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Heritage of Lucknow : ऐतिहासिक कैसरबाग दरवाजे से नदारद हो गईं चांदी की मछलियां, पुरातत्व विभाग व एएसआई के पास रिकॉर्ड नहीं

By ETV Bharat Uttar Pradesh Team

Published : Sep 27, 2023, 1:57 PM IST

राजधानी लखनऊ के कैसरबाग में दो गेट हैं, जिन्हें लाखी (लक्खी) दरवाजा कहते हैं. इन दोनों के दरवाजों का अलग ही इतिहास है. जानकारी बताते हैं कि दोनों दरवाजों पर चांदी की मछलियां लगी हुई थीं, लेकिन मौजूदा समय मछलियां नहीं है. इस बारे में पुरातत्व और जिम्मेदारी अधिकारियों के पास कोई सटीक जवाब नहीं है.

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ऐतिहासिक कैसरबाग दरवाजे से नदारद हो गईं चांदी की मछलियां. देखें खबर.

लखनऊ : लखनऊ में तमाम ऐतिहासिक धरोहर हैं और इन धरोहरों का ताल्लुक कहीं न कहीं स्वतंत्रता संग्राम की कहानी से जुड़ा हुआ है. बहुत सी धरोहरें ध्वस्त हो गई हैं. इन्हें संरक्षित करने का काम राज्य पुरातत्व विभाग और केन्द्र की भारतीय पुरातत्व विभाग करता है. बहरहाल कई धरोहरों के मामलों में राज्य पुरातत्व विभाग और केंद्रीय भारतीय पुरातत्व विभाग की अनदेखी सामने आई है. ऐसा ही कुछ कैसरबाग क्षेत्र के लाखी (लक्खी) दरवाजों के मामले में हुआ है. आइए जानते हैं पूरी बात.

ऐतिहासिक कैसरबाग दरवाजे से नदारद हो गईं चांदी की मछलियां.
लखनऊ की धरोहरें.

इतिहासकारों के अनुसार 1850 में नवाब वाजिद अली शाह ने कैसरबाग में दो दरवाजे बनवाए थे. उस वक्त एक लाख रुपये का इसमें खर्चा आया था. इसलिए इनका नाम लाखी (लक्खी) दरवाजा रखा गया. अंग्रेजों का शासन होने के बाद 13 मार्च 1857 की रात आठ बजे नवाब वाजिद अली शाह इसी गेट से अवध को छोड़ कर गए थे. इस गेट पर जनता अपने जाने आलम को देखने के लिए खड़ी हुई थी. पूरी जनता रो रही थी. जब जनता को गले लगाकर बग्घी पर नवाब वाजिद अली शाह चढ़े थे तो इसी दरवाजे के नीचे उन्हें ठोकर भी लगी थी. लोगों ने दुआ की थी कि वाजिद अली शाह को दोबारा राजगद्दी मिल जाए, लेकिन इन दरवाजों से होकर गुजरे वाजिद अली शाह को इस शहर का मुंह देखना दोबारा नसीब नहीं हुआ.

ऐतिहासिक कैसरबाग दरवाजे से नदारद हो गईं चांदी की मछलियां.
लखनऊ की धरोहरें.

पेशे से वकील अनिरुद्ध जगत बाजपेई ने बताया कि लखनऊ में उनका परिवार पिछले पांच पीढ़ी से है. हमेशा से लखनऊ की कहानियों को दादा बाबा से सुना है. राजधानी लखनऊ की सभी धरोहरों की अलग ही पहचान है और विश्व भर में इनकी छवि अनोखी है. स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई से भी इनका ताल्लुक है. लखनऊ के कैसरबाग चौराहे पर दो दरवाजे हैं. कैसरबाग महल लखनऊ की पहली ऐतिहासिक रचना है. अवध के अंतिम नवाब वाजिद अली शाह द्वारा निर्मित इस महल का निर्माण 1848-1850 के बीच हुआ था.

अधिवक्ता अनिरुद्ध जगत बाजपेई.
लाखी दरवाजे का इतिहास.


अनिरुद्ध के अनुसार वाजिद अली शाह एक ऐसा बगीचा बनाना चाहते थे जो जन्नत की तरह खूबसूरत हो. यह प्रोजेक्ट उनके लिए सबसे महत्वपूर्ण था. वह चाहते थे कि कैसरबाग पैलेस दुनिया के आठवें अजूबे के रूप में जाना जाए, लेकिन 1858 में अंग्रेजों के हमले के कारण महल के कुछ हिस्से क्षतिग्रस्त हो गए. कैसरबाग पैलेस लखनऊ का सबसे प्रसिद्ध पर्यटक आकर्षण है और मुगल वास्तुकला का एक शानदार उदाहरण है. महल में एंट्री करने के लिए दो दरवाजे बनाए गए थे. शुरुआत से ही हम देखते आ रहे हैं कि यह मछली दरवाजे पर बनी हुई है और इसी तरह की मछली राजधानी लखनऊ में जितने भी ऐतिहासिक धरोहर हैं वहां पर बनी हुई है. बड़े बुजुर्ग यही बताते रहे हैं कि मछली पर वार्क (चांदी का पानी) किया गया था, जो समय बीतने के साथ-साथ पूरी तरह से समाप्त हो चुका है.

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