कानपुर :घरों और आंगन में चहकने वाली गौरैया अब कम ही दिखती है. पर्यावरण की रक्षा करने वाली यह चिड़िया प्रदूषण, मोबाइल टावर रेडियशन और खाने की कमी के कारण धीरे-धीरे कम हो गई. रही-सही कसर कीटनाशकों ने पूरी कर दी. कीटों के मरने और दवाइयों का असर भी गौरैयों की प्रजाति पर हुआ. हालांकि पर्यावरणविद और लोगों को जब इसकी याद आई तो बचाने का अभियान भी शुरू किया.
कानपुर के गौरव वाजपेयी भी गौरेयों के संरक्षण का काम कर रहे हैं. उन्होंने इस नन्हीं चिड़ियों को बचाने के लिए न सिर्फ अपने घर से पहल की बल्कि अन्य लोगों को भी इसके बारे में बताया. धीरे-धीरे कारवां बढ़ता गया और उनकी मुहिम से लोग जुड़ने लगे. इस टीम के सदस्यों ने कानपुरियों को अवेयर करने के लिए नायाब आइडिया निकाला. ये सभी शादी और बर्थडे जैसे सोशल फंक्शन में लोगों को गौरेये का घोसला गिफ्ट करने लगे. घोसला बनाने के लिए भी गौरव वाजपेयी ने नायाब रास्ता निकाला.
गौरव वाजपेयी बताते हैं कि घोसले को स्क्रैप रीसाइकल करने के बाद बनाया जाता है. घोसलों की बनावट ऐसी है कि गौरयों के बच्चों की हमलावर पक्षियों से रक्षा होती है. साथ ही वह परवाज करने तक इसमें सुरक्षित रहते हैं. एक साल में एक घोंसले को गौरेया के तीन जोड़े अपना आशियाना बनाते हैं. इस हिसाब से देखें तो एक साल में गौरैया के 15 बच्चे इस घोसले में हिफाजत से रहते हैं.
प्रकाश कुमार भी गौरव वाजपेयी के साथ गौरेया का संरक्षण करते हैं. उन्होंने अपने घर में 25 बर्ड हाउस बना रखा है. प्रकाश ने बताया कि एक बार पंखे के कटकर एक गौरेया मर गई. उस दिन उन्होंने इस चिड़िया को बचाने की मुहिम को जॉइन कर लिया. प्रकाश अब लोगों को न्यू ईयर, बर्थडे और सालगिरह जैसे आयोजनों में तोहफे के तौर पर बर्ड हाउस ही देते हैं. अब तक वह करीब 300 लोगों को गौरेयों के लिए बर्ड हाउस दे चुके हैं. प्रकाश सुबह से ही गौरयों की सेवा करने में जुट जाते हैं. उनके लिए दाना-पानी रखने के बाद वह अपनी दिनचर्या शुरू करते हैं.