उत्तर प्रदेश

uttar pradesh

लखीमपुर खीरी में नेपाली जंगली हाथियों की आमद, वन विभाग खुश तो आम लोग बता रहे आफत, जानें क्या है मामला

By

Published : Sep 26, 2021, 9:24 AM IST

हाथी अनजाने में तार और करंट की चपेट में भी आ सकते हैं. वहीं, मैन एनिमल कांफ्लिक्ट का भी हमेशा खतरा बना रहता है. हम आसपास के लोगों को जागरूक कर रहे हैं. गश्ती टीमें बराबर हाथियों के मूवमेंट पर नजर रख रहीं हैं. हमारी कोशिश है कि हाथी भी सुरक्षित रहें और लोग भी. हमें लग है कि रहा कुछ दिन में हाथी वापस चले जाएंगे.

लखीमपुर खीरी में नेपाली जंगली हाथियों की आमद, वन विभाग खुश तो आम लोग बता रहे आफत, जानें क्या है मामला
लखीमपुर खीरी में नेपाली जंगली हाथियों की आमद, वन विभाग खुश तो आम लोग बता रहे आफत, जानें क्या है मामला

लखीमपुर खीरी :नेपाल से यूपी के लखीमपुर खीरी पहुंचे जंगली हाथियों के चलते एक तरफ जहां वन विभाग खुश है तो वहीं स्थानीय लोगों में चिंता है. उनका मानना है कि यदि हाथियों ने उत्पात मचाना शुरू कर दिया तो उन्हें वन विभाग भी कंट्रोल नहीं कर पाएगा. ऐसे में जान माल का खतरा भी है. खास बात ये है कि जंगली हाथी करीब तीस साल बाद अपनी पुरखों की धरती पर भारतीय सीमा में इतने अंदर तक आ गए हैं.

लखीमपुर खीरी में नेपाली जंगली हाथियों की आमद, वन विभाग खुश तो आम लोग बता रहे आफत, जानें क्या है मामला

यूं तो हाथी नेपाल के वर्दिया या शुक्ला फांटा नेशनल पार्क से निकलकर भारत के खीरी जिले की सीमा से सटे दुधवा और पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगलों तक आकर फिर मानसून खत्म होते ही वापस नेपाल चले जाते थे. पर इस बार जंगली हाथियों का कुनबा भारतीय सीमा में करीब डेढ़ सौ किलोमीटर अंदर दक्षिण खीरी वनप्रभाग के जंगलों तक आ गए हैं.

हाथी यहां रात के अंधेरे में निकलकर फसलों को नुकसान भी पहुंचा रहे हैं. गांव वाले हाथियों के नुकसान से परेशान हो रहें. हाथी महेशपुर जंगल से सटे खेतों में रात में घुसकर धान व गन्ने की फसल तबाह कर रहे हैं. मंजीत सिंह की चार बीघा धान और गन्ने की फसल हाथियों ने रौंद डाली. मंजीत अब रात रातभर आग जलाकर पहरेदारी करते देखे जा सकते हैं. वहीं, फारेस्ट स्टॉफ भी हाथी और मनुष्यों के बीच टकराव न हो, इस व्यवस्था में मुस्तैद है.

इलाके के लोग बताते हैं कि जंगली हाथी तीस साल पहले इस इलाके में आए थे. इतने लंबे अंतराल के बाद अब जाकर हाथियों का आगमन इस इलाके में दोबारा हुआ है. वाइल्ड लाइफ के जानकार और पूर्व रेंजर मुकेश रायजादा बताते हैं कि तराई की ये धरती हाथियों के पुरखों की जमीन रही है. कभी इन हाथियों का इन जंगलों पर एकछत्र राज था.

यह भी पढ़ें :एक नवंबर से खुलेंगे दुधवा के द्वार, बाघों के दीदार को सैलानी हो जाएं तैयार

पर आबादी बढ़ने से जंगलों पर दबाव बढ़ता गया. जंगलों को काट खेती होने लगी. अब इन हाथियों को क्या पता कि उनके घर लोगों ने उजाड़ दिए. नेपाल से आए घुमंतू हाथियों की निगहबानी में लगे महेशपुर रेंज के रेंजर मोबीन आरिफ कहते हैं कि इस वक्त हाथियों के खाने के लिए धान की फसल पक रही है जंगलों के छोटे-छोटे पैचों के किनारे गन्ने की भरपूर फसल भी लगी है.

अब इससे बढ़िया मौका हाथियों को और क्या चाहिए. पर गांव वालों की फ़सलों का नुकसान हो रहा है. हाथी दल में करीब दस छोटे-छोटे बच्चे भी हैं. इनको टस्कर हाथी गाइड करते हैं. हम हाथियों के लिए भी फिक्रमंद हैं और गांव वालों और उनकी फसलों के लिए भी. हमारी टीमें लगातार पूरे इलाके में गश्त कर रहीं हैं. प्रयास है कि हाथी यहां से चले जाएं.

डीएफओ साउथ खीरी समीर कुमार कहते हैं कि जंगली हाथी का स्वभाव घुमंतू होता है. नेपाल से चलकर हाथी कई बार भारत आ जाते हैं. पर इस बार ये हाथी दल बच्चों समेत भारतीय सीमा में काफी अंदर तक आ गए हैं. हमारी फिक्र हाथियों को सुरक्षित रखने की है. इलाके में खेतों में बिजली के तार और लाइनें भी हैं.

हाथी अनजाने में तार और करंट की चपेट में भी आ सकते हैं. वहीं, मैन एनिमल कांफ्लिक्ट का भी हमेशा खतरा बना रहता है. हम आसपास के लोगों को जागरूक कर रहे हैं. गश्ती टीमें बराबर हाथियों के मूवमेंट पर नजर रख रहीं हैं. हमारी कोशिश है कि हाथी भी सुरक्षित रहें और लोग भी. हमें लग है कि रहा कुछ दिन में हाथी वापस चले जाएंगे.

ABOUT THE AUTHOR

...view details