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प्री-एग्जिट पोल में 'सेफोलॉजी' निभाता है अहम रोल, जानें कैसे...

'सेफोलॉजी' राजनीति विज्ञान का एक ऐसा चैप्टर है जो चुनावी परिदृश्य के आंकड़ों को पेश करने में अहम रोल अदा करता है. यही प्री पोल सर्वे और ओपिनियन पोल का आधार बनता है. आइये इसके बारे में जानते हैं विस्तार से....

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Published : Jan 11, 2022, 12:23 PM IST

Updated : Jan 11, 2022, 2:36 PM IST

गोरखपुर:चुनावी दौर में प्री पोल सर्वे या ओपिनियन पोल के आंकड़े कैसे निकलते हैं पता है आपको. अगर नहीं तो ईटीवी भारत की यह रिपोर्ट आपके लिए बेहद मददगार होगी. 'सेफोलॉजी' राजनीति विज्ञान का एक ऐसा चैप्टर है जो चुनावी परिदृश्य के आंकड़ों को पेश करने में अहम रोल अदा करता है. यही प्री पोल सर्वे और ओपिनियन पोल का आधार बनता है. हालांकि वर्तमान समय में होशियार मतदाता जब अपनी राय को दबा कर रखता है तो वहां पर सेफोलॉजी के नियम भी फेल हो जाते हैं और ओपिनियन पोल, प्री पोल सर्वे का रिजल्ट भी वास्तविक रिजल्ट से उलट जाता है फिर भी चुनावी गणित के आकलन के लिए सेफोलॉजी के सिद्धांत पर ही काम किया जाता है और जब-जब चुनाव आता है तो इसकी महत्ता और उपयोग बढ़ जाता है.

गोरखपुर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर और सेफोलॉजी के विशेषज्ञ डॉ अमित उपाध्याय से ईटीवी भारत ने इसकी प्रासंगिकता और महत्ता पर विशेष बातचीत की. जिसपर उन्होंने कहा कि अमेरिकी चुनाव से शुरू हुई यह प्रक्रिया भारतीय राजनीति में भी आंकड़ों के दर्शाने का बड़ा माध्यम बनती है. जिसे फिलहाल नजरअंदाज नहीं किया जा सकता.

जानकारी देते सेफोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. अमित उपाध्याय.

डॉ. अमित कहते हैं कि सेफोलॉजी के तहत हम चुनाव के विज्ञान का अध्ययन करते हैं. चुनाव का अध्ययन करते हैं. मतदाता के चुनाव को लेकर रुझान का पता लगाते हैं. इस शब्दावली को अमेरिकी राजीनीति विज्ञानियों ने लोकप्रिय बनाया. उन्होंने कहा कि यह तरीका वैज्ञानिक आधार पर मानव के क्रिया कलाप को जानने का आधार है. सेफोलॉजी के तहत मनुष्य के राजनीतिक क्रिया कलाप, सोच-विचार का पता लगाकर राजीनीतिक आंकड़े तैयार होते हैं, जिसके आधार पर राजनीति दलों के जीत-हार के बारे में घोषणाएं होती हैं. उन्होंने कहा कि इसके माध्यम से मतदाता का वोटिंग पैटर्न और व्यवहार का भी पता लगाया जाता है. वह किससे और किस दल से प्रभावित होकर वोटिंग करेगा यह सब पता सेफोलॉजी के माध्यम से किया जाता है. उन्होंने कहा कि राजनीतिक आंकड़े जातिगत और इतिहास के आधार पर भी तय होते हैं. इसके लिए पिछले दो चुनावों या 10 साल के आंकड़ों को आधार बनाया जाता है.

मतदाता से सेफोलॉजी के माध्यम से यह पता लगाने की कोशिश होती है कि वह अपने जाति से प्रभावित होकर वोट देने जा रहा है या राजनीति क्षेत्र के ऐतिहासिक क्रिया कलाप और मुद्दे से वह प्रभावित है. जातियों के आधार पर भी वोटिंग के बनने और बिखरने का आंकलन इस सिद्धांत के तहत होता है. इसके अलावा चुनाव में हिट चल रहे एजेंडे पर भी टीम फोकस करती है और मतदाता से उसकी राय जानने की कोशिश करते हैं. जिस एजेंडे के तरफ मतदाता का रुझान ज्यादा दिखता है उसके आधार पर आंकड़े जुटाते हैं और सेफोलॉजी के नियमों के तहत फिर एग्जिट पोल के नतीजे की तरफ बढ़ते हैं.

इस दौरान उन्होंने कहा कि पिछले कुछ चुनाव में एग्जिट पोल के नतीजे उलट-पलट नजर आए. आंकड़ों में बड़ा बदलाव भी दिखा. इसके पीछे होशियार हो चुका मतदाता ही होता है. वह जिस दल के बारे में सोचता है उसके बारे में कुछ न बोलकर इधर-उधर की बातों पर अपनी राय जाहिर करता है फिर भी चुनावी गणित का विश्लेषण और एग्जिट पोल, प्री पोल, ओपिनियन पोल सबकी गणना का आधार सेफोलॉजी ही होती है जिसे नकारा नहीं जा सकता.

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Last Updated : Jan 11, 2022, 2:36 PM IST

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