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रामपुर में टूट सकता है आजम का तिलस्म

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Published : Nov 24, 2022, 8:13 PM IST

Updated : Nov 24, 2022, 9:14 PM IST

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आजादी के बाद से आज तक रामपुर विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हुई है, लेकिन इस बार के राजनीति समीकरण काफी बदले हुए हैं. सपा के वरिष्ठ नेता आजम खान की सदस्यता जाने से उनके बयानों की धार कुंद और वोटों की पकड़ क्षीण हो गई है. ऐसे में इस बार बीजेपी अपने पक्ष में जीत देख रही है. पढ़ें यूपी के ब्यूरो चीफ आलोक त्रिपाठी का विश्लेषण...

लखनऊ : आजादी के बाद से आज तक रामपुर विधानसभा सीट से भारतीय जनता पार्टी चुनाव जीतने में कामयाब नहीं हुई. हालांकि यह पहला अवसर है, जब माना जाने लगा है कि शायद इस बार आजम खान का किला ढह जाए. इसके कई पुख्ता कारण भी हैं. केंद्र और राज्य में भाजपा की सरकारें हैं और रामपुर की जनता को मालूम है कि सरकार के साथ रहकर ही विकास की लौ जलाई जा सकती है. अभी प्रदेश सरकार को चार साल से ज्यादा का वक्त बाकी है. ऐसे में विपक्ष का प्रत्याशी जिताने से कोई लाभ नहीं है. इस उप चुनाव में कांग्रेस और बहुजन समाज पार्टी ने अपने प्रत्याशी नहीं उतारे हैं. दलित वोटर अब भाजपा का साथ देता आ रहा है. कांग्रेस के नेताओं ने भी भाजपा को अपना समर्थन दे दिया है. ऐसे में चुनाव बेहद रोचक हो गया है.


गौरतलब है कि नफरती भाषण मामले में एमपी-एमएलए कोर्ट (MP-MLA Court) से सजा सुनाए जाने के बाद 28 अक्टूबर को सपा नेता मोहम्मद आजम खान की विधानसभा सदस्यता रद कर दी गई थी और उप चुनाव कराने का एलान हुआ था. इस उपचुनाव में समाजवादी पार्टी ने आसिम राजा (Asim Raja) को अपना प्रत्याशी बनाया है. वह हाल ही में लोक सभा उप चुनाव भी लड़े थे और उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा था. वहीं भारतीय जनता पार्टी ने आकाश सक्सेना (Bharatiya Janata Party Akash Saxena) को अपना प्रत्याशी बनाया है. आकाश 2022 के विधानसभा चुनावों में भी भाजपा प्रत्याशी थे और लगभग 45 हजार मतों से चुनाव हार गए थे. आकाश सक्सेना वह व्यक्ति हैं, जिनकी शिकायतों पर आजम खान के खिलाफ कई मुकदमे दर्ज हुए हैं. आसिम राजा को आजम खान का बेहद करीबी माना जाता है. माना जाता है कि आजम खान के कारण ही इन्हें टिकट मिला है. बताया जाता है कि आसिम राजा की पार्टी में न तो छवि अच्छी है और न ही बहुत पैठ है. वह मुसलमानों की शम्सी बिरादरी से आते हैं. इसे कारोबारी बिरादरी माना जाता है. इस समुदाय के 10 से 12 हजार मतदाता रामपुर जिले में हैं. वहीं भाजपा प्रत्याशी आकाश सक्सेना, जो विधानसभा चुनाव 45 हजार वोटों से पराजित हुए थे, के समर्थक कहते हैं कि आज के चुनाव और उस चुनाव में बड़ा अंतर है. तब लोगों को उम्मीद थी कि शायद सपा सत्ता में आ जाए. अब तस्वीर साफ है. अगले सवा चार साल योगी जी ही प्रदेश की सत्ता में रहने वाले हैं. ऐसे में लोग उसी नेता का चुनाव करेंगे, जो जिले और क्षेत्र के विकास को आगे बढ़ा सके. जाहिर है कि आकाश सक्सेना इस पैमाने पर खरे उतरते हैं.

रामपुर उपचुनाव में सपा और भाजपा का दांव पेंच.
मुकदमों से घिरे और कोर्ट से सजा होने के कारण अपनी सदस्यता गंवाने वाले आजम खान अपनी धार खो चुके हैं. उनके बयानों में अब वह पैनापन नहीं है, जिसके लिए वह जाने जाते थे. यही कारण है कि अब आजम खान के साथ उतने लोग नहीं दिखाई देते, जितने पहले दिखते थे. आजम खान के कई करीबी साथी भाजपा के साथ चले गए हैं. दो दशक से भी ज्यादा आजम खान के मीडिया प्रभारी उनके सहयोगी आज भाजपा के साथ हैं. कुछ वकील जो सपा से टिकट की दावेदारी कर रहे थे, भी नाराज होकर भाजपा में चले गए हैं. वहीं रामपुर में मुस्लिम तुर्क बिरादरी के ढाई लाख मतदाता हैं. इसी बिरादरी से नाता रखने वाले पूर्व जिला पंचायत अध्यक्ष मुन्ना को टिकट की उम्मीद थी, लेकिन पार्टी ने इस बार भी उनकी उपेक्षा की. वह समाजवादी पार्टी और आजम खान से 22 साल से जुड़े हुए थे. अब वह पार्टी छोड़कर बगावत पर उतर आए हैं.
रामपुर उपचुनाव के प्रतिद्वंद्वी.
वरिष्ठ सपा नेता आजम खान (Senior SP leader Azam Khan) के साथ लोगों की अब खास सहानुभूति भी नहीं है. बताया जाता है कि जेल में रहने के दौरान आजम की विधायक निधि के तीन करोड़ रुपये वापस चले गए, क्योंकि वह पैसे वक्त पर खर्च नहीं कर पाए. स्वाभाविक है कि जनता को यह अच्छा नहीं लगा. लोग कहते हैं कि जो व्यक्ति अपने मुकदमे लड़ने में लगा रहेगा, वह उनकी समस्या का समाधान कैसे करेगा. वैसे भी आजम इन मुकदमों के दबाव में हैं. इसी कारण वह चुनाव में वैसे बयान नहीं दे रहे, जिनके लिए वह जाने-पहचाने जाते थे. लोग कहते हैं कि दूसरों को दलाल कहने वाले मोहम्मद आजम खान की असलियत अब सामने आ चुकी है.

भाजपा प्रत्याशी आकाश सक्सेना (BJP candidate Akash Saxena) की स्थिति मजबूत हो रही है. 2022 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी रहे नवाब काजिम (Nawab Kazim was the Congress candidate) ने अपना समर्थन भाजपा को दे दिया है. इसलिए कांग्रेस का वोट अब भाजपा को जा सकता है. नवाब काजिम खुलकर भाजपा के लिए वोट मांग रहे हैं. वह कहते हैं कि यह निर्णय पार्टी का नहीं, बल्कि निजी है. पार्टी ने जब प्रत्याशी नहीं उतारा, तो अब यह मेरी मर्जी है कि मैं किसका समर्थन करूं. बसपा का वोट अब भाजपा में ही जा रहा है. केंद्र और राज्य सरकार की कई ऐसी योजनाएं हैं, जिनके कारण दलित समुदाय का रुझान लगातार भाजपा की ओर बढ़ा है. ऐसे में कहा जा सकता है कि यह पहला मौका होगा, जब भाजपा इस सीट पर अपने प्रत्याशी के जीतने की उम्मीद कर रही है.

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Last Updated :Nov 24, 2022, 9:14 PM IST

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