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घर में 'कैद' बच्चों की याददाश्त हो रही कमजोर, आजमाएं ये उपाय

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Published : Jul 2, 2021, 6:44 PM IST

कोरोना संक्रमण के कारण बच्चे करीब डेढ़ साल से घरों में हैं. खुले मैदान में खेलने से लेकर दूसरी सभी शारीरिक गतिविधियां पूरी तरह से बंद हैं. इसका असर अब बच्चों के दिमाग पर भी पड़ रहा है. उनमें चीजों को भूलने की आदत देखने को मिल रही है. विशेषज्ञों का कहना है कि जरा सी सावधानी से अभिभावक बच्चों में हो रहे इस नकारात्मक प्रभाव को कम कर सकते हैं.

बच्चों में बढ़ रही है भूलने की आदत
बच्चों में बढ़ रही है भूलने की आदत

लखनऊ: वैश्विक महामारी कोरोना की वजह से बच्चों की याददाश्त कमजोर हो रही है. 8 वर्ष का अंशुमान करीब डेढ़ साल से घर के अंदर है. दिन भर मोबाइल फोन, टीवी स्क्रीन से समय काटता है. अंशुमान के पिता मनीष सिंह बताते हैं कि पिछले कुछ दिनों से अंशुमान को चीजें याद करने में मुश्किल हो रही है. पहले जहां वह हिंदी, इंग्लिश, साइंस के मुश्किल टॉपिक 30 से 60 मिनट में याद कर लेता था, अब उसे याद करने में ज्यादा समय लग रहा है. इतना ही नहीं वह चीजों को जल्दी भूल भी जाता है.

हैरानी की बात है कि यह समस्या सिर्फ अंशुमान में नहीं बल्कि 3 से 12 साल उम्र के ज्यादातर बच्चों में देखने को मिल रहा है. यूरोकिड्स गोमती नगर स्कूल की शिक्षिका के. पपिंदर कौर कहती हैं कि अब बच्चे सीखने में ज्यादा समय लेते हैं. ईटीवी भारत ने बच्चों में बढ़ रही इस समस्या को लेकर लखनऊ में विशेषज्ञों से बातचीत की. विशेषज्ञों ने बच्चों की मानसिक क्षमताओं के विकास को लेकर कई सुझाव दिए. उन्होंने बताया कि किस तरह से अभिभावक अपने बच्चों को मानसिक रूप से स्वस्थ बना सकते हैं.

बच्चों में बढ़ रही भूलने की आदत.

मेमोरी ट्रेनर तुषार चेतवानी कहते हैं कि सबसे पहले हमें समझना होगा कि ऐसा क्यों हो रहा है. पहले जब ऑफलाइन क्लासेस हुआ करतीं थीं तो हर महीने 2 महीने में एक टेस्ट होता था. बच्चे अपने टॉपिक और लेशन को मेमोराइज किया करते थे. अपने दिमाग को वह हर समय एक नया चैलेंज दे रहे होते थे. ऑफलाइन पढ़ाई के दौरान यह चीजें बदल गई हैं. ऑनलाइन टेस्ट भले ही हो रहे हैं, लेकिन यह उस तरीके के नहीं हैं. हमारा दिमाग 'Use it or Loose it' के फार्मूले पर काम करता है. अगर आप उसका नियमित इस्तेमाल करते हैं तो दिमाग का प्रदर्शन लगातार बेहतर होगा. अगर आप इसका इस्तेमाल नहीं करेंगे तो हमारे दिमाग के कई न्यूरॉन्स स्लीपिंग मोड पर चले जाते हैं. इसका नतीजा है कि हमारी मेमोरी कमजोर हो जाती है. हम जल्दी भूलने लगते हैं.

तुषार चेतवानी कहते हैं कि इस समय क्योंकि बच्चे घरों में हैं, इसलिए अभिभावकों की जिम्मेदारी ज्यादा बढ़ जाती है. कुछ पॉइंट हैं, जिनको अगर पैरंट्स अपनाते हैं तो उनके बच्चों की मेमोरी को बेहतर किया जा सकता है. इससे वह मोबाइल और दूसरी डिजिटल चीजों से भी दूर हो जाएंगे.

तुषार के मुताबिक...

  • अभिभावक अपने बच्चों को घर के नियमित कार्यों में जोड़ें. घर के छोटे-मोटे कार्य की जिम्मेदारी उन्हें सौंप दें.
  • बच्चों में रीडिंग की आदत विकसित करें. यह रीडिंग मोबाइल फोन या टेबलेट के स्थान पर किताब या दूसरी चीजों के माध्यम से कराई जाए, ताकि बच्चे उनको छू सकें. उनका एहसास कर सकें. बेहतर होगा कि अभिभावक बच्चे के साथ बैठकर खुद कुछ पढ़ें.
  • मम्मी-पापा को बच्चे के साथ समय देना चाहिए. अच्छा होगा आप बच्चों के साथ बोर्ड गेम जरूर खेलें.
  • बच्चों की मेमोरी को बेहतर बनाने के लिए उनके साथ मेमोरी गेम खेले जा सकते हैं. सुडोकू जैसे खेल एक बेहतर विकल्प हैं.
  • घर में एक्सरसाइज करने की आदत जरूर डालें. अगर आप खुद एक्सरसाइज करेंगे तो बच्चा भी आप की देखा-देखी उसे अपना लेगा. इससे बच्चों की उर्जा को सही दिशा मिलेगी और वह मानसिक रूप से मजबूत हो जाएंगे.


यह विकल्प भी हो सकते हैं कारगर

  • मनोवैज्ञानिक एवं पायनियर मोंटेसरी कॉलेज की प्रिंसिपल डॉक्टर संध्या द्विवेदी कहती हैं कि बच्चों की ऊर्जा को एक दिशा देना बहुत जरूरी है.
  • बच्चों की दिनचर्या को एक टाइम फ्रेम में जरूर बांध दें. उनके उठने का समय, उनके लंच व ब्रेकफास्ट करने के समय से लेकर सोने तक का समय निर्धारित होना चाहिए.
  • कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल फोन से दूर करने की कोशिश करें. बेहतर होगा कि इनके विकल्प के रूप में बच्चों के लिए कुछ नया प्लान करें.

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