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EXCLUSIVE: नक्सलियों ने 'जिंदा लाश' बना दिया और सरकार है कि इन्हें 'जीने' नहीं दे रही

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Published : Oct 12, 2019, 11:05 PM IST

नक्सलियों ने जिन लोगों के घरों को उजाड़ दिया और अपनों को छीन लिया, वे आज अपनी सुरक्षा की मांग और सरकारी नौकरी के लिए दफ्तर के चक्कर काट रहे हैं.

नहीं दे रहा सरकार इन परिवारों पर ध्यान.

राजनांदगांव: उदास चेहरा, इंतजार में डूबी आंखें और इंसाफ की उम्मीद. नक्सलियों के सताए आदिवासी परिवारों की किस्मत में शायद यही लिख दिया गया है. 'लाल आतंक' का दामन छोड़कर समाज की मुख्यधारा से जुड़ने वाले नक्सलियों को तो सरकारी योजनाओं के हिसाब से सुविधाएं मिल जाती हैं, लेकिन नक्सलियों के सताए परिवारों को आश्वासन और आंसू के सिवाय कुछ हाथ नहीं आता है. नक्सल हिंसा से प्रभावित परिवार के सदस्य आज भी सरकारी नौकरी और सुरक्षा के लिए सरकारी दफ्तरों में चक्कर काटने को मजबूर हैं.

नक्सल हिंसा से प्रभावित लोगों का कहना है कि 'राज्य सरकार नक्सलियों को आत्मसमर्पण करने पर तो सरकार सुविधा मुहैया करा रही है, इन नक्सलियों ने जिनके परिवार का सब कुछ छीन लिया, रिश्तेदारों को मौत के घाट उतार दिया और जिनकी पूरी जिंदगी बर्बाद कर दी उनकी मदद के लिए पल भर भी नहीं सोचा.'

नहीं दे रहा सरकार इन परिवारों पर ध्यान.

किसी ने पिता को खोया तो किसी ने अपना बेटा. इसके बाद अब परिवार के पास कोई सहारा नहीं बचा है. उन परिवारों की ओर राज्य शासन ध्यान नहीं दे रही है, जबकि राज्य शासन को नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्य को सरकारी नौकरी दी जानी थी.

कलेक्टर दर पर नौकरी में रखा गया
बता दें कि नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों को चतुर्थ वर्ग श्रेणी में सरकारी नौकरी दी जानी थी, लेकिन राज्य शासन ने प्रभावित परिवार के सदस्यों को केवल कलेक्टर दर पर ही नौकरी में रखा. वहीं इसके बाद आदिवासी छात्रावासों में आकस्मिक निधि के तहत उन्हें स्थाई नौकरी दी है. इस बात को लेकर के नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों में काफी आक्रोश है.

मुआवजा राशि में भी बंदरबांट
नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों को जो मुआवजा राशि दी जानी चाहिए थी, वह भी अब तक नहीं दी गई है. वहीं कुछ सदस्यों को मुआवजा के तौर पर जो राशि मिलनी थी, वह भी उन्हें पूरी नहीं मिली है. किसी सदस्य को एक लाख रुपये, तो किसी को दो लाख रुपये दिए गए हैं.

  • राजनांदगांव जिले के 14 नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के लोगों ने हाईकोर्ट में राज्य सरकार की पुनर्वास नीति के सही क्रियान्वयन नहीं होने को लेकर याचिका दायर की है. हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार लिया है और 14 अक्टूबर के बाद इस मामले में लगातार सुनवाई की जाएगी.
  • एक ओर तो सरकारें सरेंडर करने वाले नक्सलियों को तो तमाम सुविधाएं देती हैं. वहीं ऐसे परिवारों को दर-दर की ठोकरें खाने के लिए छोड़ दिया जाता, जिन्होंने नक्सल हिंसा में अपना सब कुछ गंवा दिया. अब देखना यह होगा कि कब सिस्टम की नींद टूटेगी और कब लाल आतंक के कहर में अपनी खुशियां जला चुके इन परिवारों को सरकारी मरहम नसीब होगा.
  • इस मामले में एएसपी यूबीएस चौहान का का कहना है कि नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों कि जिला प्रशासन के समक्ष गुहार लगाने की जानकारी मिली है. हालांकि अब तक पुलिस विभाग के पास ऐसी कोई जानकारी नहीं आई है. उन्होंने कहा कि नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों का आवेदन अगर विभाग के पास आता है तो उसका तुरंत निराकरण किया जाएगा.
Intro:राजनांदगांव. नक्सलवाद का दामन छोड़कर समाज की मुख्यधारा में जोड़ने वाले नक्सलियों को यूं तो राज्य सरकार सारी सुविधाएं दे रही है राज्य शासन की पुनर्वास नीति के तहत आप को समर्पित नक्सलियों को सरकारी नौकरी और उन पर रखी गई इनाम की राशि भी दी जा रही है ताकि उनका जीवन बेहतर हो सके लेकिन जिन नक्सलियों ने वनांचल के आदिवासी परिवारों का सब कुछ छीन लिया उनके पुनर्वास को लेकर राज्य शासन कतई गंभीर नहीं है. नक्सल हिंसा में प्रभावित परिवार के सदस्य आज भी सरकारी नौकरी और परिवार की सुरक्षा को लेकर तरस रहे हैं परिवार के सदस्य सरकारी नौकरी के लिए सरकारी दफ्तरों में चक्कर काटकर चप्पले घिस रहे हैं. इसके बावजूद नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों को अब तक न्याय नहीं मिल पाया है.




Body: नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों का कहना है कि राज्य सरकार नक्सलियों को आत्मसमर्पण करने पर सारी सुविधा मुहैया करा रही है लेकिन जिन नक्सलियों ने उनके परिवार का सब कुछ छीन लिया उनके परिवार के सदस्यों को मौत के घाट उतार दिया और जिनसे उनकी पूरी जिंदगी बर्बाद हो गई. किसी ने पिता को या तो किसी ने अपना बेटा और इसके बाद भी अब परिवार के पास कोई सहारा नहीं बचा है उन परिवारों की ओर राज्य शासन ध्यान नहीं दे रही है जबकि राज्य शासन को नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्य को सरकारी नौकरी दी जानी थी.
कलेक्टर दर पर रखा गया
नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों को चतुर्थ वर्ग श्रेणी में सरकारी नौकरी दी जानी थी लेकिन राज्य शासन ने प्रभावित परिवार के सदस्यों को केवल कलेक्टर दर पर ही नौकरी में रखा वहीं इसके बाद आदिवासी छात्रावासों में आकस्मिक निधि के तहत उनकी वेतन व्यवस्था करते हुए उन्हें स्थाई नौकरी दी है इस बात को लेकर के नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों में काफी आक्रोश है
मुआवजा राशि में भी बंदरबांट
नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों को जो मुआवजा राशि दी जानी चाहिए थी वह भी अब तक नहीं मिल पाई है वहीं कुछ सदस्यों को मुआवजा राशि की सही रकम नहीं मिल पाई है किसी सदस्य को एक लाख तो किसी को दो लाख तक की राशि दे दी गई है जबकि उन्हें निर्धारित रकम से कम राशि दी गई है. सदस्यों की माने तो मुआवजा राशि में भी जमकर बंदरबांट किया गया है.
हाईकोर्ट में दायर की याचिका
राजनांदगांव जिले के 14 नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के लोगों ने हाई कोर्ट में राज्य शासन की पुनर्वास नीति के सही क्रियान्वयन नहीं होने को लेकर याचिका दायर की है हाई कोर्ट ने उक्त याचिका को स्वीकार लिया है 14 अक्टूबर के बाद इस मामले में लगातार सुनवाई की जाएगी.



Conclusion:निराकरण किया जाएगा
इस मामले में एएसपी यूबीएस चौहान का का कहना है कि नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों कि जिला प्रशासन के समक्ष गुहार लगाने की जानकारी मिली है हालांकि अब तक पुलिस विभाग के पास ऐसी कोई जानकारी नहीं आई है लेकिन नक्सल हिंसा प्रभावित परिवार के सदस्यों का आवेदन अगर विभाग के पास आता है तो उसका तुरंत निराकरण किया जाएगा.
बाइट ए एस पी यू बी एस चौहान

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