी कमजोर वर्ग के के बच्चे को देख रहे हैं तो फिर अनाथ बच्चों को भी इसमें शामिल किया जाना चाहिए. क्योंकि इन अनाथ बच्चों से कमजोर कोई और दूसरा बच्चा नहीं है. इसके अलावा हम यह भी चाहते हैं कि बच्चों को आरक्षण मिले, क्योंकि इन बच्चों का तो कोई नहीं है. ऐसे में इन्हें आरक्षण मिलना बहुत ही जरूरी है. इसके साथ ही सभी जिलों में अनाथालय की व्यवस्था सुनिश्चित करने को लेकर हमने प्रयास शुरू किए हैं. इसके साथ ही हमारा प्रयास है कि भारत एक ऐसा देश है, जहां पर अनाथ बच्चों की गणना की कोई व्यवस्था नहीं है. जब इनकी गणना की व्यवस्था सुरक्षित हो जाएगी तो फिर तमाम तरह की सुख सुविधाएं भी मिलना शुरू हो सकेंगी.

पौलिमी पाविनी शुक्ला.
समाज के हर व्यक्ति को करनी होगी अनाथ बच्चों की चिंता: प्रशांत शर्मा
उत्तर प्रदेश शासन में विशेष सचिव के पद पर तैनात पौलोमी के पति प्रशांत शर्मा कहते हैं कि अनाथ बच्चों की इस मुहिम में मेरी पत्नी पिछले 5 वर्षों से निरंतर प्रयासरत है और यह इनकी खुद्दारी है. इसमें उन्हें किसी का कोई सहयोग नहीं मिला है. हमेशा से उनकी यह इच्छा रही है कि खुद यह काम करें और अनाथ बच्चों को शैक्षिक रूप से सशक्त करा सकें. उन्होंने 2015 में एक किताब भी लिखी है, जिसका टाइटल 'भारत के अनाथ, समाज के सर्वाधिक निशक्त' है. जिनके पास मां-बाप नहीं हैं तो उनके पास कोई नहीं है. हर किसी को इस मुहिम को आगे बढ़ाने में अपना योगदान देना चाहिए. उन्हें भी अनाथ बच्चों की चिंता करनी चाहिए.
सबके प्रयास से समाज की मुख्यधारा में शामिल होंगे अनाथ बच्चे

आईएएस प्रशांत शर्मा कहते हैं कि हम यही उम्मीद करते हैं कि यह मुहिम अधिक से अधिक लोगों के सामने आए. जितने लोगों के सामने यह विषय आएगा, उतने ही लोग इन अनाथ बच्चों की मदद के लिए आगे आएंगे. भारत में 120 करोड़ लोग हैं. दो-ढाई करोड़ लोग अनाथ हैं. बहुत छोटी सी समस्या है. हम सब चाहें तो इस समस्या को पूरी तरह से समाप्त करके अनाथ बच्चों को समाज की मुख्यधारा में जल्दी लाया जा सकता है. हमारा प्रयास यही है कि सारे बिजनेस हाउसेस, सारे स्कूल-कॉलेज अपने आसपास के अनाथालय से जुड़ जाएं और इन बच्चों के लिए शिक्षा दिलाने का दिल से प्रयास करें. हर किसी के छोटे से छोटे प्रयास से बदलाव आएगा.

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