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दिवाली के दूसरे दिन मोनिया नृत्य की धूम, जानिए क्या है मान्यता

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Published : Nov 5, 2021, 3:08 PM IST

मोनिया नृत्य की धूम

ललितपुर जिले में दिवाली के दूसरे दिन मोनिया नृत्य की धूम रहती है. इस खास दिन पर गांव के गडरिया और पशु पालक तालाब और नदी में नहाकर, सज-धजकर मौन व्रत का संकल्प लेते हैं. इसी कारण इन्हे मोनिया भी कहा जाता है. जानिए इस खास परंपरा के बारे में...

ललितपुर:दिवाली त्योहार को लेकर लोगों में अलग तरह का उत्साह देखा जाता है. दीप जलाने के साथ-साथ देश के अलग-अलग क्षेत्रों में खास तरह की परंपरा भी निभाई जाती है जिसका अपना अलग महत्व होता है. इन्हीं में से एक है मोनिया नृत्य. विन्ध्य पर्वत का एक ऐसा इलाका जहां कि अपनी परंपरा और लोक साहित्य अलग पहचान रखती है. हालांकि धीरे-धीरे यह परम्पराएं समाप्त होती जा रहीं है, लेकिन गांव के कुछ बड़े बुजुर्गों ने अभी भी अपनी परंपरा को सहेजे रखा है.

माना जाता है इसमें विपत्तियों को दूर करने के लिए ग्वाले मौन रहने का कठिन व्रत रखते हैं. यह मौन व्रत बारह वर्ष तक रखना पड़ता है. इस दौरान मांस मदिरा का सेवन वर्जित रहता है. तेरहवें वर्ष में मथुरा व वृंदावन जाकर यमुना नदी के तट पर पूजन कर व्रत तोड़ना पड़ता है.

मोनिया नृत्य की धूम


जिले में दिवारी गीत की धूम है. दिवारी गीत दिवाली के दूसरे दिन उस समय गाये जाते हें जब मोनिया, मौन व्रत रखकर गांव- गांव में घूमते हें. दीपावली के पूजन के बाद मध्य रात्रि में मोनिया -व्रत शुरू हो जाता है. गांव के गडरिया और पशु पालक तालाब नदी में नहाकर, सज-धजकर मौन व्रत का संकल्प लेते हैं. इसी कारण इन्हे मोनिया भी कहा जाता है.

शुरुआत में पांच मोर पंख लेने पड़ते हैं और प्रतिवर्ष पांच-पांच पंख जुड़ते रहते हैं. इस प्रकार उनके मुट्ठे में बारह वर्ष में साठ मोर पंखों का जोड़ इकट्ठा हो जाता है. परम्परा के अनुसार पूजन कर पूरे नगर में ढोल, नगाड़े की थाप पर दीवारी गाते, नृत्ये करते हुए मोनिए अपने गंतव्य को जाते हैं. इसमें एक गायक ही लोक परम्पराओं के गीत और भजन गाता है और उसी पर दल के सदस्य नृत्य करते हैं.

मोनिया कैड़ियों से गुथे लाल पीले रंग के जांघिये और लाल पीले रंग की कुर्ती या सलूका अथवा बनियान पहनते हैं. जिस पर कोड़ियों से सजी झूमर लगी होती है, पांव में भी घुंघरू, हाथों में मोर पंख अथवा चाचर के दो डंडे का शस्त्र लेकर चलते हैं. मोनियों के इस निराले रूप और उनके गायन-नृत्य को देखने के लिए लोग ठहर जाते हैं.

मौन साधना के पीछे सबसे मुख्य कारण पशुओं को होने वाली पीड़ा को समझना है. ग्रामीण बताते हैं कि जिस तरह किसान खेती के दौरान बैलों के साथ व्यवहार
करता है. उसी प्रकार प्रतिपदा के दिन मोनिया भी मौन रहकर उसे उसी प्रकार हाव-भाव करते हैं. वे प्यास लगने पर जानवरों की तरह ही पानी पीते हैं. पूरे दिन कुछ भी भोजन नहीं करते हैं. कम से कम 7 गांव की परिक्रमा करते हैं.

पौैराणिक मान्यता

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, भगवान कृष्ण गोकुल में गोपिकाओं के साथ दिवारी नृत्य कर रहे थे. गोकुलवासी भगवान इंद्र की पूजा करना भूल गए तो नाराज होकर इंद्र ने वहां जबरदस्त बारिश की, जिससे वहां बाढ़ की स्थिति बन गई. तब भगवान श्री कृष्ण ने गोकुलवासियों की रक्षा के लिए अपनी अंगुली पर गोवर्धन पर्वत उठाकर गोकुल की रक्षा की, तभी से गोवर्धन पूजा और दिवारी नृत्य की परम्परा चली आ रही है.

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